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जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नहीं ?

जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नहीं ?

माना की राह मुश्किल है पर मंजिल के रास्तों पर डटकर निकलते क्यों नहीं?
माना की रास्ते में, रोड़े कंकड़ पत्थर हैं, पर सिर्फ कंकड़ पत्थर ही, तो हैं ये‌ समझते क्यों नहीं ?

जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नही?

माना कि दूर है मंजिल पर पहले पड़ाव की धुंधली सी सही आस तो है, इस आस के सहारे आगे बढ़ते क्यों नहीं?

माना कि तूफान का शोर है, कानों में बेजोड़ है पर सिर्फ शोर ही तो ये समझते क्यों नहीं ?

जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नहीं ?

माना कि कुछ लोग खड़े हैं,तुम्हें सब बुरा बताने के लिए, बहुत दूर है मंजिल ये समझाने के लिए इन बातों को सिर्फ बातें समझकर आगे चलते क्यों नहीं ?
माना कि सब लगते अपने है, तुम्हारा हौसला टूटा रहे बस  यही उनके सपने है पर उनके सपने ही तो ये समझते क्यों नहीं

जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नहीं ?

माना कि अंधेरी रात है, इन रास्तों पर तुम्हें किसी का ना साथ है, आंखे बंद करो और देखो जिंदगी अकेली ही, तो है यहां किसे किसका साथ है‌ सब जानते हो तो फिर अब आगे निकलते क्यों नहीं ?


माना कि हौसला‌ टूटा है, किस्मत जिसने कोशिश ना कि उसी का फूटा है, टूटे हौसले को पोटली में‌ समेट कर आगे बढ़ते‌ क्यों नहीं?

जिंदगी को जिंदगी समझते क्यों नहीं….

पंकज पाठक
10- 06-2021

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