एक ऐसा गांव जहां 700 परिवार रहते हैं जिनमें लगभग 500 महिलाएं विधवा हैं. ब्रांबे गांव NH 73 के बिल्कुल किनारे बसा है. सरकार के सारे कानूनों को ठेंगा दिखाकर शराब के नशे में डुबा है. किसी ने अपना पति खो दिया, किसी ने पिता तो किसी ने अपने जवान बेटे को सामने दम तोड़ते देखा. इतना कुछ देखने के बाद गांव बदला नहीं. आज भी नयी पीढ़ी शराब के नशे में डुबी है. कई लोग जिन्होंने शराब में अपनों को खो दिया अब खुद शराब बेचकर मौत बांटने में लगे हैं. राजधानी रांची जहां से सरकार चलती है इस गांव की राजधानी रांची से दूरी महत 19 किमी की है.
नयी तरह के नशे की जद में नयी पीढ़ी
गांव में नशे की लत इस हद तक है कि 14 – 15 साल के बच्चे भी देशी दारू पीकर घुमते है. देशी दारू के अलावा कई तरह का नया नशा अब गांव में पैर जमा रहा है. गांव के बुढ़े और बुजुर्ग बताते हैं कि कैसे नयी पीढ़ी टेनट्राइट, गांजा, चरस और कोरेक्स जैसी दवाओं का इस्तेमाल नशा के लिए करने लगी है. जिन्हें नशे की लत लग गयी वह ठीक से काम भी नहीं कर पाते. दिनभर नशे में रहते हैं. एक युवा ने बातचीत के दौरान कहा, नशा थोड़ा करते हैं तो दिमाग कहता है थोड़ा और थोड़ा और इसके बाद तो होश ही नहीं रहता. होश आता है तो फिर नशे की तलब. इस गांव के लोग जो नशे की लत में जान गवां चुके हैं उनमें से ज्यादातर लोगों के पास खाने के लिये नहीं था लेकिन शराब के लिए पैसे बचाते रहे पीते रहे. खाली पेट शराब ने उन्हें बीमार कर दिया और जान से हाथ धोना पड़ा.
रोजगार की कमी और सरकारी की बेरुखी बढ़ा रही है नशाखोरी
इस गांव से कई लोग बाहर काम करने जाते हैं लेकिन पंचायत में इसकी कोई जानकारी नहीं देते. बाहर काम करते वक्त किसी दुर्घटना में उनकी जान चली गयी या शरीर को कोई नुकसान पहुंचा तो हम उनकी मदद नहीं कर पाते. पंचायत को जानकारी देकर बाहर जाने का फायदा है कि हम उन्हें बीमा (इंश्योरेंस) दे सकते हैं. कई लोग बेरोजगारी के कारण शराब बेचने पर मजबूर है. कुछ लोगों ने जब शराब बेचने वालों को मना किया तो उन्होंने कहा कि हम आपके घर चलते हैं हम वही रहेंगे खायेंगे. आप हमारा खर्च उठा लो हम क्यों बेचेंगे. इस गांव में कई सालों से लोगों को वृद्धा पेंशन नहीं मिला. कई सरकारी सुविधाएं नहीं मिली. उज्जवला योजना, स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर कुछ नहीं पहुंचा.
नाम की शराबबंदी
हाइवे के किनारे के होटलों में भी शराब नहीं मिलेगी. कोर्ट ने कहा कि यदि होटलों को अनुमति दी गई तो पूरा मकसद ही असफल हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने पहले आदेश दिया था कि एक अप्रैल से हाइवे किनारे की सभी शराब की दुकानों को बंद कर दिया जाए. कोर्ट ने आज कहा कि जिन इलाकों की जनसंख्या 20 हजार से कम है वहां पर हाइवे से 220 मीटर के दायरे तक शराब बेचने पर पाबंदी रहेगी. हालांकि जहां की आबादी 20 हजार से ज्यादा है वहां पर शराब की दुकानों को पहले के आदेश की तरह हाइवे से 500 मीटर की दूरी पर ही खोलना होगा. इस गांव को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे कानून की धज्जियां उड़ती है. कुछ पैसे लेकर पुलिस वाले गांव का रास्ता भूल जाते हैं. सड़क किनारे हड़िया दारू आसानी से उपलब्ध हैं.
बकैती
साहेब हजार काम होते हैं आपको कई उद्धाटन, राजनीति, पोस्टरबाजी समेत हजारों काम. सोशल मीडिया पर प्रचार कभी पूजा करते तो कभी फीता काटते हुए. वक्त मिले तो अपनी अच्छी खासी चलती राजनीति की गाड़ी इस गांव की तरफ मोड़िये. आपकी राजनीति के बहाने ही इस गांव को जरूरत है आपकी. अगर आप थोड़ा ध्यान इस गांव पर दे देंगे तो पीढ़िया बच जायेंगी. नयी पीढ़ी भी नशे में हैअगर झारखंड की थोड़ी भी चिंता है तो सोचियेगा .
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