इस हाईटेक कार्यक्रम के इतर सच्चाई क्या है ?
सच तो यह है कि सरकार सिर्फ पेपर पर काम करती है. उन इलाकों तक सरकारी मशीनरी नहीं पहुंचती. दावों के आधार पर सरकारी दावे कर दिये जाते हैं. डोरंडा इलाके का वार्ड संख्या 50 यहां तीन बसें पहुंची. लोगों को कहा गया सरकार ने आपके घर का सपना पूरा कर दिया. अब आप सरकार के कार्यक्रम को सफल कीजिए. वार्ड संख्या 50 में 950 से अधिक घर बनने हैं. बने लगभग 150 उनमें भी किसी घर में बिजली नहीं, तो किसी घर में शौचालय का काम भी अधूरा .
झूठे सरकारी दावे और क्रेडिट सीधे पीएम मोदी को
लगभग 950 घर बनने थे. इस वार्ड में जिन घरों का गृह प्रवेश हुआ वहां रहना क्या, प्रवेश करना मुश्किल है. कई घरों में सटरिंग का काम हो रहा है. कई घरों के छत गायब है, तो किसी के फर्श. ग्रामीणों के अनुसार इन इलाकों में सिर्फ 150 घर होंगे जिनके छत बने हैं. उनमें बिजली की सुविधा नहीं है. बिजली की तार में टोकण लगाकर घरों में रौशनी आयी है. कई घर हैं जिनमें शौचालय नहीं बने. यहां तीन बसें भेजी गयी, कुछ लोगों को जबरन ले जाया गया . 3000 घर 20 हजार परिवार में शामिल इन लोगों की कहीं चर्चा तक नहीं हुई. फूल पेज के विज्ञापन, सरकार की चकाचौंध वाले हाईटेक कार्यक्रम में इनके लिए सिंगल कॉलम की जगह नहीं बची.
इन्हें चार किश्तों में पैसा मिलना था. हर एक किस्त के बाद बने मकान की तस्वीर जाती है और फिर अगले काम के लिए पैसा आता है. इन इलाकों में कई लोग हैं, जिन्होंने कर्ज लेकर घर बना लिया है. घर बनने के बाद उन्हें एक शिलापट्ट दिया गया. कहा गया, इसे घर के बाहर लगाइये. सरकार के तरफ से मिले लगभग 3 लाख 17 हजार रुपये. 4 लाख और लगाकर एक व्यक्ति ने शानदार घर बनाया.
शिलापट्ट पर लिखा गया सरकार ने तीन लाख 17 हजार रुपये दिये और लाभुक ने 35 हजार अलग से लगाये. कई लोग हैं जिनके घर अधूरे हैं. कारण है , सरकार की तरफ से आने वाली किश्त बंद हो गयी या बिचौलियों के बीच फंसी है. जिनके पास पैसे नहीं है, उधार नहीं ले सकते, उनके घर नहीं बने. एक साल से कई घर अधूरे हैं किसी की छत नहीं है, तो किसी के घर के सिर्फ पिलर खड़े हैं. इस इलाके में रह रहे लोगों ने कहा, सबसे बड़ी परेशानी इन बिचौलियों ने खड़ी की है. वार्ड मेंबर ने इन ठेकेदारों को बीच में ला दिया है. इनकी देखरेख में घर बनना है. अगर हमें जिम्मेदारी मिली होती, तो हम कम खर्च में बेहतर काम कर लेते. कुछ साथियों को जोड़कर घर बना लेते. इस घर के भरोसे हमने अपना मिट्टी का घर तोड़ दिया. अब बरसात में, ठंड में हम बेघर हो गये.
दावा: शहरी क्षेत्र खुले शौच से मुक्त, हकीकत अभी भी उजाला होने से पहले खुले में शौच के लिए निकलती हैं महिलाएं
सरकार ने रंग बिरंगी लाइटों के बीच विशाल मंच से दावा किया कि झारखंड शहरी क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त हो गया. डोरंडा इलाके का वार्ड नंबर 50 का इलाका अभी भी खुले में शौच से मुक्त नहीं हुआ. कई महिलाएं बताती हैं कि अभी भी दिन की रौशनी होने से पहले शौचालय के लिए खुले में निकलना पड़ता है.
पढ़िये क्या है दावा
यहां तक ना तो सरकार की कोई योजना, जो स्वच्छता का ढोल पिटती है वही पहुंची, ना शौचालय निर्माण के लिए लोगों को प्रेरित किया गया. दावा गुजरात और आंध्र प्रदेश की तरह खुले में शौच मुक्त का. एक वार्ड के आधे से ज्यादा लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं. इन दावों से पहले कोई सरकारी अधिकारी, माननीय नेताजी, जो मंच से इन विशाल काम, जो हुए ही नहीं, सिर्फ दावों के जरिये पूरा क्रेडिट पीएम मोदी को और बचा खुचा खुद ले रहे थे. इन इलाकों का रुख कर लेते तो दोनों की साख बच जाती.
स्टोरी- अमलेश नंदन सिन्हा, पवन सिंह राठौड़ और पंकज कुमार पाठक
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