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गोमिया- सिल्ली उपचुनाव हारी, तो बहुत कुछ हार जायेंगी झारखंड की क्षेत्रीय पार्टियां

झारखंड विधानसभा की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव को हल्के में मत लीजिएगा. इन दोनों सीटों पर आये चुनाव के परिणाम झारखंड की दिशा तय करेंगे. राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य तय करेंगे. एक तरफ पूरा विपक्ष है , तो दूसरी तरफ इकलौती पार्टियां. 

अगर विपक्ष पूरी एकजुटता के बाद भी हार गया, तो इन पार्टियों के भविष्य पर सवालिया निशान लगेंगे. दोनों ही सीटों पर जेएमएम का कब्जा था.  इन सीटों को बचाये रखने के लिए  जेएमएम के साथ जोर लगा रही है कई अहम पार्टियां . इनमें कांग्रेस, राजद, जेवीएम, वाम दल सहित कई पार्टियां एक साथ खड़ी हैं.  अगर गोमिया और सिल्ली में यह महागठबंधन हारी, तो इनका भविष्य 2019 के विधानसभा चुनाव  में क्या होगा ? सवाल बड़ा है जवाब मिलेगा 31 मई को. इसी दिन चुनाव का परिणाम आना है.

मैं  दोनों ही जगह तीन- तीन दिनों तक रहकर लौटा हूं. गोमिया और सिल्ली के उपचुनाव का कारण दोनों ही विधायकों की सदस्यता जाना रहा है. दोनों पर आरोप लगे, आरोप साबित हुए और सदस्यता चली गयी. दोनों सीटें जेएमएम की थी और दोनों ही जगह पूर्व विधायकों की पत्नी चुनाव लड़ रही है. दोनों इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बता रहे हैं.  योगेन्द्र प्रसाद महतो से जब पूछा गया कि क्या जेएमएम के पास कार्यकर्ता- नेताओं की कमी थी कि दोनों जगहों पर पूर्व विधायक की पत्नियों को मैदान में उतरना पड़ा. योगन्द्र ने जो जवाब दिया उससे आप पूरी तरह से संतुष्ट हो जायेगा. जवाब पसंद आना या ना आना अलग बात है.  उन्होंने कहा, हमें अपनी राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए पत्नी से बेहतर कोई नहीं लगा. हम अपनी पत्नी से ज्यादा किस पर भरोसा कर सकते हैं. पत्नी हमारे अनुसार चल सकेंगी दूसरे नहीं चलेंगे.

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सिल्ली का हाल 
सिल्ली में सुदेश महतो पिछली बार बुरी तरह हारे थे. बुरी तरह इसलिए क्योंकि उन्हें अपनी जीत का इतना भरोसा था कि वोट मांगने के लिए जनता तक नहीं पहुंचे. राज्य की राजनीति में इतने व्यस्त हुए कि अपने विधानसभा क्षेत्र पर ही पकड़ ढीली कर दी. दूसरी तरह अमित महतो जनता से मिलते रहे. सुदेश महतो के बदल जाने का खूब प्रचार. जनता नाराज तो थी है उनकी नाराजगी वोट में बदली और अमित जीत गये. इस बार सुदेश जीत को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. देर रात तक प्रचार कर रहे हैं लोगों से मिल रहे हैं, जनता से जो दूरी बनी उसके लिए मांफी भी मांग रहे हैं. सिल्ली में कई अहम मुद्दे हैं. बिजली का मुद्दा सबसे अहम है.

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रोजगार के लिए लोगों को यहां से बाहर जाना पड़ता है. जो यहां काम भी कर रहे हैं उन्हें न्यूनतम मजदूरी से कम वेतन मिल रहा है. अमित महतो अपनी पत्नी सीमा महतो  के लिए धुंधार प्रचार कर रहे हैं. अमित के साथ-  जेएमएम,कांग्रेस, आरजेडी, जेवीएम, वाम दल की पार्टियां खड़ी है. कई और लोग खड़े हैं लेकिन उनके प्रचार औऱ जनसंपर्क अभियान जनता के बीच उतने नहीं पहुंच रहे जितना एक प्रत्याशी के तौर पर पहुंचना चाहिए. कोई विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए खड़ा है, कोई दूसरी पार्टी का वोट काटने के लिए  तो कोई चुनावी लड़ाई में अपनी किस्मत आजमाने के लिए.

गोमिया का हाल  
गोमिया में लड़ाई त्रिकोणीय है. इस क्षेत्र से चार बार विधायक रहे माधव लाल सिंह भाजपा से लड़ रहे हैं. अपनी कुरसी बचाने के लिए योगेन्दर ने अपनी पत्नी बबीता को मैदान में उतारा है. प्रशासनिक अधिकारी रहे लंबोदर महतो पहली बार चुनावी राजनीति में कूदे हैं. मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी लगातार लंबोदर की जीत के लिए कोशिश कर रहे हैं. तीनों प्रत्याशी देर रात तक सभा कर रहे हैं. यहां भी जेएमएम प्रत्याशी बाबीता के साथ पूरा विपक्ष खड़ा हैं. यहा भी विपक्ष बड़ी सभाओं के जरिये अपनी एकता दिखाने में लगा है. योगेन्द्र विधानसभा सदस्यता खत्म करने के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. गोमिया विधानसभा में अपने किये काम के लिए 30 साल बनाम 3 साल का नारा है.

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कौन जीतेगा
सवाल का बहुत आसान सा जवाब है. आप सारी खबरें और मुख्य रूप से नेताओं के  बयान देख लीजिए. बयान में यह पढ़ने की कोशिश कीजिए कि नेता किन विरोधी पार्टी या नेता का नाम ज्यादा ले रहे हैं. जिनका नाम ज्यादा है उससे यह समझिये के यह सीधे फंला पार्टी को बड़ा खतरा मानते हैं. अगर  तीन से ज्यादा पार्टियां मैदान में हैं तो और आसान हो जाता है लेकिन जहां सिर्फ दो पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं वहां अंदाजा लगाना कठिन है. अगर दो पार्टियों में आगे कौन है इसका अंदाजा लगाना है तो प्रचार औऱ जनसभाओं का रुख कीजिए. लोगों से बात कीजिए. गांव में किन नेताओं के बैनर पोस्टर पहुंच रहे हैं. आप यकीन मानिये बैनर पोस्टर से भले चुनाव जीते ना जाते हों लेकिन माहौल जरूर बनाया जा सकता है.

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