डॉ गिरिधारी राम गोंझू |
साधारण मौत भी हत्या होती है. अगर अव्यवस्था के कारण किसी
की मौत हुई है, तो वह साधारण मौत तो नहीं है. वो हत्या
ही है. हार्ट अटैक का मरीज 8 घंटे 9 अस्पतालों
के चक्कर लगाता रहा लेकिन कहीं जगह नहीं मिली. सही
समय से इलाज ना मिलने की वजह से उनकी मौत हुई, जो साधारण
मौत नहीं है. हत्या ही है..
सवाल है कि अस्पताल में एक बिस्तर के लिए क्या आर्हता ( योग्यता
) होनी चाहिए ? राज्य की राज्यपाल भी कोरोना संक्रमित हो गयी है, क्या उन्हें
बिस्तर मिलने में परेशानी होगी ? ना सिर्फ
राज्यपाल, राज्य का कोई आईएस, आईपीएस अधिकारी
इलाज के अभाव में, तो दम नहीं तोड़ेगा. अस्पताल में एक बिस्तर पाने के लिए आर्हता है, आप बड़े
सरकारी अधिकारी हों, या आपके पास किसी ऐसे अधिकारी की पैरवी हो .बगैर इसके अस्पतालों
में जगह नहीं मिलेगी.
“डॉ गिरिधारी
राम गोंझू ” ये सिर्फ एक नाम नहीं थे, झारखंड के
रत्न थे, भाषा, संस्कृति, साहित्य, शिक्षा में राज्य के लिए जिनता काम उन्होंने किया, बहुत कम
लोगों ने किया है. जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा
विभाग के विभागाध्यक्ष थे, वो सिर्फ शिक्षक नहीं थे, इस क्षेत्र
में खुद विश्वविद्यालय थे.
मेरी डॉ गिरिधारी राम गोंझू से तीन या चार बार मुलाकात हुई
होगी. हर बार उनसे बात करके महसूस हुआ कि हम पत्रकार के तौर पर कितने किस्मत वाले हैं
कि ऐसे लोगों से मिलने का मौका मिलता है,
जिन्होंने अपना पूरा जीवन राज्य को, संस्कृति
को , भाषा को दे दिया. एक इंटरव्यू के दौरान उनसे आदिवासी संस्कृति
पर विस्तार से बात हुई थी. ये बातचीत जितनी वीडियो में हुई, उससे ज्यादा
बैठकर घंटों हुई. मेरे मन में संस्कृति,
जीवनशैली, परंपराओं को लेकर जमीं धूल को उन्होंने इतनी अच्छी तरह साफ
कर दिया कि आज इन पर मजबूती से अपना पक्ष रखने के लायक बन पाया हूं.
अगर पूरी खबर पढ़नी है तो यहां क्लिक कर लीजिए, बेटे ने बताया है दर्द
जिन्हें इनसे मिलने का, पढ़ने का, कुछ भी सीखने
का मौका मिला होगा वो समझते हैं कि, वो कौन थे और कितना महत्वपूर्ण थे. ऐसे व्यक्ति को अपने ही
राज्य में अपने ही शहर के अस्पताल में जगह नहीं मिली. क्या वो बेहतर इलाज के लिए एक
बिस्तर के भी हकदार नहीं थे?
मुख्यमंत्री ने शोक जताया लेकिन इस हत्या पर चुप रहे. राज्यपाल ने लापरवाही पर दुख व्यक्त किया. बस….
इतना ही अधिकार था उनका ? जिन 8 अस्पतालों
में बेहतर इलाज के लिए भटकते रहे, क्या उनकी जांच नहीं होनी चाहिए ?
सच में बिस्तर नहीं थे या बड़े अधिकारियों की पैरवी पर पहले
से बुक कर लिये गये थे, बिस्तर खाली
इसलिए रखे गये ताकि बड़ी पैरवी पर उनका इस्तेमाल कर सकें.
पहले भी अव्यवस्था के कारण हुई हत्या पर अपनी आवाज बुलंद करता रहा हूं, एक बार फिर कह रहा हूं ताकि आईने के सामने खड़ा रह सकूं, खुद को पत्रकार कह सकूं. भले आपतक मेरी आवाज ना पहुंचे लेकिन अपनी आवाज ऊंची कर रहा हूं. उनकी मौत
से जुड़े मेरे कई सवाल हैं, जिनका जवाब चाहता
हूं मैं, मुख्यमंत्री,
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री, अस्पताल
प्रबंधन के लोग जिनके पास भी जवाब है,
उन्हें देना चाहिए. अगर सच में इन अस्पतालों में एक बिस्तर
भी खाली नहीं थे, तो उस दिन का रजिस्टर चेक करके बताइये कि क्या सच में उस दिन किसी
को अस्पताल में जगह नहीं मिली.
क्या आप इलाज के अभाव में किसी अपने को खोने का दर्द समझ सकते हैं
अगर भरती हुई, तो किसकी पैरवी पर हुई. नहीं हुई, तो कबतक नहीं हुई और अगर बाद में हुई,तो किसका बिस्तर खाली हुआ, तो दूसरे
को जगह मिली. अगर पैरवी के इंतजार में डॉ गोंझू को जगह नहीं मिली, तो दोषी
कौन है पैरवी करने वाला अधिकारी, पैरवी के
इंतजार में बिस्तर खाली रखने वाला अस्पताल प्रबंधन ? अगर ये सब हैं ,तो सब को कड़ी से
कड़ी सजा मिलनी चाहिए. मैं तो स्पष्ट मानता हूं कि ये साधारण मौत नहीं है. राज्य की व्यवस्था के द्वारा
की गयी हत्या है. अगर आप भी ऐसे ही चुप रहने की आदत डालेंगे, तो एक दिन आईने के सामने खड़े नहीं रह पाायेंगे..
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