झारखंड विधानसभा में पत्रकारों के धरना पर बैठने की खबर पहले मेरे दफ्तर पहुंची. फिर मेरे दफ्तर के साथियों से मुझतक. मैं उस दिन विधानसभा में था जैसे ही सत्र खत्म हुआ दफ्तर वापस लौट चुका था. जबतक दफ्तर पहुंचा खबर पहले से मेरा इंतजार कर रही थी और एक के बाद एक कई सवाल साथियों ने पूछ लिये, कुछ देर बाद मोबाइल पर कुछ वीडियो क्लिप और अंत में एक पोस्ट के माध्यम से मामले को समझने की कोशिश की.
पत्रकारों के धरना का वीडियो भी इस लिंक पर आपको मिल जायेगा, अगर देखना चाहें तो
साफ है कि ग्राउंड पर इस तरह की घटना इकलौती नहीं है. पहले भी हुई है, अब भी हुई और आगे भी होगी. कई बार पत्रकार आपस में टकरा जाते हैं, तो कभी धक्का मुक्की में सुरक्षा कर्मियों से. ये काम का हिस्सा है, हमारा भी और उनका भी. हां ये जरूर है कि इस तरह के कड़वे अनुभव पत्रकारिता के सफर में याद रह जाते हैं. मेरे भी हैं और आज भी जेहन में ताजा हैं.
झारखंड में सिर्फ राज्य के राजनीतिक हालात को लेकेर चर्चा नहीं चल रही है बात पत्रकारिता की भी है. आप कई फेसबुक पोस्ट पर कई तरह के सवाल देखेंगे और जवाब नदारद हैं, पिछले कई दिनों से हम पत्रकारों के लिए मुख्यमंत्री आवास ही दफ्तर बना था. मुख्यमंत्री आवास के अंदर भी और बाहर भी पेड़ की छांव ही हमारे लिए राहत वाली जगह थी. कभी आवास के अंदर, तो कभी गेट के बाहर हमारी निगाहें हर वक्त मुख्यमंत्री आवास में हलचल ढूढ़ रही थी . सोशल मीडिया पर अपने ही पत्रकार साथियों के पोस्ट देख रहा था जिसमें एक प्रेस कॉन्फेंस की तस्वीर वायरल थी. तस्वीर में चर्चा पत्रकार और पत्रकारिता पर थी. इन सभी घटनाओं को देखते हुए मेरे मन में भी कई सवाल उठे और जवाब भी मिले. (इससे पहले की आप प्रतिक्रिया दें आग्रह है कि इसे पूरा पढ़ लें)
क्या यही असल पत्रकारिता है ?
राज्य की सरकार गिरना यह छोटी खबर तो नहीं है. इससे जुड़ी खबरों के लिए मेहनत करना ही, तो पत्रकारिता है. इस बड़ी खबर के लिए कुर्सी मिले ना मिले कहां मायने रखता है, वैसे भी जिनकी कुर्सी खुद खतरे में हो वो… खैर
राज्य में इससे बड़ी और क्या खबर हो सकती है कि राज्य का भविष्य क्या है, पता नहीं. पत्रकार मुख्यमंत्री आवास की तरफ देख रहे हैं, मुख्यमंत्री राजभवन की तरफ. सूत्र अलग- अलग तरह की जानकारियां दे रहे हैं कुछ खबर बन रही है, तो कुछ चर्चाओं में दबी रह जा रही है. कौन हनुमान, कौन विभिषण ? बाकि जिनके विदेशों से कपड़े आते हों लेकिन साहेब दिल्ली से अंडरगारमेंट्स खरीदते हैं यह सबसे बड़ी खबर है.
पत्रकारिता की जिम्मेदारी किसके कांधे पर है ?
सोशल मीडिया से लेकर हम पत्रकारों के बीच हो रही चर्चाओं में इसे लेकर चिंता, तो जरूर है. कई पुराने पत्रकार नये पत्रकारों के सवालों पर मुंह बिचका लेते हैं, कई नये पत्रकार पुराने पत्रकारों के बेमतलब सवालों से परेशान रहते हैं. नेता, मंत्री, विधायक या मुख्यमंत्री पत्रकार और पत्रकारिता को लेकर क्या सोचते हैं, सभी पत्रकार जानते हैं.
इस सवाल के जवाब में एक सवाल है, खबर पाने के लिए पत्रकारिता में कोई सीमा तय की गयी है क्या ? इस सवाल का जवाब दे दीजिए आपके सवाल का जवाब इसी में है. क्या आपने चोरी, झूठ, घूस खबरों के लिए यह सब नहीं किया…
क्या पत्रकार ठीक से इस मामले को आम लोगों तक पहुंचा पा रहे हैं ?
यह पूरा मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा है. मामले की गंभीरता को समझना चाहिए कि एक व्यक्ति पद पर रहते हुए अपने ओहदे का लाभ उठाकर अनुचित ढंग से पैसे कमा रहा था. इस मामले में सुनवाई हुई है, अगर सदस्यता गयी भी है, तो वह भ्रष्टाचार का दोषी है. इस पर फोकस किये बगैर पत्रकार यह चर्चा कर रहे हैं कि कैसे मुख्यमंत्री दोबारा इस पद पर आसानी से बैठ जायेंगे.
सवाल है कि सजा मिली कि नहीं ? सजा मिली, तो किसे और कैसे ? दोबारा चुनाव हुए भी, तो पैसा आम लोगों की टैक्स का जायेगा. क्या यह पूरी प्रक्रिया का मजाक बनाने जैसा नहीं है. बिल्कुल है…
जरूरत है, कैमरा मुख्यमंत्री आवास से मोड़कर आम लोगों तक ले जाया जाये. उनसे सवाल- जवाब किये जायें कि वह इस पूरे मामले को कितना समझ रहे हैं, नहीं समझ रहे हैं, तो समझाया जाये लेकिन इससे होगा क्या ? क्या आम लोग न्यूज चैनल और अखबार पढ़कर अपने विचार बनाते हैं ?
क्या विधायक बिक जायेंगे ?
अगर कोई बिकने को तैयार है, तो खरीदने वाला उस तक पहुंच जायेगा. एक छोटी सी बस ट्रिप उसे बिकने से नहीं रोक सकती. विधायक जनहित का काम, तो किसी भी पार्टी में रहकर कर सकते हैं…विचारधारा ? नेता को पार्टी या विचारधारा बदलने में उतना ही वक्त लगता है जितना नेताओं को मीडिया में बयान देकर पलटने में. एक दिन पहले जो नेता किसी भी तरह की यात्रा से इनकार कर रहे थे दूसरे दिन अपने ही बयान पर कायम नहीं रह सके. लतरातू से रायपुर तक की यात्रा हो गयी.
कुल मिलाकर ये कि पत्रकार उन खबरों के पीछे भागते हैं, जिन्हें आप देखना चाहते हैं. आप अगर देश की बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और आपसे जुड़ी खबरों को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो पत्रकार कैसे देंगे. आप नेताओं की दौड़ भाग देखना चाहते हैं, तो पत्रकार दिखा रहे हैं फिर इसके लिए सुरक्षा कर्मियों से लड़ना पड़े या गाड़ी जबरिया सीएम आवास के बाहर खड़ी करनी पड़े या फिर विधानसभा में धरना देना पड़े. पत्रकारिता की दिशा अकेला पत्रकार तय नहीं करता, जनता करती है ऐसा तो है नहीं कि पत्रकार कुछ भी दिखायेंगे आप देखेंगे. आपने तो न्यूज चैनलों पर सांप और नेवले की लड़ाई देखी है, कई हॉरर कहानियां देखी है. हर रोज सुबह अखबार में अपना भविष्य भी देखते हैं. अखबार के राशिफल में नहीं, खुली आंखों से अपना भविष्य देखिये…
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