झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष |
झारखंड स्थापना दिवस पर आपने भगवान बिरसा मुंडा के गांव का हाल, उनके परिजनों की स्थिति पर ढेर सारी रिपोर्ट देख ली,पढ़ ली होगी. अब एक और रिपोर्ट पढ़िये ये है झारखंड स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी की. इस रिपोर्ट में सिंहभूम जिले के बोरम की एक महिला का जिक्र है, जो पेड़ पर रहने के लिए मजबूर है. इस पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी पढ़ियेगा, कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि हम उनके साथ मानवों की तरह नहीं जंगली की तरह व्यवहार कर रहे हैं. जंगल उन्ही का है, वहीं से खनिज निकाला जा रहा है. बदले में हम उन्हें क्या दे रहे हैं ? हाईकोर्ट का यह सवाल बड़ा है स्थापना दिवस के मौके पर जश्न मना रही सरकार के पास इसका कोई जवाब है.
दुखद है कि भगवान बिरसा मुंडा के गांव का विकास अबतक नहीं हुआ, गांव में सुविधाओं का अभाव है. उनके परिजन अब भी तकलीफ में हैं लेकिन झारखंड का अर्थ सिर्फ भगवान बिरसा मुंडा का गांव उलिहातू नहीं है. स्थापना दिवस पर सरकार के साथ- साथ ज्यादातर पत्रकार, मीडिया हाउस उलिहातू की तस्वीर, भगवान बिरसा मुंडे के वंशजों का हाल और उनकी तंगहाली पर स्टोरी करते हैं. इस कैमरे के फोकस में कई ऐसे नायक जिन्होंने आजादी के लिए बिलदान दिया. अलग राज्य के लिए लड़े वो दूर रहते हैं.
क्या सच में जितने भी नायक जिन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी, अलग राज्य के लिए आंदोलन में अपना सबकुछ खो दिये यही चाहते थे ? बात सिर्फ उनके गांव उनके परिजनों की होनी चाहिए ? क्या उनका सपना ये नहीं था कि सरकार की कमियां, नीतियों पर चर्चा हो, उन्हें आईना दिखाया जाये, वैसे गांवों की चर्चा नहीं होनी चाहिए जिन्हें नेताओं ने गोद लिया और घोषणा के बाद गोद से उतारकर उसी जमीन पर छोड़ दिया ? आजादी और अलग राज्य के लिए लड़े हर नायकों के गांवों का भी रुख नहीं किया जाना चाहिए ?
सच बताइये, क्या आपको झारखंड के हाल को समझने के लिए सिर्फ भगवान बिरसा के गांव जाने की जरूरत है ? हर बार रोजगार के लिए हो रहे आंदोलन, राज्य में भूख से हुई मौत, स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल, आपके अपने गांव या शहर की स्थिति, शिक्षा, अबतक के विकास को समझने के लिए काफी नहीं है.
कहते हैं देश का भविष्य युवाओं के हाथ में है, तो जाहिर है कि राज्य का भविष्य भी युवाओं के हाथ में ही होगा. झारखंड में रोजगार की समस्या पर कुछ भी लिखना कम है. झारखंड लोकसेवा आयोग में नियुक्ति को लेकर अबतक विवादों का सफर खोजकर पढ़िये, आपको रोजगार की स्थिति का पता चल जायेगा.
राज्य की राजधानी में आदोलन कर रहे युवाओं से जा कर मिलिये इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिनके पास नौकरी है लेकिन अब किसी की नौकरी पर संकट है, तो आंदोलनरत है, तो कोई परीक्षा देने के बाद अबतक नहीं मिली नियुक्ति से परेशान है. राज्य के 65 हजार पारा शिक्षक आंदोलनरत हैं. बेरोजगार युवक तो अबतक चुप हैं अगर वो भी साथ हो गये तो आंदोलन के दायरे का अंदाजा लगा लीजिए.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMII) के आंकड़े के अनुसार, अप्रैल 2021 में झारखंड की बेरोजगारी दर 16.5 फीसदी रही. साल 2020 में नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़े बताते हैं झारखंड में हर पांच में एक युवा रोजगार की तलाश में है. न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की 54 आदिवासी-मूलवासी संगठन नाराज हैं. आर-पार की लड़ाई लड़ने को तैयार है.
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मुद्दा सिर्फ रोजगार का नहीं है. झारखंड के विकास के सफर को सीमित होकर मत देखियेगा. अपने शहर से निकलकर उलिहातू ना सही किसी भी गांव की यात्रा पर निकलिये और फिर झारखंड के विकास के सफर को समझिये.
अगर आंकड़ों से ही आप विकास समझ सकते हैं, तो युवाओं से होकर बच्चों की बात कर लेते हैं. राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के अनुसार राज्य के 42.9 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. यह संख्या देश में सर्वाधिक है. एनीमिया से 69 प्रतिशत बच्चे और 65 प्रतिशत महिलाएं प्रभावित हैं.
झारखंड राज्य के 24 में से 12 जिले शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं. एक पुरानी रिपोर्ट के अनुसार राज्य भर के 14 से 18 आयु वर्ष के 58.7 प्रतिशत युवाओं को लिखना-पढ़ना ही नहीं आता है.
साल 2017 से 18 में 17 लोगों की मौत भूख से हो गयी थी. इससे ज्यादा आंकड़े चाहते हैं तो उस भ्रम से बाहर निकलिये जिसमें आपको एक सीमित दायरे में सोचने पर मजबूर किया जा रहा है आंकड़े ढेरों हैं लेकिन इनमें से कई आंकड़ों को सन-प्रशासन नहीं मानता इससे फर्क नहीं पड़ता कि किसकी सरकार है. इतने सालों के सफर में हमारा विकास किन क्षेत्रों में हुआ ? अलग राज्य का सपना जिन उद्देश्यों के साथ देखा गया था,उसे कितना पुरा कर सकें ? ऐसे कई सवाल हैं जिन्हें स्थापना दिवस के मौके पर खुले मंच में सरकारी कार्यक्रम के दौरान सरकार के मुखिया से पूछा जाना चाहिए.
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