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आप आजाद हैं या गुलाम ?

kangna ranaut

हम आजाद हैं या नहीं ? आजादी का सही अर्थ क्या है ? आप बड़े लेखकों की किताबें खोलिये और उससे आजादी का अर्थ समझते रहिये मेरे लिए आजादी का मतलब उन किताबों से इतर हो सकता है. मेरी अपनी समझ है अपना नजरिया है लेकिन देश की आजादी के लिए बहे खून और ना जानें कितनों की बलिदान के बाद कोई ये कहे कि यह भीख में मिली आजादी है, तो मेरा खून खौलता है. आपका ? 

“देश लीज पर आजाद हुआ है, आजादी भीख में मिली है, इस आजादी में गांधी की कोई भूमिका नहीं है, देश तभी आजाद होगा जब हिंदू राष्ट्र बनेगा “. इस आधार पर आजादी को समझने वालों के पास अपना तर्क है, कई किताबों और चिट्ठियों का आधार है. इनके सारे आधार निराधार हैं अगर इनकी मंशा  देश को बांटने, राजनीति करने और आजादी को समझे बगैर देश को एक बार फिर गुलाम मानसिकता की तरफ धकलेने की तरफ है. 

देश की आजादी में गांधी का योगदान 

आप किसी भी विचार, पक्ष या मुद्दे पर अपनी सहमति असहमति से पहले इसे समझिये, नहीं समझ पाते तो पढ़िये और फिर भी संशय हो तो एक लंबी परिचर्चा के बाद अपनी राय बना लीजिए. भीड़ का हिस्सा मत बनिये जो कुछ भ्रामक तर्कों और तथ्यों के आधार पर आपको अपनी ही आजादी पर शक करने को मजबूर कर दे. गांधी को पढ़ने और समझने में वक्त लगेगा खासकर आज के दौर में जहां गाधी पर कई तरह के दुष्प्रचार हैं. गांधी- नेहरु का बुरा बताकर आजादी के दूसरे नायकों के पीछे छिपने की कोशिश करने वाले यह भूल जाते हैं कि आजादी की लड़ाई में कई ऐसे नायक हैं जिनकी पहचान तक उजागर नहीं है. कई लोग हैं जिन्होंने अंग्रेजों की जेलों में यातनाएं झेली और गुमनानी में ही शहीद हो गये. देश की आजादी के लिए लड़ने वालों के खून का हर एक कतरा आज आजाद भारत में सांस लेने वालों की रगों को राहत दे रहा है. सभी का खून शामिल है इस देश की मिट्टी में. 

हिंदू – मुस्लिम और गाँधी नेहरु

देश को दो भागों में बांटने की कोशिश है. हिंदू- मुस्लिम में और गांधी नेहरु के विरोध में. इनमें जितनी मेहनत, जितना पैसा बर्बाद हो रहा है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. अंग्रेजों ने जाते – जाते जिस फार्मूले से इस देश में इतने सालों तक राज किया वही फार्मूला हम पर लागू करने की कोशिश है. फूट डालो और शासन करो की नीति एक बार फिर दोहरायी जा रही है. हमें अपने इतिहास से सीखना चाहिए, क्योंकि परिणाम हमारे सामने है. आजादी में किसका कितना योगदान है इसके मूल्यांकन के लिए मजबूत आधार बनाइये और जिनसे प्रभावित हैं उनकी जीवनी पढ़िये और हर किसी को अधिकार है कि वह अपने लिए अपने तर्कों के आधार पर एक नायक चुने. बॉलीवुड में कोई आपको जिद तो नहीं करता कि आप सलमान खान को पसंद करें या रणबीर सिंह को.

अब थोड़ा तथ्य समझिये 

अबतक मैंने अपनी समझ के आधार पर अपनी बात रखी है. अब तथ्यों के आधार पर कुछ बातें समझियेगा. यूके पार्लियामेंट की वेबसाइट पर 1919 से लेकर 1947 तक भारत को स्वायत्ता/स्वतंत्रता देने के लिए पास किए गए हर एक्ट के बारे में बताया गया. कैसे विश्वयुद्ध-1 के बाद भारत में राष्ट्रवादी आंदोलनों ने जोर पकड़ा. इस आंदोलन में किसी एक व्यक्ति, संस्था या संगठन का नाम नहीं है इसमें आंदोलन में शामिल हर व्यक्ति का योगदान माना जाना चाहिए. 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने दुनिया भर में ये परसेप्शन बनाने की कोशिश की थी कि भारत में सांप्रदायिक, हिंसक लोग रहते हैं. “सांप्रदायिक ” इस पर गौर कीजिएगा. आपकी अपनी समझ है अपना नजरिया है बिल्कुल मेरी तरह सोचते हों जरूरी नहीं लेकिन देश पर, स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान पर कोई सवाल खड़ा करे तो जवाब एक ही होना चाहिए. 

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