हिंदू – मुस्लिम पर लिखने से बचता हूं. क्योंकि आपका एक पोस्ट, एक कमेंट कितना खतरनाक हो सकता है, बेंगलुरू की घटना को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. देश में ऐसी घटनाओं की कमी नहीं है लेकिन ताजा घटना है इसलिए इसका उदाहरण दे रहा हूं. 200 गाड़ियां जला दी गयी, तीन लोगों की मौत हो गयी . कई घरों में तोड़फोड़ हुई. भीड़ किस जात-धर्म की थी ?
मैं मानता हूं, ऐसी भीड़ का कोई जात धर्म नहीं होता. भीड़ होती है बस. ऐसा कौन सा धर्म है, जो दंगा करने की इजाजत देता है. इस भीड़ से अलग मुस्लिम धर्म के भाई भी थे जिन्होंने ह्यूमन चैन बनाकर इस भीड़ को रोकने की कोशिश की. यही भीड़ कभी साधुओं की पीट कर हत्या कर देती है, कभी किसी निर्दोष को सड़क पर मार देती है, कभी सड़क पर तोड़फोड़ करती है. बस नारे अपने सुविधा के अनुसार लगाती है जो धार्मिक हैं..
ऐसी भीड़ मानती है कि ईश्वर सिर्फ उनका है, दूसरों का कोई हक नहीं. ऐसी भीड़ ये मानती है कि ईश्वर ने उन्हें ठेका दे रखा है कि अपमान का बदला सड़क पर तोड़फोड़ करके निर्दोष लोगों को मारकर ही लिया जा सकता है. इस भीड़ में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिनका खुदा से भगवान से कोई परिचय नहीं है, किसी ने दाढ़ी बढ़ाकर टोपी पहन ली है, तो किसी ने माथे पर तिलक लगा रखा है. खुद को धर्म का ठेकेदार मानने वाले ऐसे लोग धर्म के, ईश्वर के असल दुश्मन है.
मुश्किल नहीं है, ऐसे लोगों को पहचानना. देखकर शायद मुश्किल भी हो क्योंकि कभी – कभी फटी हुई जिंस पहनकर स्टाइल मारते हुए निकलेंगे तो कभी – कभी अपने रक्षक वाले लुक में. इंटरनेट ने आपका काम आसान कर दिया है. फेसबुक पर जाइये और आसानी से पहचान लीजिए. हर दूसरे पोस्ट में धर्म पर संकट बतायेंगे, दूसरे धर्म की बुराई करेंगे. खुद कितना ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं वह तो इनका ईश्वर जानें लेकिन विश्वास से कह सकता हूं, दो श्लोक या कुरान की आयत पूछ लेंगे तो पसीने छूटने लगेंगे लेकिन चलें हैं धर्म का प्रचार करने. ये खुद अकेले कमजोर हैं, भगवा वस्त्र या सफेद रंग की जालीदार गोल टोपी पहनकर यह एक गैंग तैयार करते हैं और कहलाते हैं समाजसेवी, धर्मप्रचारक, धर्म रक्षक.
भृगु ऋषि और भगवान विष्णु की कहानी बचपन में स्कूल की किताब में पढ़ी थी. पैगम्बर मुहम्मद की कहानी भी कहीं पढ़ी, एक महिला हर दिन उन पर कीचड़ फेंकती थी और वह हर बार उसी रास्ते से गुजरते थे जहां वह महिला इंतजार करती थी. एक दिन जब महिला नहीं दिखी तोपैगम्बर मुहम्मद उसके घर चले गये, पूछा कहीं आपकी तबीयत खराब तो नहीं हो गयी.
ईश्वर और मेरा रिश्ता बेहद निजी है. मेरी और उनके बीच की बात है. मैं पूजा करता हूं लेकिन डर से नहीं, मैं मस्जिद भी गया हूं और गुरूद्वारे भी. मैं नमाज पढ़ना नहीं जानता ना गुरूवाणी जानता हूं. हाथ जोड़कर उनकी वैसे ही इबादत करता हूं, जैसे ईश्वर की करना जानता हूं.
हां मानता हूं कुछ ऐसे लोग हैं जो खुद के ईश्वर की तारीफ करने के लिए दूसरे ईश्वर की बुराई करते हैं. गलत शब्द लिखते हैं, खूब संख्या है ऐसे लोगों की. अगर किसी ने ईश्वर के बारे में बहुत गलत लिखा, बोला या कोई तस्वीर पोस्ट की है. तो देश में कानून है. सजा दिलाने का तरीका है. इस तरह की तोड़फोड़ तो आप जिसकी इबादत करते हैं वह ईश्वर भी नहीं चाहता . तीन लोगों की जान चली गयी वह कितने दोषी थे. 200 से ज्यादा गाड़ियों को नुकसान पहुंचा उनके मालिकों का क्या दोष था.
इस तोड़फोड़ और हिंसा के बीच एक तस्वीर है जो सुकून देती है. कुछ मुस्लिम भाइयों ने ह्यूमन चैन बनाकर मंदिर की रक्षा की. दंगाइयों को अंदर जाने नहीं दिया. यह उसी भीड़ से निकली अलग भीड़ थी जो धर्म का असल मतलब समझती है, भाईचारा, इंसानियत का अर्थ समझती है बाकि लोग तो जाहिल थे, भटके हुए थे.
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