कोल्हान में अगर नक्सली खत्म हो जाएं ना सर, तो दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में एक होगी। कोल्हान जंगल की पहाड़ी पर मेरे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे और पहाड़ के नीचे एक छोटी सी दुकान चलाने वाले महेश की यह बात मुझे बार- बार याद आ रही थी। पहाड़ की ऊंचाई से मैंने आंख भर कोल्हान के जंगल को देखा यहां की हरियाली और खूबसूरती इसके खतरनाक चेहरे को जंगल के बीच कहीं छिपा लेती है लेकिन सच क्या है ?
कोल्हान युद्ध का मैदान
सच तो यह है कि कोल्हान अब युद्ध का मैदान बन गया है। जिस खूबसूरत जंगल को हमारी नजरें निहार रही हैं उसी जंगल में कई राज्यों के मोस्टवाटेंड नक्सली छिपे हैं। कोल्हान अब नक्सलियों के ईस्टर्न इंडिया का हेडक्वार्टर बन रहा है। यहां एक करोड़ रुपए के इनामी चार नक्सली पनाह ले रहे हैं, गिरिडीह के मिसिर बेसरा उर्फ प्रधान व पतिराम मांझी उर्फ अनल, पश्चिम बंगाल का असीम मंडल उर्फ आकाश और बिहार के प्रमोद मिश्रा उर्फ वन बिहारी और उनका दस्ता इन जगलों में कहीं छिपा है।
हम कोल्हान के गोइलकेरा और मुफस्सिल थाना क्षेत्र के कई गांव में पहुंचे। नक्सलियों ने जगह – जगह पर लैंड माइंस बिछा रखा है। दूसरी तरफ सुरक्षा बल नक्सलियों पर मोर्टार से निशाना साध रहे हैं। इलाके में हो भाषा के लोग हैं तो हिंदी बोलने वाले बाहरी मान लिए जाते हैं। दबी जुबां में सबसे पास एक कहानी है लेकिन कैमरे के सामने सब चुप हो जाते हैं ।
सात लोगों की लैंड माइंस से मौत, 18 से ज्यादा जवान हो चुके हैं घायल
आंकड़े बताते हैं कि अबतक लैंड माइंस से सात लोगों की मौत हो चुकी कितने घायल हैं इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है, गांव में कई धमाकों के शोर मुख्यालय तक पहुंचे ही नहीं। जिन इलाकों में मौत बिछी हो वहां जिंदगी चल सकती है। मौत के इन रास्तों पर हर रोज ना जाने कई गांवों में रहने वाले लोगों की जिंदगी चल रही है। कई गांव से निकले तो वापस नहीं लौट सके।
हर रोज हो रही है मौत |
नक्सली कैंप से मात्र 3 किमी दूर खड़े थे हम
कोल्हान के जंगलों में भटकते – भटकते हम नक्सली कैंप से लगभग 3 किमी दूर ही खड़े थे। गोईलकेरा थाना क्षेत्र के ईचाहातु में जंगल के अंदर रास्ते पर नक्सलियों ने लैंड माइंस बिछा रखा था, जिस रास्ते पर कृष्णा पूर्ति के आखिरी कदम पड़े थे हमारे कदमों के निशान उसके कदम को मिटाते हुए आगे बढ़ रहे थे। जंगल के बीच एक घर जिसके 100 मीटर की दूरी पर ही धमाके में घर के मुखिया की मौत हुई।
पत्नी नद्नी पूर्ति अपने पति के पीछे थीं। उनके बायें आंख में चोट आयी वह एक आंख से अब देख नहीं पाती। जब हम उनके घर पहुंचे तो वो बाजार गयीं थी। पति के बाद चार बच्चों की जिम्मेदारी के बोझ ने उनकी आंखे जरूर छिन ली थी लेकिन कांधे को मजबूत कर दिया था। नद्नी के बेटे मधुसूदन ने हमारे लिए घर के अंदर से खाट निकाली और बैठने का इशारा किया, इससे पहले कि हम कोई सवाल करते गांव के एक व्यक्ति ने आंखों से इशारा किया तो उसने बताना शुरू किया, मैं घर पर ही था अचानक बहुत तेज आवाज आयी। मैं जानता था कि मेरे मां बाबा ही अभी उस तरफ गये हैं, मैं समझ गया था कि यह आईईडी बम की आवाज है।
जमीन के अंदर बिछी है मौत |
मैं उस रास्ते पर भागा तो देखा मां की आंख में चोट आयी है खून निकल रहा है, मां ने खुद को संभालते हुए बाबा की तरफ इशारा किया तो मैं उनके पास भागकर पहुंचा तो देखा उनके दोनों पैर उड़ गये, हाथ की हथेलियां उड़ गयी थीं। मैं नीचे बैठकर अपनी गोद में उनका सिर रखकर आवाज देने लगा लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। वो मर चुके थे।
जहां हुआ धमाका वहां खड़े थे हमारे कदम
मैंने मधुसूदन से पूछा कि क्या तुम दिखा सकते हो ये सब कहां हुआ तो उसने बैठे – बैठी ही इशारा किया जब मैं उस तरफ बढ़ने लगा तो गांव के लोग आगे जाने से मना करने लगे, मैंने मधुसूदन से पूछा तुम कहां तक गये थे तो मधुसूदन मेरे साथ आगे बढ़ने लगा। हम उस जगह तक पहुंचे जहां धमाका हुआ था। रास्ते पर नक्सलियों ने पेड़ काटकर रखे थे हमें साफ इशारा था कि आगे रास्ता बंद है। मधुसूदन ने बताया मजबूरी में पढ़ाई छोड़ दी, अब परिवार की जिम्मेदारियां है, पिता के अंगूठे से राशन मिलता था अब वो नहीं हैं तो सब बंद है। हमें कोई मदद नहीं मिल रही, हमारी मदद कीजिए कि हम सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें…..
हम जब मधुसूदन के घर से निकलकर पक्की सड़क पर पहुंचे तो एसपी आशुतोष शेखर से फोन पर यहां की स्थिति बताई उन्होंने फोन पर ही भरोसा दिया कि नक्सली हमले में मारे गये लोगों के परिजन को नौकरी मिलती है। हमारा पूरा ध्यान है कि इनकी मदद करें।
जब हम एसपी से बात कर रहे थे तो गांव के वार्ड पार्षद लखन सिंह मारला हमारे साथ थे वो कहते हैं सर हम पुलिस और नक्सलियों के बीच फंसे हैं। हमारे गांव में अब तक दो धमाके हुए एक बार में दस आईईडी विस्फोट हुए थे। इसके कुछ दिनों बाद दूसरा धमाका हुआ। आज भी गांव के लोग जंगल नहीं जा पा रहे, गांव के लोग पलायन कर रहे हैं। गांव के आधे से अधिक लोग निकल गये हैं। कोई गुजरात तो कई जमशेदपुर जा रहे हैं।
जीने के लिए गांव में बिछी मौत से दूर जा रहे हैं गांव के लोग
इस गांव के ज्यादातर लोग अब पलायन कर रहे हैं। जंगल से आय खत्म तो गांव में जीना मुश्किल होने लगा है। कुइड़ा पंचायत में कुल मिलाकर सात गांव आते हैं। कुइड़ा पंचायत के मुखिया को इलाके के लोग खूब पसंद करते हैं, दूसरी बार चुनाव जीतकर मुखिया बने हैं। हम पंचायत भवन उनसे मुलाकात करने पहुंचे तो हमें कुर्सी देकर हरे रंग की प्लास्टिक बोतल लेकर बाहर चले गये थोड़ी देर बाद उसमें चापाकल से पानी भरकर लाये और हाथ बढ़ाते हुए कहा गर्मी बहुत है पानी पी लीजिए।
डॉ दिनेश चंद्र बोयपाई ने ग्रामीणों के आईईडी चपेट में आने के सवाल पर कहा, हमारे गांव के लोग ही सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। हमारी पंचायत के ज्यादातर गांव के लोग जंगल पर निर्भर हैं. तेंदू पत्ता, महुआ, लकड़ी लेकिन लोग जंगल नहीं जा पा रहे। घर में जलावन के लिए लकड़ी नहीं है। उज्जवला योजना है लेकिन उनके पास गैस भराने के पैसे नहीं है। यहां लोग जंगलों पर इतने आश्रित है कि जीना यहां और मरना भी यहां है। मजबूरी इतनी है कि आज भी लोग जान हथेली पर लेकर जंगल जा रहे हैं। एक तरफ नक्सली तो दूसरी तरफ सुरक्षा बल ग्रामीण मोर्टार दागे जाने की शिकायत करते हैं।
150 से ज्यादा लैंड माइंस इस इलाके में बिछे हैं
गोईलकेरा थाना क्षेत्र से होते हुए हम दूसरे गांव का रुख कर रहे थे ईचाहातु से इचागोड़ा जानेवाली कच्ची सड़क पर हम उस जगह पर ठहरे जहां से सुरक्षा बलों ने प्रेशर बम बरामद किया था।
कोल्हान जंगल के कई इलाकों में 150 से ज्यादा लैंड माइंस बिछे हैं, सुरक्षा बलों ने कई बरामद किया है तो कई नक्सलियों की तरफ से हर रोज लगाए जा रहे हैं। सुरक्षा बलों के लिए चुनौती यह भी है कि वह पेड़ पर बांधकर एक पाइप बम भी लगाते हैं।
कोल्हान के कई गांवों का दौरा करने के बाद हम सीआरपीएफ 60 बटालियन कुइड़ा कैंप पहुंचे अधिकारियों ने हमसे बातचीत करने से इनकार कर दिया कहा हमलोग इसके लिए अधिकृत नहीं है लेकिन बैठकर बातचीत में बताया कि कैसे नक्सली मेटल डिटेक्टर को चकमा देने के लिए पेड़ पर पाइप और लोहे की मदद से बम लगाते हैं। इस तरह की बम की चपेट में ज्यादा जवान आ रहे हैं।.
खूबसूरत जंगलों में बिछी है मौत |
हमने चाईबासा के मुफस्सिल थाना के थाना प्रभारी पवन चंद्र पाठक से समय मांगा उन्होंने सवालों का जवाब देते हुए कहा मेरे थाना क्षेत्र में सात ऐसे गांव हैं जो आईईडी माइंस की रडार में है। हम सीआरपीएफ के जवानों के साथ मिलकर प्रयास कर रहे हैं सड़क पर लगाई गयी आईईडी पहले निकाली जाए और सफल भी हो रहे हैं। गांव के लोगों का जीवन जंगल पर निर्भर है वह प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण नक्सल विरोधी अभियान का विरोध क्यों कर रहे हैं। इस वाल पर थाना प्रभारी कहते हैं. उन इलाकों के ग्रामीण विरोध कर रहे हैं जहां हमारा कैंप नहीं है। जिस जगह कैंप है वहां के लोग तो सुरक्षित हैं।
कब खत्म होगा इस इलाके में नक्सल
अभियान कबतक सफल होगा कब यह इलाका नक्सलमुक्त होगा, इस सवाल पर उन्होंने कहा, देखिए मैं कोई समय सीमा तो नहीं दे पाऊंगा, यह कोई भी नहीं दे पायेगा। राजधानी रांची से कोल्हान का इलाका लगभग 160 किमी की दूरी पर है लेकिन इन इलाकों के धमाके का शोर रांची तक हेलीकॉप्टर की आवाज से पहुंचता है जिसमें घायल जवानों को मेडिका अस्पताल में भर्ती करने के लिए लाया जाता है। अक्सर इन इलाकों से ग्रामीणों के मारे जाने की खबर आती है। आज ग्राउंड पर हालात देखकर यह समझना आसान हो गया कि धमाकों के आवाज के पीछे का डर कितना बड़ा है।
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