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ना मैं नमाजी हूं, ना मैं पुजारी

ना मैं नमाजी हूं,ना मैं पुजारी, तो फिर मैं कौन हूं ? मामूली सा इंसान हूं. मैं बेवजह टीका या टोपी लगाकार दफ्तर नहीं आता. मैं साधारण सी चेक शर्ट और पैंट पहनता हूं. शनिवार को कभी – कभी टीशर्ट की इच्छा हुई, तो पहन ली लेकिन कॉलर वाली. मैं बिना कॉलर वाली टीशर्ट सिर्फ घर पर पैजामे के साथ पहनता हूं . मैंने ना टिक रखी है, ना चेहरे पर बड़ी – बड़ी दाढ़ी.  आप पहचानते तो हैं मुझे, अरे कई बार तो मिले हैं हम.  सड़क पर ट्रैफिक जाम में हम और आप आस- पास तो खड़े लाल बत्ती के हरे होने का इंतजार कर रहे थे. आपने देखा भी मुझे, मैंने काले रंग की एक बैग जिसमें लंच बॉक्स और लाल रंग की बोतल जिसका आधा पानी खत्म हो चुका था, टांगे रखी थी. 

मैं नाम इसलिए नहीं बता रहूं कि आप मेरे नाम को  किसी भी धर्म या जाति से जोड़कर मुझे देखेंगे फिर मैं, जो कहने जा रहा हूं उसे हिंदू या मुस्लिम के खांचे में रखेंगे फिर मुझे दूसरे खेमे से गालियां मिलेंगी. हां, मैं इतनना जरूर कह सकता हूं, मेरे और ईश्वर का रिश्ता बहुत सरल है. आजतक किसी ने मेरे सामने मेरे ईश्वर के लिए बुरा नहीं कहा, टीवी चैनल, डिबेट या व्हाट्सएप के फॉरवड में ही मैंने अपने ईश्वर के खिलाफ या उनके विरोध में बयानबाजी पढ़ी, सुनी और देखी है. वो इतना ताकतवर है कि उसके हक के लिए मुझे लड़ने की जरूरत नहीं है. ये तो वही बात हो गयी कि खली से मैं कहूं कि आप बैठिये आज रेसलिंग मैं करूंगा… 

 मैं एक साधारण सा इंसान हूं, जो हर सुबह एक तय शिफ्ट पर अपनी नौकरी के लिए निकल जाता है, ईमानदारी से काम करता है, दोस्तों के साथ बेहतरीन वक्त बिताता है, परिवार को समय देता है और हर दिन इसी तरह काटता है. मेरे धर्म की मजबूती का मुझे पता है इसलिए मैं उसके कमजोर होने की चिंता नहीं करता. ऐसा नहीं है कि मैं चिंता नहीं करता बिल्कुल करता हूं  दुध, सब्जी, पेट्रोल, डीजल और खाद्य पदार्थ के दाम बढ़ते हैं, तो चिंता बढ़ जाती है.मैं चिंता करता हूं कि बेहतर इलाज कम पैसे में कैसे मिल पायेगा. मैं चिंता करता हूं, घर का किराया और महीने का खर्च होने के बाद मैं कितने पैसे बचा रहा हूं. हर महीने क्रेडिट कार्ड का बढ़ता बिल कैसे खत्म हो इसकी चिंता है मुझे. नौकरी में हजार तरह की चिंताएं हैं, मेरी चिंताएं दूसरों से अलग है.

मैं चिंता के साथ- साथ  देश की रक्षा में खड़े हर एक जवान का सम्मान करता हूं, मुझे गर्व है कि मैं एक भारतीय हूं। कभी कभी मैं गुस्सा भी करता हूं, नेताओं के आने पर ट्रैफिक पर मुझे रोककर नेताओं की गाड़ियों की स्पीड से नाराज होता हूं. 

मैं शाम को  टीवी डिबेट देखकर अपनी पिछड़ी सोच या कट्टर ना हो पाने का दुख जरूर अपने परिवार से साझा करता हूं. मेरे पास इतना वक्त ही नहीं है कि मैं बेवजह चाय की टपरी पर धर्म की डिबेट में शामिल हो सकूं. किसी रैली में शामिल हो सकूं. मैं सच में बेहद साधारण सा इंसान हूं. अगर आप बेहद खास इंसान है तो अपनी खासियत का सही दिशा में इस्तेमाल कीजिए। सड़क पर दौड़ने में , पत्थर फेंकने में या निशानेबाजी में माहिर हैं तो देश के रत्न है आप भारत के लिए स्वर्ण ला सकते हैं बस इसे स्टेडियम में दूसरे देशों के खिलाड़ियों को हराकर हासिल करना होगा, यकीन मानिये आपको टीवी पर देखकर पूरा देश तालियां बजा रहा होगा। 

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