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पत्रकारों की इस भीड़ में आप कहां खड़े हैं ?

मीडिया का दायरा बढ़ रहा है. पहली लाइन ही निरस हैं ना. अब हर जगह रस ढूढ़ने वाले हम,  अच्छी खबर कम और बॉलीवुड के वीडियो और चटाकेदार खबरें खूब पढ़ते हैं. हर दिन बर्गर, पिज्जा नहीं खा सकते.

यह मेरा लेख भी दाल- भात की तरह समझिये, अगर अच्छा लगे, तो अपने हिसाब से अचार या भुजिंया भी जोड़ सकते हैं, हां तो बात हो रही थी अपने क्षेत्र की यानि मीडिया की, पहले प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक थे अब वेब भी है. वेब की खासियत यह है कि यह तेजी से फैल रहा है, छोटे- छोटे शहर में न्यूज पोर्टल हैं.

देश में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 2024 तक बढ़कर 1.42 अरब हो जाने का अनुमान है, आपको बढ़ते बाजार का अनुमान है. मीडिया अब कायदे से फायदे का सौदा है. पहले करोड़ों खर्च होते थे, अब आप मुफ्त में सारी चीजें कर सकते हैं. फेसबुक पेज , यूट्यूब पर अकाउंट बनाने और ब्लॉग में लिखने का कोई पैसा नहीं लगता. कौन सा व्यापार होगा, जिसमें जीरो निवेश के साथ कमाई कर सकते हैं, हां कुछ जरूरी चीजें है जैसे- मोबाइल, इंटरनेट कनेक्शन लेकिन आज रोटी, कपड़ा और मकान की तर्ज पर यह मूल सुविधाओं में गिने जाने वाली चीजें हैं.

भीड़ बढ़ रही है 
भीड़ बढ़ रही है लेकिन विश्वसनियता बढ़ी है या घटी है ? जवाब आप जानते हैं. हर दिन नयी वेबसाइट , नया न्यूज चैनल, मैगजीन और पत्रकारों की बढ़ती संख्या संकेत है कि कहने वालों की कमी नहीं है लेकिन इतने कहने वालों में सुनने वाले कितने हैं. सरकार की मसलन, योजनाओं की, नेताओं के भाषण की, वादों की आवाज आपतक पहुंच रही है तो समझिये सुनने वाले कौन हैं, कितने हैं, किस तरफ हैं. अगर इन योजनाओं का लाभ ना मिलने से परेशान जनता की आवाज, पेंशन के लिए परेशान विधवाओं की आवाज, बुजुर्गों की आवाज, बेरोजगारों की आवाज, पीड़ितों की आवाज सुन रहे हैं तो ये भी सोचियेगा यह आपतक पहुंचाने वाले कौन है , कितने हैं ?

वेबसाइट में  ज्यादा खर्च नहीं हुए लेकिन बने कमाई के लिए हैं, छोटी मैगजीन हैं, जिनकी छपाई की खर्च विज्ञापन की आमद से होता है. कुल मिलाकर आमद अहम है. अहम इसलिए भी कि खबर लाने वाले को पैसा चाहिए, खबर लिखने वाले और आपतक पहुंचाने वाले को भी पैसा चाहिए, कितना चाहिए ? ये मत पूछिये, इसकी कोई सीमा नहीं है. कमाई कितनी भी हो किसे कम लगती है हां, एक सरल पत्रकार से पूछिये तो सिर्फ इतना कहेगा इतना दे दीजिए कि परिवार चल सके. अब सोचिये कि ये अथाह पैसा जाहिए किसको ?
चिंता किसे करने चाहिए

चिंता किसे करनी चाहिए ? 
सवाल बहुत बड़ा नहीं है लेकिन इसके जवाब का दायरा बड़ा है,   खबर लाने, लिखने और पहुंचाने वाले को ही चिंता करनी चाहिए. आप जिसकी खबर ला रहे हैं. उसका विश्वास उठ रहा है, जिसके लिए ला रहे हैं उसका विश्वास उठ रहा है. कहीं कहीं तो पत्रकारों का विश्वास भी इन दोनों से उठ रहा है. इसे उठते विश्वास को बैठाया कैसे जाए, उपाय है कि आप करना क्या चाहते हैं, ये सोचिये. बचपन में हमसे हमेशा एक सवाल पूछा जाता था, बड़े होकर क्या बनागे, अब अपन, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आईएस, सीएम, पीएम तो नहीं बन सके लेकिन यह सवाल आज भी है. आप भले पत्रकार हैं लेकिन आगे क्या बनना चाहते हैं. जिंदगी हमेंशा दो राहे पर खड़ा करती है. आप जिन्हें भी आइडल मानते हैं. उनके यहां तक पहुंचने का सफर देखियेगा.

अगर आप किसी ईमानदार छवि वाले को आदर्श मानते हैं, तो सोचिये, क्या आप उनके जैसी जीवनशैली, उनके जितना त्याग और उनके जैसा जीवन जी सकते हैं. अगर आप किसी भ्रष्ट पैसे वाले पत्रकार को  अपना आदर्श मानते हैं, तो क्या उस स्तर तक गिर सकते हैं, जिस स्तर तक वह व्यक्ति गिरा है, उसके पास पैसे हैं, तो उसने क्या गिरवी रखा है ? आप उसकी तरह अपनी बुद्धि, प्रतिष्ठा बेच पायेंगे. चिंता कीजिए की आपकी राह क्या है, क्या होगी और आज तो निकल कल का क्या होगा.



निराश मत होइये बहुत ऑप्शन हैं
मैंने इन आठ सालों में बहुत पत्रकारों को राजनीति में जाते,बड़े नेता का P.A बनते देखा है. जो नहीं बन पाये पत्रकारिता करते हुए कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं. बीच का रास्ता भी है. पत्रकारिता कर रहे हैं ,तो सीधे पत्रकारिता कीजिए नहीं कर पा रहे हैं, तो समझौता तब तक करिये जबतक कर सकते हैं, नहीं कर सकते तो आपको सूचना जनसंपर्क विभाग में नौकरी मिल जायेगी. अगर वहां नहीं मिली ती किसी नेता के पीआर कंपनी में काम तो पक्का है, अगर वहां भी ना हो तो किसी नेता को पकड़िये और लग जाइये पीछे. मुझे भी कभी- कभी भविष्य की चिंता होती है, क्या होगा ?  आप भी करिये हम अकेले काहे लोड लें…   

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