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यहां खत्म होता है स्वर्णरेखा नदी का सफर… शानदार और खूबसूरत है ये जगह

हम काठमांडू पहुंचने वाले थे. लगभग 50 किमी पहले हम पेट्रोल लेने के लिए रूके तो पेट्रोल देने वाले पूछा औऱ कितनी दूर है काठमांडू, रास्ता कैसा है. उसने कहा, पता नहीं कैसा रास्ता है. मैंने हैरानी से पूछा कभी गये नहीं क्या ?  उसने कहा, नहीं कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. मैं रास्ते भर सोचता रहा कि कमाल है हम कितनी दूर से बाइक पर काठमांडू पहुंचने वाले हैं और 50 किमी की दूरी इसने आजतक तय नहीं की. मैं उस वक्त हैरान था लेकिन कई सवालों के जवाब आपको समय के साथ मिलते हैं. इतने सालों बाद मुझे जवाब मिला. 

 कुछ महीनों पहले एक सप्ताह की रोड ट्रिप पर पश्चिम बंगाल के कई शहरों में घूम रहा था. दिघा में कई जगहों पर घूमते हुए मुझे विचित्रापुर के बारे में पता चला, इस जगह की खास बात थी कि यही जगह स्वर्णरेखा की मंजिल है लगभग  474 किसी से ज्यादा का सफर तय करके यहीं वो समुद्र से मिलती है.  

मैं उस जगह था जहां स्वर्णरेखा खत्म होती है लेकिन मेरे घर से उस जगह की दूरी मात्र 16 किमी की है जहां से स्वर्णरेखा निकलती है लेकिन आज तक नहीं गया. मेरे शहर  राँची  से 16 किमी दूर  नगड़ी गाँव में रानी चुआं से नदी निकलती है अब जब भी वक्त मिलेगा मैं इस जगह जाऊंगा. मैं मंजिल देख चुका हूं, तो अब सफर की शुरुआत जहां से हुई वो देखना चाहता हूं. 

हर जगह की एक कहानी होती है, स्वर्णरेखा के निकलने की भी एक कहानी ऐसी मान्यता है कि द्रोपदी को जब प्यास लगी थी तो अर्जुन ने बाण मारकर इस जगह से पानी निकाला था आज वही स्वर्णरेखा बहती है. ऐसी भी मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पहुंचे थे. इस जगह का नाम पांडु है. जहां से स्वर्णरेका निकलती है उसे रानी चुआं कहा जाता है. इस नदी में सोने के कण मिलते हैं इसलिए इसे स्वर्ण रेखा कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि मुगलों के आक्रमण के वक्त नागवंशी राजाओं ने अपने आभूषण, जेवरात नदी में फेंक दिये थे. 

इस नदी का रिश्ता सिर्फ इतिहास और दंतकथाओं से नहीं है. साल 1979 में चार आदिवासियों की जान चली गयी थी. इस नदीं पर चांडिल और इछा बांध का आदिवासियों ने विरोध किया था. इस विरोध प्रदर्शन में पुलिस फायरिंग हुई जिसमें चार लोगों की मौत हो गयी थी. इस परियोजना पर भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप लगे इसे पूरा होने में 40 साल का वक्त लगा लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार और बिजली के वादे पूरे नहीं हुए.  इसकी प्रमुख सहायक नदियां कांची और करकरी हैं. माना जाता है कि करकरी नदी से बहकर ही सोने के कण स्वर्ण रेखा में मिल जाते हैं.

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