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यूट्यूब पत्रकारिता या न्यू मीडिया, कौन गिरा रहा है पत्रकारिता की साख

पत्रकारिता और न्यू मीडिया 

लंबे समय से यूट्यूब पत्रकारिता पर लिखना चाहता था। समझ नहीं पा रहा था शुरू कहां से करूं। मनीष कश्यप  के विवाद के बाद  से ही कई चीजें दिमाग में चल रही थी। कई सवाल भी थे कि जिन्होंने पत्रकारिता पढ़ी नहीं क्या वो पत्रकार कहे जा सकते हैं ? इस सवाल के जवाब में एक के बाद एक कई ऐसे पत्रकारों के नाम दिमाग में आये जिन्होंने पत्रकारिता नहीं की लेकिन आज इनका नाम संस्थान से कम नहीं है, कई जगह इनकी रिपोर्ट नये पत्रकारों को पढ़ाई जाती है। 

सवाल क्या यूट्यूब पत्रकारिता की वजह से साख गिर रही है ? 
इस सवाल का सीधा और सरल सा जवाब है, हां। पत्रकार की पहचान उसकी रिपोर्ट से, उसकी लिखने की शैली से और लोगों तक बात रखने की क्षमता से होती है लेकिन कुछ पत्रकारों की वजह से पूरी बिरादरी का नाम खराब होने लगता है। आप ऐसे कई पत्रकारों को जानते होंगे जिन्हें पत्रकारिता की समझ तो छोड़िए जिस विषय पर वह रिपोर्ट कर रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं उस संबंध में उन्हें जानकारी नहीं है। कई बार इंटरव्यू के दौरान उनके सवाल या रिपोर्टिंग के दौरान आपके हावभाव से पता चलता है। क्या पूछतना है, क्यों पूछना है कितना पूछना है। सवाल कैसे पूछना है कि आपकी समझ और मुद्दे की जानकारी भी इस सवाल में हो ताकि जवाब देने वाला आपके सवाल को गंभीरता से ले.  यह सब सवाल पूछने से पहले समझ लेना जरूरी है । यही समझ आपको विकसित करती है आपकी पहचान स्थापित करती है। 

इसकी दूसरी वजह है, नेता, अधिकारी, ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान लोग अगर आपसे पहली बार मिल रहे हैं तो वह आपको उन यूट्यूब पत्रकारों की सूची में रखते हैं जिनसे वो रोज मिलते हैं। आपसे बातचीत के बाद आप अपनी छाप उन पर छोडने में सफल या असफल होते हैं लेकिन वो देखते आपको उसी नजरिए से हैं। 

हर खबर जरूरी नहीं होती 

यूट्यूब पत्रकारिता में सबसे बड़ा संकट है व्यू का। पूरा खेल इसी का है। हर वीडियो को सनसनीखेज बनाकर पेश करना पड़ता है ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। जितने व्यू उतने पैसे। साधारण सी जानकारी भी इस ढंग से पहुंचाई जाती है कि आप उस पर क्लिक करने को मजबूर हो जाएं। छोटी खबर भी इतने सनसनीखेज तरीके से पेश की जाती है कि वह क्लिक होगी हीं। माइक लेकर कहीं भी घूस जाने की ताकत तो यूट्यूब पत्रकारिता दे ही रही है। बिहार में ऐसे कई चैनल है। एक मनीष कश्यप ने ऐसे कई मनीष कश्यप खड़े कर दिए हैं जो सवाल को सवाल की तरह नहीं जेल में होने वाली सख्त पूछताछ की तरह करते हैं। यही वजह है कि इस यूट्यूब पत्रकारिता में साख औऱ भरोसे का संकट है। इस यूट्यूब पत्रकारिता के फायदे और नुकसान दोनों हैं। इसके फायदे पर ध्यान देंगे तो कई लोग इस तरह की पत्रकारिता करके लाखों कमाते हैं। बड़ी गाड़ी खरीद लेते हैं अपने चैनल पर यह सब दिखाते भी हैं तो लोगों को इससे ताकत मिलती है कि अऱे ये तो हम भी कर लेंगे। 

न्यू मीडिया के लिए संकट 

आप कहेंगे कि न्यू मीडिया यही तो कर रहा है, आपका कहना भी सही है न्यू मीडिया में व्यू, पेज व्यू का खेल है। नयी पत्रकारिता इसी पर टिकी भी है लेकिन अगर आप किसी बड़े संस्थान से जुड़े हैं तो उस संस्थान के साथ जुड़ा है पाठकों का, दर्शकों का विश्वास उससे बढ़कर कुछ नहीं है। अगर यह विश्वास टूटा तो उनके लिए टिकना मुश्किल हो जायेगा क्योंकि वो न्यू मीडिया के साथ- साथ अखबार भी छाप रहे हैं। जो भरोसे को आगे रखते हैं, उनकी खबर पढ़कर आप पहले भरोसा करते हैं और जो यूट्यूबर पत्रकार हैं जो हर बार एक नयी गलती करते हैं उन पर पहले शक करते हैं। बड़े संस्थान या भरोसे के साथ काम करने वाले न्यू मीडिया के लोग आपके भरोसे को पूंजी समझते हैं औऱ यूट्यूब पर पत्रकारिता करने वाले आपसे बस एक क्लिक की उम्मीद रखते हैं। 

तो क्या करें 

क्या करें का सवाल दोनों तरफ से है जो पत्रकार बनना चाहते हैं वो इसकी पढ़ाई करें, किसी अच्छे अखबार में कुछ दिन नौकरी करें, भाषा पर पकड़ मजबूत करें, खबर लिखने की शैली, मुद्दों की समझ या कुल मिलाकर पहले खबर की समझ स्थापित कीजिए फिर कीजिए न्यू मीडिया में काम आपसे गलती होने की संभावना कम होगी। दूसरा क्या करें का सवाल दर्शकों का है, आप न्यू मीडिया की पत्रकारिता और यूट्यूब पर पत्रकारिता में फर्क करिए। मनोरंजन के लिए देखना है तो देखिए लेकिन इन्हें गंभीरता से मत लीजिए। अखबार पढ़ने की आदत बंद मत कीजिए। मोबाइल पर खबरें पढ़िए लेकिन एक बार दिन भर में अखबार पढ़ने की आदत बनाए रखिए क्योंकि अखबार में जो लिखा गया है वो दोबारा एडिट नहीं किया सकता। 

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