अक्सर आपको सवाल पूछते देखा है, आज थोड़ा टेबल घूमाकर आपसे कुछ सवाल की इजाजत चाहता हूं.. अरे डर गये. मेरे सवाल से पहले आपके मन में कई सवाल हैं, पता नहीं क्या पूछेगा. अरे भाई साब चिंता मत कीजिए, आपसे ही तो सीखा है कि कैसे सत्ता के आधार पर, ताकत के आधार पर सवाल करना चाहिए. मजबूरी जानते हैं आपकी. हम तो साधारण लोग है साहेब, आप पत्रकार हैं जरा सोचिये, आपसे सवाल करने के लिए हमें समझौता करना पड़ रहा है. हमारे समझौते समझ में आते हैं. आप समझौता करके खुद को पत्रकार कहते हैं समझ नहीं आता. अरे गुस्सा मत होइये सीधे सवाल पर आते हैं.
सुना है, कोरोना वारियर्स का ढेर सारा सर्टिफिकेट आपके घर तक आया है. आप फेसबुक पर खूब चमकाये भी हैं. अरे हम लोगों को नहीं मिला, हम तो घर पर दुबके थे आप थे, फिल्ड पर ( मैदान पर) आपहीं की रिपोर्टिंग, तो घर पर देखते थे हम . कई बार कोरोना का चेहरा भी दिखा. उन सर्टिफिकेट में कई तो डिजिटल है, सीधे मोबाइल से मोबाइल तक पहुंचे है, वो भी फूल एचडी क्वालिटी में आप लेने तक नहीं गये. अरे गुस्साइये मत, आपके सर्टिफिकेट पर सवाल नहीं है, अरे हम बोले थे ना कठिन सवाल नहीं करेंगे ये, तो सवाल से पहले माहौल बना रहे हैं, आपकी तारीफ में. मतलब आपने इतनी मेहनत की है कि, जो भी संस्था ने आपको यह भेजा है जानती है कि निडर पत्रकार हैं, कोरोना से खतरा था फिर भी बीच सड़क पर खड़ा होकर, कोरोना की आंख में आंख डालकर छाती फुलाये काम कर रहे थे. सर्टिफिकेट बनता है भाई आपको मिला, बधाई हो… माहौल बन गया ना मुस्काइये मत.. अब सीधे सवाल पर आते हैं,
सवाल नंबर 01- सूत्रों के अनुसार (आप भी तो यही इस्तेमाल करते हैं अक्सर, मजा आता था आपका यह सवाल से पहले सूत्रों के अनुसार तो सोचा…) जानकारी है कि आपकी सैलरी कट रही है. नौकरी का भी खतरा है. कई लोगों की तो नौकरी चली गयी. आप पत्रकार हैं, दुनियाभर की खबर छापते हैं. इन खबरों को आपने कहीं जगह नहीं दी, किसी प्रेस क्लब ने, पत्रकारों की संस्था ने आवाज नहीं उठाया. क्यों ?
कठिन नहीं आपसे जुड़ा सवाल है पत्रकार महोदय, कठिन पूछ लेंगे तो… ******* ( इस स्टार लिखने और बोलते वक्त बीप का मतलब तो समझते होंगे ) चिल्लाने लगियेगा. गुस्साइये मत,पहला का जवाब सोच कर रखियेगा दूसरा पूछ लें आप कहें तो.
सवाल नंबर – 02 पत्रकारिता के अलावा कोई दूसरा पेशा सोचा है ? मेरी राय तो है कि अंडा बेचिये लॉकडाउन में बहुत डिमांड है, सब्जी कैसा रहेगा. लॉकडाउन खुल जाये तो फास्टफूड चाऊमिन कैसा रहेगा ? अरे फिर नाक फुलाने लगे, रोज आप ही तो छाप रहे हैं ,मंदी आयेगी, नौकरी जायेगी, तो जब जायेगी, तो आपको कहां मिल जायेगी ? तो कौन सा वाला पसंद आया, बताइये. इतना पढ़कर भागिये मत, आप तो पत्रकार हैं, पढ़ने की आदत डालिये, तो सुनिये तीसरा
सवाल नंबर – 03 पहले जनता की आवाज उठाने वाला पत्रकार बाद में समझौते वाला पत्रकार बन गया. इस पूरे बदलाव में आपके हिस्से क्या आया ? नौकरी बची या आप भी उन लोगों में से जिसके हिस्से राजनेताओं के साथ बिजनेस में हिस्सेदारी आयी. चुनाव में कार मिले, रिंगरोड के बाहर करोड़ों की जमीन खरीद ली, आलीशान मकान बना लिया. पत्नी के नाम से बहुत कुछ शुरू कर दिया. हर रोज डब्बे में गिफ्ट मिलता है, वह अलग. आप दोनों से सवाल है….. नींद आती है ठीक से ?
वो ईमान बेचकर महंगी टाइल्स पर चलने वाले पत्रकार नहीं मैं तो साधारण पत्रकारों से कुछ कहना चाहता हूं. दबाव, तनाव सहने के लिए कोई सर्टिफिकेट नहीं मिलता महोदय. वारियर्स कहलाते हैं ना, मतलब समझते हैं इस शब्द का. किससे लड़ रहे हैं.
ज्यादा नहीं बोलूंगा क्योंकि आपको आदत नहीं है सुनने की.. जो जिंदा है वो भी डरे सहमे हैं. नौकरी गयी तो घर का किराया, बच्चों की स्कूल फीस, ईएमआई, मां – बाबा की दवाई. घर का राशन कहां से आयेगा. तभी तो यह अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं, मानते हैं, दबाव में हैं, तनाव में हैं, आवाज उठाने की ताकत कम हो रही है, समझौतों पर जीना सीख रहे हैं. सैलरी कटी तो ऊपर वाली लिस्ट में से कौन सी गैर जरूरी है चीज है जिसे हटा सकते हैं. मैं बताऊं राशन में कटौती कीजिए, मुझे अनुभव है पत्रकार महोदय आप तो कभी – कभी लिफाफे ले लेते हैं ना. अब आदत डालिये, राशन में एक वक्त दाल खाना बंद कर सकते हैं. बच्चों की जिद से मैगी का एक पैकेट आता था, वो बंद कर सकते हैं. घर आते वक्त कभी- कभी चॉकलेट या बिस्कुट का एक पैकेट ले आते थे ,बंद कर सकते हैं. यकीन मानिये आपकी सैलरी में की गयी कटौती इतनी कम नहीं होगी कि एक वक्त के दाल, सब्जी ना खाने, मैगी, चॉकलेट जैसी चीजों की कटौती से दूर हो जाए. तैयार रहिये वारियर पत्रकार महोदय..
इतना लिखते- लिखते, तो हमें आप पर भी दया आने लगा है. अब आपसे उम्मीद करें भी तो क्या करें ? हम साधारण लोग तो मर ही रहे हैं. आप कहां जिंदा है पत्रकार महोदय. एक कमजोर आदमी जो खुद टूट रहा है उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है. आपने तो हमें सड़क पर लाठी डंडे खाते देखा है, सड़क पर दुध, सब्जियां फेंकते देखा है. हम कभी- कभी मोमबत्ती लेकर घंटों खड़े रहते हैं, दिया जलाते हैं ताकि इस अंधेरे में आपको कुछ तो दिखे लेकिन अब सोचता हूं, किसको दिखाने के लिए खड़े रहते हैं हम.
आप क्या देखेंगे जो खुद को नहीं देख पाते. एक काम करिये, हमारी छोड़िये, हमारी तकलीफ को नजरअंदाज करने की इतनी आदत हो गयी है आपको कि अब आप अपनी तकलीफ नजरअंदाज कर रहे हैं. हमने तो सिर्फ सब्जियां फेंकी है, मोमबत्ती लेकर खड़े रहे हैं आप अपना घर जला रहे हैं किसी तक आपकी आवाज तक नहीं जा रही. एक वीडियो वायरल हुआ था याद है, पीछे तो देखो… क्यूट से बच्चा बार – बार बोलता है ऊ क्या है वो , पीछे तो देखो.. तो वारियर पत्रकार महोदय पीछे देखिये आपका घर जल रहा है. आपको अपने घर का जलता धुंआ नजर नहीं आता. नौकरी के लिए हजार समझौते करने वाले वारियर पत्रकार महोदय नौकरी जा रही है..
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