बात धर्म की नहीं लापरवाही की है आप यह कतई तर्क नहीं दे सकते कि मजदूर भी सड़क पर थे ऐसे में आयोजन हुआ तो क्या हो गया. हुआ यह कि झारखंड में पहला मामला जमात लेकर आ गया, हुआ यह कि देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ गयी और हुआ ये कि कई लोग संक्रमित हुए. मेरा पक्ष छोड़िये पहले देश का पक्ष सुनिये, पिछले 24 घंटे में देश में जो 386 नये मामले सामने आये हैं, उनमें 164 सिर्फ तबलीगी जमात से जुड़े लोग शामिल हैं. अकेले तमिलनाडू में 110 तबलीगी समाज के लोग संक्रमित पाये गये हैं. यहां पांच लोगों की मौत हो चुकी है. पक्ष विपक्ष छोड़िये सोचिये सबसे ज्यादा नुकसान किसे हुआ है. मुस्लिम समाज के लोगों ने दिल्ली से राज्यों का रुख किया. अभी थोड़ी देर पहले दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के छठे फ्लोर से मरकज के सदस्य ने आत्महत्या की कोशिश की है.
कहा जा सकता है कि धार्मिक आयोजन था, जानकारी का अभाव था लोग संक्रमित हो गये. नुकसान तो उन्हें ही हुआ लेकिन यह बताया जाए की कोरोना की पूरी जानकारी थी, पता था कि संक्रमण से बीमारी फैलती है मौत हो सकती है फिर भी लोगों को बुलाया गया तो आप क्या कहेंगे. एक ऑडियो वारयल हो रहा है बताया जा रहा है कि मरकज के मुखिया की आवाज है कथित तौर पर मौलाना भीड़ हटाने के बजाए अपील करता रहा कि अगर मस्जिद आने से मौत होती है. तो इसके लिए मस्जिद से अच्छी कौन सी जगह होगी. ऐसे में आप क्या कहेंगे.
समझ लीजिए क्या है तबलीगी जमात ?
तबलीगी जमात की स्थापना मौलाना मुहम्मद इलियास कंधलावी ने 1926 में की थी. इसकी स्थापना के पीछे का उद्देश्य सुन्नी मुस्लिमों को इस्लाम की शिक्षा के लिए जागरुक करना. जमात हमेशा से दावा करता रहा है कि यह एक गैर राजनीतिक संगठन है. इसके गठन के कुछ सालों के बाद ही जमात की चर्चा दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में होने लगी. आज अगर जमात की स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे तो पायेंगे यह अमेरिका, यूरोपीय सहित लगभग 200 देशों में फैला हुआ है. जमात का मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित बंगलेवाली मस्जिद है. दुनिया भर से लोग पहले यही पहुंचते हैं और इसके बाद दूसरी मस्जिदों में जाते हैं.
कैसे बना मुखिया
1926 में मौलाना मुहम्मद इलियास द्वारा तबलीगी जमात की स्थापना के बाद से 1995 तक नेतृत्व के खिलाफ असंतोष के बिना यह मूवमेंट चलता रहा. 1992 में जमात के तत्कालीन अमीर मौलाना इनामुल हसन ने जमात की गतिविधियों को चलाने के लिए लिए 10 सदस्यों की एक टीम बनायी. 1995 में मौलाना की मौत के बाद उनके बेटे मौलाना जुबैरुल हसन और एक अन्य सीनियर तबलीगी मेंबर मौलाना साद ने एक साथ शूरा का नेतृत्व किया. मार्च 2014 में जब मौलाना जुबैरुल हसन की मौत हो गई तो मौलाना साद ने खुद को जमात का एकछत्र नेता यानी अमीर घोषित कर दिया.
आतंकवाद से संबंध का आरोप है
जमात पर लगे हैं गंभीर आरोप
आईएएनएस न्यूज एजेंसी है अगर आप इसकी रिपोर्ट पर भरोसा कर सकते हैं तो सुनिये तबलीगी जमात के कुछ लोग आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. हरकत-उल-मुजाहिदीन का असली संस्थापक भी तबलीगी जमात का सदस्य था. इस संगठन ने 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण किया था. 80 से 90 के दशक में इसी जमात के लगभग 6 हजार लोग आतंक की ट्रेनिंग के लिए हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकी कैंपों में गये थे.
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