कुछ बातें हैं जो सभी उम्मीदवारों तक पहुंचाना चाहूंगा ताकि जब आप मुझसे एक अदद वोट की उम्मीद करें, तो समझ सकें कि मैं आपसे क्या उम्मीद करता हूं. अगर आप मेरी उम्मीदों पर खरा उतरते हैं, तो आप मांगे, ना मांगे मेरा वोट आपको ही जायेगा.
जो मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरते उन्हें वोट तो नहीं दे सकता, हां राय दे रहा हूं, मुफ्त.. रखना है तो रखिये संभव है कि मेरा कीमती वोट अगली बार हासिल करने में आप सफल हो जाएं.
हाल में ही प्रेस क्लब गया था. लिखा था बाहरी खाना अंदर नहीं ला सकते. मतलब घर से जो खाना दोपहर में खाने के लिए आप लाते हैं. प्रेस क्लब में जाकर नहीं खा सकते. अबे तुमलोग होते कौन हो, हमारी मां के हाथ का बना खाना अपने प्रेस क्लब में बैठकर खाने से रोकने वाले.
प्रेस क्लब में सिर्फ व्यायामशाला का इस्तेमाल किया. कभी – कभी इच्छा हुई की गेम सेक्शन में जाकर कुछ खेला जाए. लेकिन वहां , कैरम हैं, गोटी नहीं, टेबल है बॉल नहीं. हरा रंग का टेबल है छोटका बोल और डंटवा गायब है.
किसी से पूछो कहां है, तो फंला के पास, ढिमकाने के पास. ढिमकाने से पूछो, तो जवाब मिलता है चोरी हो जाता है इसलिए लॉक करके रखते हैं.
हे ईश्वर ढंग से एक व्यस्था नहीं कर सके कि काम के बाद आधे घंटे आदमी आराम से दोस्तों के साथ वक्त बीता सके. कमरा उतना ही महंगा, कोई पत्रकार मीटिंग रखे तो फटाक से पांच हजार का बिल आ जाता है, इतना पैसा आया खर्च कहां किया, ना ठीक से लाइब्रेरी तैयार हुई ना कुछ
भैया अइसा है कि सबसे ज्यादा पइसा हम जैसे लोगों ने दिया है पूरे 2100 सौ रूपये. दिल में हाथ रख के बताइये कसम से कैरम का गोटी तो डिजर्व करते हैं कि नहीं…
अभी खतम नहीं हुआ है और सुनिये, व्यायामशाला में बाहर का जूता पहनकर अंदर नहीं जा सकते ,जींस पहनकर व्यायाम नहीं कर सकते अच्छा नियम है जरूरी था. एक बार गलती से पहुंच गया, तो हॉफ पैंट खरीदने भेज दिया गया. हम आदमी भी डरपोक टाइप हैं जाके खरीद लिये फिर कसरत किये. लेकिन कुछे दिन में भाई लोग जींस में व्यायाम करने लगा जो हमको भेजे थे ना पेंट खरीदने वही बाहर वाला जूता पहनकर के अंदर आने लगे हम तो एक दो बार बोले भी लेकिन..
अइसे लोग ने बपौती समझ लेते हैं प्रेस क्लब को. तो सुनों भाई हमरा भी योगदान शामिल है इस प्रेस क्लब में.
अब प्रचार कर रहे लोगों से कहना है. आपलोग बड़े से भी बड़े नेताओं के साथ फोटो शेयर कर रहे हैं कह रहे हैं, स्पोर्ट देखिये काम हो जायेगा.
अरे नेताजी आपको तो आपके काम के भरोसे भिड़ जाना चाहिए था. कहां नेता के भरोसे जीतने का सपना पाले बैठे हैं. जो लोग दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं, अगर काम किया है तब वोट मांगिये नहीं तो किस मुंह के साथ वोट मांग रहे हैं आप.
कभी हम जैसे अदने पत्रकारों से बात भी की है, पूछा कि भाई कैसे हो, क्या हाल है. चुनाव आते नेताजी हो गये हाथ जोरकर फोटो भेजने लगे. भइया हम उन लोगों में से हैं जो संबंध पर, व्यक्तित्व पर और स्वभाव पर रिश्ते बनाते हैं.
मैं अभी से कह रहा हूं, कुछ लोग बुरी तरह हारेंगे जो दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं. एक और बात आप भी चुनाव में पत्रकारों को जाति, इलाके में बांटने वाले नेता हैं तो अभिये से कह रहे हैं हमें बाटिये मत पत्रकार रहने दीजिए.
प्रभात खबर , दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान को लोगों ने इलाका समझ लीजिए वोटिंग प्रेसेटेंज देख रहे हैं, कहां का वोट निर्णायक है ,कहां के लोग जीता सकते हैं.
इससे भी मन नहीं भर रहा है, तो फोटोग्राफर का ग्रुप अलग, रिपोर्टर का अलग, डेस्क वालों का अलग और इलेक्ट्रॉनिक अलग. हम डिजिटल वाले तो अल्पसंख्यक हैं ही.
इस बार वो लोग कतई चुनाव ना लड़ें, जो घमंड को हरा नहीं पाये. वो लोग कतई चुनाव ना लड़ें, जिन पर पहले ही काम को बोझ ज्यादा है. वैसे लोग कतई चुनाव ना लड़ें जो इसे पेशा और पैसा कमाने का जरिया समझ रहे हैं.
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