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सारंडा का सच- खनन कंपनियां करोड़ों कमा रही है, स्थानीय लोगों के हिस्से बस धूल, मिट्टी आ रही है

saranda forest 

किसी भी शहर या गांव के विकास को समझना हो, तो वहां पहुंचने से पहले पहुंचने के रास्तों से समझा जा सकता है. अगर उस जगह की सड़क अच्छी है और बगैर परेशानी के पहुंचने वाला रास्ता है, तो आपकी यात्रा की तरह  सरकारी योजनाएं, विकास के दूसरे माध्यम भी आसानी से वहां तक पहुंच सकते हैं. अगर रास्ते पथरीले, उबड़ खाबड़ हैं, तो यह माना जा सकता है कि विकास की योजनाओं को पहुंचने में भी उतनी ही तकलीफ और  वक्त लगता है और सरकारी योजनाओं की रफ्तार आपकी गाड़ी की रफ्तार से कम होती है. यह तो आप समझते ही है. 

 

सारंडा की पहचान सिर्फ वहां के जगहों से नहीं है, जंगल में मौजूद उन लाखों करोड़ों की संपत्ति से भी है. जिन इलाकों में खनन होता है वहां तक ट्रक,डंपर जैसी गाड़ियां चलती है, तो रास्ते का रंग लाल नजर जाता है. सरकारें ( केंद्र और राज्य) इन इलाकों से खनिज, तो निकाल रही हैं लेकिन उसके बदले यहां के लोगो को जो मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है.

Inside story of saranda 

              

सारंडा में यूं ही नहीं कर सकते  प्रवेश 

सारंडा के जंगल में प्रवेश करना आसान नहीं है. अगर आप जंगल के अंदर प्रवेश करना चाहते हैं, तो आपको वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ेगी. इसके बाद खनन के बड़े से गेट के पहले आपके कागज की जांच होगी, अंदर प्रवेश करने के कारण बताने होंगे, कहां कैमरा इस्तेमाल कर सकते हैं कहां नहीं इन संबंध में जानकारी दी जायेगी और वहां मौजूद सुरक्षा बल का शक हुआ कि आप पर्यटक नहीं पत्रकार या समाजसेवी हैं, तो आपकी परेशानी और बढ़ सकती है. अंदर प्रवेश करने में मुझे तो परेशानी हुई इसलिए अपने अनुभव से यह बात आपको बता सकता हूं. 

सारंडा के जंगल के अंदर जो गांव बसे हैं, वहां बगैर इजाजत आप पहुंच नहीं सकते क्योंकि इन गावों के आसपास ही खनन होता है. सड़के ऐसी हैं कि अगर आप छोटी कार में अंदर जाना चाहेंगे, तो नहीं जा सकते.  आपको बोलेरो, स्कार्पियो जैसी बड़ी गाड़ियां चाहिए होंगी. हां साइकिल और मोटरसाइकिल से इन इलाकों में जरूर पहुंचा जा सकता है. जंगल में कई किमी तक रास्ता बताने वाला कोई नहीं मिलता. रास्ते कई जगह इतने खराब है कि शहर में रहने वाला कोई सामान्य व्यक्ति इसकी कल्पना नहीं कर सकता.  

सारंडा में क्या बदला है ? 

अब सवाल है कि  सारंडा में क्या बदला. यह बेहद मुश्किल सवाल है क्योंकि मुझे इन इलाकों में कोई खास बदलाव नहीं आया. सारंडा में वन प्रमंडल में मात्र तीन राजस्व ग्राम हैं. इनमें छोटा नागरा, पोंगा व कुदलीबाद शामिल हैं. इसके अलावा थोलकोबाद, करमपदा, भनगांव, नवागांव-1, कुमडी , तिरिलपोसी, बिटकिलसोय, नवागांव-2, बलिबा व दीघा वन ग्राम हैं. मैं इनमें से कई गांवों से होकर लौटा हूं.

saranda forest fact file

हर गांव की कहानी एक जैसी है लेकिन ज्यादातर गांवों में मुझे एक बड़ी राहत देखने को मिली.  कई जगहों में पीने के पानी की सुविधा है. गांव के चौराहे पर एक बड़ी सी टंकी लगी है सोलर से चलती है. गांव में कई जगहों पर चापाकल भी नजर आये हालांकि गांव के कुछ लोगों ने बताया कि आज भी कई गांव वाले नदी का लाल पानी पीने को मजबूत हैं क्योंकि अगर चापाकल या टंकी में पानी भरने वाला मोटर खराब हो जाये तो उसे बनाने में वक्त लगता है और लोग नदी के पानी पर निर्भर हो जाते हैं. 

खनन से करोड़ों की कमाई लेकिन स्थानीय लोगों के पास रोजगार नहीं 

जंगल में खनन के लिए प्लांट लगे हैं लेकिन यहां रह रहे स्थानीय लोगों के पास रोजगार नहीं है. कंपनियां जिनकी जमीन खोदकर करोड़ों कमा रही है उनके पास हर दिन का पेट भरने के पैसे नहीं है. इन इलाकों में रहने वाले लोगों के पास पक्के मकान नहीं है. रोटी, कपड़ा और मकान. सारंडा के लोग इन तीन अहम जरूरतों में सिर्फ दो की चाह रखते हैं रोटी और मकान.

सारंडा का सच –  यहां पढ़ें पहली कड़ी ” क्या था सरकार का सपना, कौन – कौन सी योजनाओं का था वादा “

ज्यादातर ग्रामीणों ने बातचीत में कहा कि कई बार काम, तो मिल जाता है लेकिन समय पर पैसे नहीं मिलते. तीन- तीन महीने मजदूरी करने के बाद पैसे अटके रहते हैं. उन पैसों के लिए भी घूस देना पड़ता है.  कपड़े को दरकिनार करें तो इन इलाकों में तीसरी सबसे बड़ी समस्या है स्वास्थ की. गांव के लोगों ने बताया कि किसी भी बीमारी में उन्हें गांव से दूर इलाज के लिए मेघातूबुरु या किरीबुरु जाना पड़ता है.  अचानक जरूरत पड़े तो डॉक्टर मौजूद नहीं है

शायद खराब सड़कों पर ही दम तोड़ देती हैं सरकारी योजनाएं

इन रास्तों पर जहां लोगों का पैदल चलना मुश्किल है वहां सरकारी योजनाएं खनन क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ पाती. ज्यादातर गांव के लोगों ने बताया कि सरकारी अधिकारी गांव तक पहुंचते ही नहीं. जहां सरकारी अधिकारियों को खराब रास्ते रोक लेते हों वहां सरकारी योजनाओं को पहुंचने में कितनी परेशानी होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं.  गांव के ज्यादातर लोग आज भी जलावन के लिए जंगल की लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं. जहां हर घर गैस कनेक्शन का वादा केंद्र सरकार के नेता किसी भी डिबेट में डंडे की चोट पर रखते हैं इन गांवों तक गैस कनेक्शन का दावा खोखला नजर आता है. गांव के कई लोगों को इन योजनाओं की जानकारी नहीं है. अगर है भी तो वह सिर्फ गांव के मुखिया तक सीमित है. 

रोजगार सबसे बड़ी समस्या 

सारंडा के इन इलाकों से सरकार को खूब पैसा आता है. कई प्राइवेट कंपनियां बड़ा प्रॉफिट कमाती हैं लेकिन इन जगहों के मालिक आज भी दो वक्त की रोटी के लिए रोजगार की तलाश में भटकते हैं. अपनी ही जमीन को खोदकर बड़ी कंपनियों का अर्थ मजबूत करने वाले ये मजदूर अपने रोज की कमाई के लिए तीन- तीन महीने इंतजार कर रहे हैं. करमपदा में हमें ऐसे कई मजदूर मिले जो मजदूरी ना मिलने, पैसे काटे जाने की शिकायत करते हैं.

तो क्या दिखा सारंडा में 

सारंडा के नाम से चल रही योजनाएं घने जगलों में कहीं खो गयी हैं शायद, जो मीलों भटकने में बाद हमें तो नहीं दिखी. कुछ सहूलियत जरूर नजर आयी लेकिन उन दावों से वादों से मुलाकात ही नहीं हुई जिनका पीछा करते हुए हम इन इलाकों में पहुंचे थे. ज्यादातर ग्रामीण रोजगार ना मिलने के बाद भी कोई शिकायत नहीं करते, हल्की सी मुस्कान और कभी – कभी खामोशी में भी उनके अंदर छिपे डर से आपकी मुलाकात जरूरत करा देती है, उन्हें बस खुशी है कि जिंदगी चल रही है. उन्हें ना,तो अपने अधिकारों की जानकारी और ना ही कंपनियों के टर्न ओवर जो ओवरफ्लो हो रहा है उनकी. इलाके से नक्सलवाद जरूर कम ( खत्म कहना मुश्किल होगा) हो गया है. 

saranda forest 

यहां सबकुछ तो सामान्य नहीं है

इन इलाकों में आपको घने जगंलों के साथ- साथ कई चीजें नजर आती है जिन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर सकते. इन इलाकों में जगह – जगह पर सुरक्षा बल के जवान हैं जो आपको महसूस कराते हैं कि आप किसी ऐसी जगह पर हैं जहां सबकुछ सामान्य तो नहीं है. ग्रामीण आपसे बात करने से कतराते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि  उनके जख्मों को देखकर भी आप उनका इलाज नहीं कर सकेंगे. यहां रहने वाले लोग सीधे हैं आप किसी भी घर में जाकर बैठकर आराम से पानी पी सकते हैं, आप उनके गांव की जंगल की तारीफ करते हैं तो वो मुस्कान के साथ सुनते भी हैं लेकिन जैसे ही उनकी तकलीफों का जिक्र करते हैं तो वो चुप हो जाते हैं. जैसे उन्हें पता है कि इस दर्द में चीखने के भी कई मायने निकाले जा सकते हैं.  


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