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रात भर शूटिंग में व्यस्त रहे, दिनभर यात्रा की फिर भी थकान छू तक नहीं सकी, ऐसे हैं आशुतोष

स्टार्स के नखरों के
बारे में खूब सुना है, कई स्टार्स के नखरे देखे भी हैं. पत्रकारिता आपको अनुभव खूब
देती है, कई लोगों से मिलने का मौका मिलता है, तो आप कई चीजें महसूस भी करते हैं.
पिछले दिनों अभिनेता आशुतोष राणा से मुलाकात हुई. फिल्म में जैसा जानदार अभिनय
करते हैं, असल जिंदगी में भी उतने ही जानदार व्यक्ति हैं. 



स्टार्स देर से पहुंचते
हैं और अब, तो स्टार्स की खूबियों में इसे गिना जाता है, कहते हैं स्टार है, समय
में आयेगा तो आम आदमी रह जायेगा, इतना नखरा तो बनता है.



प्रभात खबर डॉट कॉम पर लिखी मेरी स्टोरी आप यहां पढ़ सकते हैं 

आशुतोष जब रांची पहुंचे,
तो भारी बारिश हो रही थी. राष्ट्रपति भी दिक्षांत समारोह को लेकर रांची में थे तो
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे कई रूट डाइवर्ट थे. कार्यक्रम में पहुंचे, तो सबसे
पहले देर से आने के लिए माफी मांगी, कारण भी गिना दिये.

कविता पाठ शुरू किया,
लोग उनसे और कविताएं सुनना चाहते थे. आशुतोष ने कई कविताएं सुनायी और इसके बाद भी
लोगों की उत्सुकता खत्म नहीं हुई, तो उन्होंने कहा, मैं जानता हूं आप मुझसे बात
करना चाहते हैं. लोगों ने सवाल करने शुरू किये और उन्होंने बड़े आराम से लोगों के
सवालों का जवाब दिया, नये लोगों को प्रोत्साहित किया.  

कार्यक्रम खत्म हुआ
हमें उनका इंटरव्यू करना था. हम सभी बारिश में बचते- बचाते होटल रेडिशन ब्लू
पहुंचे थोड़ी देर इंतजार के बाद हमें उनके कमरे में बुलाया गया. उन्हें तीन
इंटरव्यू देना था. उनकी मैनेजर ने बताया कि सर, रातभर शूट कर रहे थे और सीधे
फ्लाइट लेकर रांची पहुंचे हैं आपलोग साथ मिलकर इंटरव्यू कर लीजिए, हम भी लगभग मान
गये थे लेकिन जब आशुतोष कमरे में आये तो उन्होंने सबसे अलग- अलग बात की.



हर सवाल का जवाब दिया
और किसी भी सवाल का जवाब उन्होंने टालने के लहजे से या छोटा दिया हो ऐसा नहीं है,
बड़े आराम से अपने फिल्मी करियर, छात्र जीवन, निजी जीवन, साहित्य और अपनी किताब के
बारे में बात करते रहे. इस बीच वेटर खाना लेकर आया खाना लग गया, खाना ठंडा हो रहा
था और हमारी बातें चल रही थी. मैनेजर ने इस बीच दो तीन बार इशारा भी किया तो
उन्होंने कहा, भोजन, भजन और पैसे के लिए एकांत की आवश्यकता होती है.
अपने इंटरव्यू में उन्होंने कई सारी बातें कही
लेकिन उनके जीवन के सफर औऱ संघर्ष को लेकर जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, मैं
आजादी की लड़ाई तो नहीं लड़ रहा था जो किया है खुद के लिए किया है तो वह संघर्ष
नहीं है सफर का हिस्सा है. उन्होंने अपने मोबाइल पर ही एक किताब लिखी जो बेस्ट
सेलर हो गयी. आशुतोष कहते हैं, वक्त कम मिलता है, जिनता मिलता है उसी वक्त में ये
किताब लिखी है.
आशुतोष जिस मुकाम पर हैं इसमें उनकी कितनी मेहनत
लगी होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं और बड़े आसानी से हम और आप यह समझ सकते हैं कि
हम अपने जीवन में इस संघर्ष भरे सफर का कितना हिस्सा तय करते हैं.    

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