News & Views

Life Journey And journalism

सपने कैसे पूरे होंगे प्रतिभा से या पैसों से ?

बिहार चुनाव के बाद जब लालू के दोनों लाल अच्छे पदों पर बैठे, तो एक बहस चली की भाई प्रतिभाशाली लोगों को मौका मिलना चाहिए या मौका लोगों को प्रतिभावान बना देते है. दसवीं फेल उनके लाल आज बाप की राजनीति के कारण उचे पदों पर है. तेजस्वी क्रिकेटर बनना चाहते थे सपना नहीं पूरा कर सके तो नेता हो गये. यही हाल रामविलास के सुपुत्र चिराग का है. इन दोनों ने बचपन में मास्टरसाहेब के एक सवाल का जरूर जवाब दिया होगा कि बड़े होके क्या बनोगे. एक ने कहा होगा क्रिकेटर औऱ दूसरे ने कहा होगा हीरो और बने क्या ?. 

स्कूल में अक्सर मुझसे भी   मास्टर साहेब पूछा करते थे कि क्या बनोगे जी बड़ा होके. उस वक्त भी मुझे जवाब नहीं सुझता था लेकिन डॉक्टर और इंजीनियर कहने वाले पर मास्टरसाहेब बहुत खुश होते थे मैं भी इन दोनों में से एक जवाब देकर निकल जाता था. बात बहुत पुरानी है और मास्टर साहेब अब अगर कहीं मिले तो उनसे जरूर कहूंगा कि सपने वैसे ही दिखायें जिसे पूरा होने की संभावना हो. गलती खाली मास्टर साहेब की नहीं है घर में कोई भी आता तो नाम, स्कूल और कौन क्लास में पढ़ते हो उसके बाद यही पूछता कि क्या बनोगे बड़े होकर. बस फिर वही जवाब देकर बचने की कोशिश करता था घर में आने वाले लोग तो एक के बाद एक सवाल दागते थे क्यों बनना चाहते हो डॉक्टर, लोगों की मदद के लिए की पैसे के लिए और भी बहुत कुछ लेकिन उस वक्त कहा पता था कि पैसे के लिए ही इंसान सबकुछ करता है पैसा हो तो लोगों की मदद भी होती और ना हो तो आपकी कोई मदद नहीं करता.

मैं तो शुरू से कन्फूयज रहा और अब पत्रकार बन गया हूं, या रहा हूं क्योंकि एक कार्यक्रम में रवीश सर कह रहे थे कि पत्रकार बनने में कम से कम दस साल लग जाते हैं अभी तो 4 साल का ही सफल पूरा हुआ है. आप आपसे आड़ी टेड़ी बात इसलिए कर रहा है कि आज अपने एक मित्र के द्वारा अखबार में लिखी हुई खबर देख कर उन बातों का अहसास हो गया कि भैया सपने औकात में ही देखने चाहिए. बच्चों को बचपन से ही डॉक्टर या इंजीनियर बनाने का सपना दिखाना बेकार है. सपने टूटने की आवाज भले ही ना हो पर उसकी टिस जिंदगी भर रहती है. बिट्स पिलानी में पढ़ने का सपना अक्सर इंजीनियर बनने वाले युवा देखते हैं पूरी कोशिश करते हैं कि वहां एडमिशन हो जाए कई अपने सपने को योग्यता और पैसों के दम पर पूरा कर लेते हैं तो कई कम नंबर और कम पैसों के कारण उसे पूरा नहीं कर पाते.

नौशीन अख्तर के पास एक योग्यता तो है कि उसके नंबर बढ़िया हैं पर दूसरे चीज की कमी है पैसों की. सरकार शिक्षा में ऋण के लिए कई सुविधा दे रही है लेकिन इस सुविधाओं  के बाद भी एक प्रतिभा का पतन सवाल तो खड़े करता है. राज्य के मुख्यमंत्री से गुहार लगाती राहुल गुरू की यह खबर शायद मुख्यमंत्री तक पहुंचे और कुछ सार्थक कोशिश की जाए लेकिन हर सपने को मुख्यमंत्री और योजनाओं का सहारा कहां मिलता है.

हां रिजल्ट के मौसम में यह खबर जरूर कई अखबारों की सुर्खियां बन जाती है कि एक ठेले वाले, रिक्शेवाले, सब्जीवाले के बेटे ने कमाल कर दिया. अच्छा नंबर लाया राज्य का नाम रौशन किया लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था जहां अच्छे कॉलेज में नामांकण के लिए नंबरों के नोट के नंबर और उनकी संख्या को भी जरूरी मानती है कटऑफ चाहे जो भी हो हर नोटों से आपको नोट जरूर किया जाता है और नामांकण मिल जाता है.  नौशीन अख्तर को नामांकण तो सीधे मिल गया पर पैसों के खाने खाली रहे अब उसका सपना टूटने वाला है उम्मीद है इस टूटते सपने को किसी न किसी का तो सहारा मिलेगा ताकि प्रतिभा की धनी इस लड़की को जीवन पर धन के ना होने का अफसोस ना हो. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *