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हर जज्बात लफ्जों में बयान नहीं होती…….

हर जज्बात लफ्जों में बयान नहीं होती…….

हर जज्बात लफ्जों में बयान नहीं होती, हर तम्नाओं की आसमान नहीं होती
अगर देखना है मेरे दर्द की गहराई तो कभी मेरे आंखों में देख यू हर वक्त दर्द की नुमाइश नहीं होती
जिंदगी फलसफा है, कुछ पाने की कुछ खोने की अब तो आंखों से भी हाल ए दिल बयां नहीं होती
कितना अकेला हूं मैं और तन्हा भी ये कैसे समझाऊं लोगों को चन्द शब्द में हाल ए दिल बयां नहीं होती
लफ्ज चुप है, खामोश है निगाहें समेटे हुए है हजारों ख्वाहिशों की चादनी अपने अंदर  अब तो सबकुछ पाकर खो देने की आवाज नहीं होती… हर जज्बात लफ्जों में बयां नहीं होती…
कितना दर्द है सीने में पर आखों में अब दर्द बयां नहीं होती हसती है अब तो निगाहें दर्द से आखुओं को भी खुशी और गम की पहचान नहीं होती हर जज्बात…     
     

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