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कौन है आम आदमी

                            कौन है आम आदमी


सदस्यता लेकर साबित करना होगा कि मैं आम आदमी हूं या अपने घर लेकर अपनी हालत दिखा कर कहूं. जैसा आप बेहतर समझें

अब आम आदमी को पहचानना मुश्किल हो रहा है. अगर कोई कहता है कि मैं आम आदमी हूं
तो शक होने लगता है यार, कहीं ये पार्टी का कार्यकर्ता या सदस्य तो नहीं. अगर आम
आदमी राजनीति में आ रहा है और अगर ये कहां जाए कि जो राजनीति में है वही आम आदमी
है, तो हम जैसे साधारण लोग कौन है. क्या हम खास बन गये है. अब लगता तो ऐसा ही है
जिस तरह देश की राजनीति में बदलाव आ रहा है. अब हम जैसे आम लोग खास हो रहे हैं. हो
भी क्यूं ना. अब ये खास लोग जो आम आदमी बनकर राजनीति में जुड़ते जा रहे है, तो
हमारी भी पहचान पर फर्क तो पड़ता ही है. आज देश का हर खास नागरिक जो कभी आम हुआ
करता था बहुत खुश है. पिछले लगभग 4 सालों से उसकी खासियत भी छुपी थी. आज आम लोग(
नेता) हम खास लोगों के लिए सोचने पर मजबूर है हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
अब आपस में भिड़ने को तैयार है. जिन जरूरतों को हम भूल गये थे ये लोग अब उन
जरूरतों को भी  
खोज कर निकाल रहे है. अब उन
आम लोगों की परीक्षा का वक्त है और इसी परीक्षा में पास होने पर वो लोग(नेता) आम
से खास हो पाएंगे. लोकसभा चुनाव आ रहे हैं भाई तो हम तो( जनता) खास होंगे ही. लोग
हमारे बीच आने के लिए लड़ रहे हैं कोई पार्टी कह रही है हम जनता के ज्यादा नजदीक
है तो दूसरी सभाएं करक हमसे पूछ रही है बताओं क्या करें. अब हम पार्टियां चलाने
लगे. देश की राजनीति का फैसला चुनाव के बाद भी हम करने लगे, तो भाई हम आम कहां रहे
हो गये ना खास. ये पहली बार नहीं है जब हम इतना खास महसूस कर रहे है मेरे दादा कहा
करते थे कि चुनाव के पहले नेता हमको अपना माई- बाप मानते है. और बाद में खूद को
बाप मानकर हमें अनाथ की तरह छोड़ जाते है. चुनाव के वक्त हमारी खासियत बढ़ जाती
है. मालिक जैसा फिल होता है. बहुत मजा आता है जब नेता लोग के दर्शन होते है. दादा
तो देखकर बता देते थे कि ये हारेगा और ये जीतेगा. तभी तो लोग उन्हें खास मानते थे.
गांव के ओपिनियन पोल
 से कम नहीं थे और शत
प्रतिशत सही. जिस तरह से अब आम आदमी का तमगा लगाकर खास लोग राजनीति कर रहे है
जिनके कारण हम आम लोग अब खास महसूस करने लगे है.

 आज भी  भले ही हमें खाने मे सब्जी, दाल से समझौता करना
पड़ता हो, खाना बनाने के लिए गैसे सेलेंडर महीने के अंत में ब्लैक में खरीदना पड़े,
खाना खाते वक्त बीच में लाइट कट जाए तो मोबाइल के टार्च से खाना खत्म करना पड़े.
 ये तो हम समान्य वर्ग के लोगों का हाल है कई और
अतिमहत्वपूर्ण( खासमखास) लोग है जो एक वक्त के भोजन के लिए भी हर रोज जिंदगी से
जंग लड़ते है. हम खास लोग अब इसलिए आम आदमी नहीं रहे क्योंकि आम आदमी की परिभाषा
ही बदल गयी. भई अब तो मैं भी आम आदमी ये कहने के लिए पार्टी से जुड़ना पड़ेगा
जिसने सदस्यता ली है वो आम आदमी और जिसने नहीं ली वो खास. अब आम लोग वो हैं जो देश
की राजनीति में है ,अब आम लोग वो है जो बड़ी गाड़ियों में सफर करते है. रात दिन
मीडिया वालों से घिरे होते है. हमें ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है ये
 कुछ वक्त के लिए( चुनाव तक) हुआ है लोकसभा चुनाव
के बाद हम खास लोग फिर अपनी जाति में होंगे. तो बस आज से आप खूद को आम आदमी बताना
बंद कीजिए और शान से कहिये कि आप बेहद खास है.
      
 

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