News & Views

Life Journey And journalism

जल, जंगल जमीन के असली रक्षक

घने जंगल से निकलता हुआ एक आदमी जिसके पास बलुआ ( कटार की तरह दिखने वाला हथियार) तीर धनुष, गुलेल जैसी चीजें हों. आप उसे देखकर अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ायेंगे या रोककर उससे बात करने की सोचेंगे. मैं रांची से सिमडेगा अपनी मोटरसाईकिल से जा रहा था. कोलेबिरा के घने जंगलों में मुझे ऐसा ही नजारा दिखा. उसे देखते ही मेरे पांव ब्रेक पर चले गये हालांकि रूककर मैं सोच रहा था कि कहीं कोई गलती तो नहीं कर रहा.

मैंने हाल में ही बुलेट खरीदी है डर था कहीं छिन गयी तो, पैसे लूट लिये गये तो, आखिर कौन होगा जो इतने हथियारों के जंगल में भटकेगा. सिमडेगा नक्सल प्रभावित इलाकों में गिना जाता है. कोलेबिरा के जंगलों में इस तरह के व्यक्ति को देखकर रूकना बेवकूफी ही होगी. इतना कुछ सोचते हुए मैं उसकी तरफ बढ़ रहा था. वो भी मुझे अपनी ओर आता देख जंगल की तरफ वापस लौटने लगा था मैंने इशारे से रोका तो वो रूक गया. जैसे – जैसे नजदीक पहुंच रहा था मन शांत होता जा रहा था. चेहरे पर हल्की झुर्रियां, सिर पर नीली टोपी, गले में लाल रंग की माला, हाथ में बलुआ, पीछे तीर – धनुष और दूसरे हाथ में गुलेल.

मुझे उसे देखकर जितना आश्चर्य हो रहा था वो मेरी तरफ भी उसी आश्चर्य के साथ देख रहा था. हालांकि मैं इन्ही इलाकों में रहा हूं स्थानीय भाषा जानता हूं. उसका लाभ लेने की कोशिश करते हुए मैंने जोहार से बातचीत की शुरूआत की. इस छोटी मुलाकात में उससे कम  बातचीत हुई मेरे फोन में नेटवर्क नहीं था उसको अपना मोबाइल नंबर याद नहीं था . फिर भी उसकी कहानी ने मुझे प्रभावित किया जो साल की शुरूआत में एक उर्जा की तरह थी जो बताती थी कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं जो निश्वार्थ भाव से काम करते हैं.

मन में कुछ पाने की लालच नहीं होती बस हमारी प्रकृति की तरह देना जानते हैं लेना नहीं. रामेश्वर बैठा 21 साल की उम्र से जंगल बचा रहा है. पांरपरिक हथियार लेकर ये घर से निकलते हैं और जंगल- जंगल धूमकर जानवरों की और जगंल की रक्षा करते हैं. उनकी उम्र लगभग 55 साल की है. जिस उम्र में लोग रिटायर्ड होने की सोचते हैं रामेश्वर को वन विभाग ने नौकरी दी है. तीन साल पहले वन विभाग  रामेश्वर के जंगल के प्रति समर्पण को समझा और उन्हें 6 हजार रुपये महीने की नौकरी दी. 

रामेश्वर कहते  हैं मेरा काम घूमना है जंगल- जंगल  घूमता हूं लोगों को लकड़ी काटने से रोकता हूं. जानवरों के शिकार करने से रोकता हूं. मुझे खतरा है दोनों तरह से जानवरों से भी और उन चोरों से भी जो जंगल में लकड़ी चोरी करने आते हैं. इसलिए हथियार अपने साथ रखता हूं. रामेश्वर ने मुझे अपना तीर दिखाते हुए कहा, इसे मैंने बनाया है. इसका डिजाइन इस तरह है कि एक बार शरीर के अंदर घूस गया तो किसी को बचना मुश्किल है. तीर का डिजाइन साधारण तीर से अलग था. उसके कोने पर कर्भ था . एक बार तीर शरीर के अंदर चला गया तो उसे सीधा पकड़कर निकालना मुश्किल है क्योंकि अंदर जाकर वो फंस जायेगा. रामेश्वर कहते हैं मैं जंगल में जानवरों को देखता हूं तो किनारे हो जाता हूं. उन्हें नहीं मारता. मैंने जब पूछा कि आपको जंगलों में चोर और जंगली जानवरों के अलावा उग्रवादियों से डर नहीं लगता तो बोले, जंगल बचाने के काम से वो तो और खुश होते हैं. आकर कहते हैं तुम अच्छा काम कर रहो हो.

जंगल में चोरों की कमी नहीं है लेकिन चोर जानने लगे हैं कि रामेश्वर जंगल की रखवाली करता है तो चोरी करने नहीं आते. अगर आते भी हैं तो मुझे दूर से ही  देखकर भाग जाते हैं. रामेश्वर को इस जंगल ने बहुत कुछ दिया है. रामेश्वर जंगल से मिली खूबी बताते हुए कहते हैं मैं नागमतिया हूं. किसी को सांप ने काट दिया तो मैं उसका ईलाज कर देता हूं. कई जगहों से लोग मुझसे मिलने आते हैं या मुझे ले जाते हैं. सांप और मेरी दोस्ती है मैं उन्हें गले में लपेट कर घूमता  हूं.  मैंने जब उनसे पूछा की आप रिटायर्ड कब होंगे. रामेश्वर कहते हैं  जब तक शरीर में जान है औऱ जंगल को बचाने की क्षमता है मैं इसी तरह घूमता रहूंगा जिस दिन शरीर जवाब दे देगा रिटायर्ड हो जाऊंगा.  

रामेश्वर से बातचीत के दौरान एक महिला भी जंगल से निकली सोमारी धनवार उन्होंने कहा, मैं बचपन से जंगल  बचा रहा हूं. हमारा संगठन है जिसमें 150 से ज्यादा महिला और पुरूष हैं. जब रामेश्वर किसी संकट में फंस जाता है तो हम बचाते हैं. थाना भी हमारी मदद करता है. कई लोगों को हमने पकड़ा है जेल भिजवाया है. वन विभाग कभी- कभी हमें कुछ पैसे दे देता है. 

बकैती- जल जंगल जमीन के नाम पर झारखंड में राजनीति कोई नयी बात नहीं है. जगल बचाने के नाम पर विरोध भी नया नहीं है लेकिन असल जननायक देखने हो तो कभी रांची के मोहराबादी मैदान का रुख मत कीजिए. जंगल बचाने वाले असल किरदारों से मिलना हो तो गांव की तरफ बढ़िये, मेरी मुलाकात तो घने जंगलों में इनसे हो गयी. 
मिलकर लगा जैसे ऐसे कई लोग हैं जो किसी नेता की रैली में लाखों की भीड़ के बीच खड़े होकर अपने गांव और जंगल वापस लौट जाते हैं. रामेश्वर 19 साल से जंगल बचाने के लिए भटक रहे हैं. सोमरी बचपन से ही जंगल बचाने में लगी है. शहर में  भीड़ के आगे नेता बनकर चलने वाले लोग असल में क्या बचाना चाहते हैं आप इतना तो समझते ही होंगे. हाल में ही अखबारों में पढ़ा की वनरक्षी के लिए 2000  नौकरी जल्द आने वाली है.इन वनरक्षियों का क्या जो बिना वेतन काम कर रहे हैं ? 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *