कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ सुभाष कश्यप सरकार को आइना दिखाकर गये हैं, क्या इस
व्याख्यान से सरकार कोई सबक लेगी. सवाल जब उठने लगे तो तय वक्त से पहले ही
कार्यक्रम खत्म कर दिया गया. पढ़िये इस कार्यक्रम की आवश्यकता सरकार को क्यों पड़ी
छान रहे थे. तीन दिनों तक अपह्रत जवानों का कोई सुराग नहीं मिला. पत्थलगड़ी
समर्थकों ने पुलिस कार्रवाई का बदला लेते हुए कड़िया मुंडा के आवास से तीन जवानों
का अपहरण कर लिया था. तीन दिनों के बाद जब पत्थलगड़ी समर्थकों ने जवानों को छोड़ा
तो पुलिस को पता चला कि वह तीन नहीं चार जवानों को कैद कर ले गये थे.
क्या है पत्थलगड़ी के पीछे की कहानी , पढ़ने के लिए क्लिक करें
बड़ा और अंतिम कदम था. राज्य सरकार इसके बाद गंभीर हुई और इससे जुड़े एक- एक
व्यक्ति को पकड़ना शुरू किया हालांकि अभी भी इसके कई नेता फरार हैं. इस कदम के बाद
पत्थलगड़ी समर्थक कमजोर पड़ गये. संविधान की जिन पांचवीं अनुसूची और विशेष अधिकार
का हवाला देकर गांव वालों को भटकाने की कोशिश हुई थी सरकार अब उस पर स्थिति स्पष्ट
करना चाहती थी.
अनुसूची पर एक व्याख्यान का आयोजन किया. पांचवीं अनुसूची में आदिवासियों के अधिकार
क्या है ?. सरकार ने इस पर विशेष जानकारी के लिए संविधान विशेषज्ञ
पद्मश्री डॉ सुभाष कश्यप को न्यौता दिया. सुभाष कश्यप ने जो बातें कही उसे सुनने
के लिए राज्य के खूंटी और रांची जिले से तो जनता आयी ही थी, साथ ही राज्यपाल
द्रोपदी मुर्मू और कई सरकारी अधिकारी भी थे.
देते उन्होंने सरकार के कई फैसलों पर भी सवाल खड़े कर दिये. यह पहली बार था जब
सरकारी खर्च से हुए कार्यक्रम में कोई सरकार की नीतियों पर ही सवाल खड़े कर रहा
था. सुभाष ने पांचवीं अनुसूची और पेशा एक्ट के कई नियमों का उल्लेख किया और कहा,
मैं समझ नहीं पता कि हमारे पास कागज में दुनिया का सबसे बेहतरीन कानून है लेकिन वह
जमीनी स्तर पर काम क्यों नहीं काम करता. आदिवासियों के हितों की चर्चा करते हुए डॉ
सुभाष कश्यप ने कहा, वैसे इलाके जो पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र में हैं. अगर उन
इलाकों में खनिज निकलता है, तो इसका अधिकार किसी कॉरपोरेट घराने को नहीं मिल सकता.
सरकार इसे वहां के आदिवासियों के सहयोग से खनन करती है.
इस मौके पर कई लोगों ने सवाल किये. कुछ
सवाल संविधान की अधिकारों से हटकर थे. इस पर मंच से जो जवाब मिलने चाहिए थे वह तो
नहीं मिले लेकिन इतना कहकर चुप कराने की कोशिश हुई की कृपया आप सभी विषय से मत
भटकिये. खूंटी से आये एक दिव्यांग ने कहा,
अगर संविधान की धाराओं को पत्थर में लिखा गया, तो हम देशद्रोही लेकिन आप खुलेआम उन
अधिकारों का उल्लंघन कर संविधान की ही अनदेखी कर दें ,तो आप देशभक्त. एक महिला ने
इस व्याखयान में सभी का ध्यान तब खींच लिया जब उन्होंने कहा, मैं हर पत्थलगड़ी में
शामिल रहीं हूं. मेरे सामने ही सारी घटनाएं हुई हैं. मैं जानना चाहती हूं कि सरकार
ने उस वक्त क्या किया ध्यान रखिये जब भूमि
अधिग्रहण कानून गलत तरीके से संशोधित हुई तभी यह घटनाएं शुरू हुई है. सुभाष कश्यप
ने यह साफ कर दिया कि पत्थलगड़ी सही नहीं है. कई लोगों ने इससे जुड़े सवाल किये.
किये बगैर यह फैसला कर दिया कि सोने का खान किसी बड़े कॉरपोरेट घराने को दे दिया
जायेगा. क्या यह फैसला सही है ?.
तो कोई जवाब नहीं आया लेकिन सुभाष कश्यप ने इतना जरूर कहा कि पत्थलगड़ी के आंदोलन
की समस्याओं को दूर नहीं किया गया. उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया और आंदोलन मैनेज
हो गया. यह समस्या बड़ी है और इस पर ध्यान देना चाहिए. आदिवासी के हित में सरकार
की फैसलों पर डॉ सुभाष कश्यप ने कहा, अगर सरकार आपको अधिकारों से वंचित रखती है तो
आपके इसके लिए आंदोलन कर सरकार को मजबूर करना चाहिए.
ट्राइबल एडवाइजरी कौंसिल के अध्यक्ष गैर आदिवासी हो सकते हैं या नहीं? अगर हो सकते हैं, तो किन कानूनी प्रावधानों के तहत?
संविधान में कितने पार्ट हैं और कितने शेड्यूल हैं? पार्ट और शेड्यूल में क्या अंतर है?
खूंटी से आये हुए एक व्यक्ति ने पूछा- सीएनटी एक्ट में जब संशोधन हो रहा था, तब जमीन बचाने के लिए मुंडा समुदाय ने पत्थलगड़ी आंदोलन शुरू किया, जिसमें पत्थरों पर संविधान की बातें लिखी गयीं. यह किस तरह असंवैधानिक है, कृपया बतायें
पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में सेक्शन 40 के तहत जिला स्तर पर स्वशासी जिला परिषद का प्रावधान छठी अनुसूची के पैटर्न के तहत किया जाना था, लेकिन यह नहीं हो पाया. यह गलत है या सही?
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