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मुंबई की आबोहवा ने दी थी कादर खान को जिंदगी, जानिये क्या थी अंतिम इच्छा

कादर खान चौथी संतान थे. अफगानिस्तान से भारत उनके माता पिता
( मां-इकबाल बेगम. पिता –
अब्दुल रहमान)
उन्हें बचाने आये थे क्योंकि पहले ही उनकी तीन संतानों की मौत हो चुकी थी. मां
इकबाल बेगम को लगता था कि अफगानिस्तान की आबोहवा के कारण उनके बच्चे जिंदा नहीं
रहते. कादर खान को मुंबई लाया गया और कादर के सितारा बनने की कहानी शुरू हुई. कादर
खान के जीवन की कई कहानियां है, एक अभिनेता जो हंसाता रहा, गुदगुदाता रहा उसके
जीवन में इतना दर्द था…..
कादर की अंतिम इच्छा क्या थी- एक समारोह में कादर खान ने कहा
था फिल्म इंडस्ट्री बहुत आगे बढ़ गया है, नयी तकनीक आ गयी है. खूब पैसे आ गये हैं
लेकिन एक चीज खराब हो गयी. जबान, मैंने ही 15- 20 साल पहले इस नयी भाषा का
इस्तेमाल किया था, मैं ही इसे ठीक करूंगा. उसके बाद ही मैं कहीं जाऊंगा. अल्लाह
जानता है कहां लेकिन मैं यह काम करना चाहता हूं.
मैंने कादर खान के निधन की खबर इतनी बार पढ़ी कि लगा इस बार
भी.. लेकिन  कादर खान के निधन की खबर इस
बार झूठी नहीं है. मुझे याद है उनके निधन की अफवाह साल 2016 में फैली थी. फिर साल
2018 के अंतिम सप्ताह में उनके बीमार होने और निधन की खबर आयी. बेटे सरफराज  को सामने आकर खंडन करना पड़ा पिता बीमार है.. 31
दिसंबर को जब उनके निधन की खबर आयी तो लगा अफवाह होगी लेकिन इस बार खबर सच निकली.
अभिनय के हर कला में कादर खान माहिर थे. आप उन्हें एक कॉमेडियन के तौर पर, विलेन
के तौर पर, पिता के तौर पर याद कर सकते हैं
और
अगर आपकी शादी हो गयी है तो ससूर के तौर पर, ऐसे कई किरदार हैं जो कादर को देखते
ही याद आते हैं.
कादर खान की जिंदगी तकलीफों से भरी थी, यही दर्द और अनुभव उनकी
लेखनी में दिखता था. 700 से ज्यादा फिल्में जिसमें उन्होंने काम किया 250 से
ज्यादा फिल्में उन्होंने लिखी और बाकि में अभिनय किया. कादर खान अपनी मां से बहुत
प्यार करते थे जाहिर है, सभी करते हैं लेकिन कादर ने मां को खून की उल्टियां करते हुए
अपने सामनेमरते देखा था. मां ने उसे पढ़ाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया.
कादर उन दिनों को खूब याद करते थे. एक बार  उन्होंने कहा, जब भूख थी तब रोटी नहीं थी और जब
रोटी आयी तो भूख खत्म हो गयी.
कादर खान ने फिल्मों में लिखना शुरू किया, तो उन्हें पहली बार
1500 रुपये मिले. मनमोहन देसाई के साथ काम करने लगे तो वही 121000 रुपये हो गये.
कादर खान अपनी दमदार लेखनी के लिए जाने जाते थे, जिस तरह उन्होंने मां- बेटे के
रिश्ते को परदे पर उतारा यह उनका निजी अनुभव था. कादर हर स्टेज पर अपनी मां को याद
करते थे. सालों बाद जब उन्होंने दोबारा फिल्मों में काम शुरू किया, तो एक मंच से
कहा, ऐसा लग रहा है जैसे मैं, अपनी मां के गोद में वापस लौट आया हूं. कादर
स्क्रिप्ट राइटिंग के साथ- साथ बच्चों को पढ़ाते थे. रात में कई बार उन्होंने 12
बजे से क्लास लेना शुरू किया और सुबह के छह बजे तक पढ़ाते रहे. उन दिनों को याद
करते हुए कादर कहते हैं सभी बच्चे फर्स्ट क्लास में पास हो गये थे. मैं 150 बच्चों
को पढ़ाता था.
कादर भले ही बड़े 
स्टार थे लेकिन उन्होंने अपने पुराने दिन पर कभी शर्म नहीं किया. मुंबई के
सबसे गंदे इलाके में रहे कादर, उन दिनों को अपने दिल के सबसे साफ कोने में रखते
थे. माता- पिता के अलग होने का जिक्र करते थे, दूसरे पिता के सौतेला व्यवहार की
चर्चा करते थे. कादर ने कई इंटरव्यू में जिक्र किया कि कैसे  वह पढ़ाई छोड़कर चार रूपये के लिए काम करने का
फैसला ले रहे थे. मां ने उन्हें उस वक्त समझाया था कि अगर आज चार रुपये के लिए आज
काम करोगे, तो चार रुपये के ही रहोगे आगे नहीं बढ़ पाआगे पढ़ो….. कादर खान ने
हमें जिदंगी को देखने का नजरिया और पुराने दिनों को अपने दिल में जिंदा रखना सीखा
गये… उन्हें एक अभिनेता के रूप में याद कीजिए लेकिन उससे ज्यादा उनके संघर्ष के
लिए क्योंकि उनके डॉयलॉग भले ही हमारे चेहरे पर मुस्कान लायेंगे लेकिन उनका संघर्ष
हमें आगे बढ़ने की ताकत देगा.  

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