चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष रंजीत गोड़ोदिया |
लोग आये थे. उन्हें सड़क मार्ग से जमशेदपुर से जाया गया. रास्ते की हालत देखकर
निवेशक वहीं से कोलकाता चले गये और वहां से प्लाइट पकड़ी और अपने देश चले गये.
जबकि जमशेदपुर के बाद उन्हें रांची वापस आना था. यहां निवेश का माहौल देखना है, तो
आप बिजली की हालत देखिये. राजधानी में 4 से 6 घंटे बिजली कटती है बाकि जगहों की आप
बात ही छोड़ दें. कैसे आयेंगे निवेशक ?
राज्य के मुखिया व्यस्त रहते हैं. यहां के
व्यापारी वर्ग के लिए उनके पास वक्त नहीं है. उक्त सारी बातें झारखंड चैंबर ऑफ
कामर्स के अध्यक्ष रंजीत गाड़ोदिया ने कही.
चैंबर से बातचीत करके कई समस्याओं का हल निकाल सकती है सरकार
उन्होंने आगे कहा, अगर सरकार को
व्यापारी वर्ग से बात करने का वक्त होता, तो हम उन्हें बता पाते कि कितनी समस्या
है. बाहर
से जितने निवेशक आते हैं. वह हमारे पास जरूर आते हैं. यह जानने के लिए कि राज्य
में निवेश को लेकर क्या संभावनाएं हैं. हमें उन्हें सच्चाई बतानी पड़ती है. हम झुठ नहीं बोल सकते क्योंकि सबकुछ उन्हें भी
दिखता है. हम सभी मानते हैं कि मुख्यमंत्री रघुवर दास पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन
आपसी बातचीत से चीजें और बेहतर हो सकती है. मोमेंटम झारखंड में जितने भी निवेशक
आये थे.
सबने चैंबर के साथ बातचीत की उन्होंने खुद कई परेशानियां बतानी शुरू कर
दी. चीफ सेक्रेटरी राजबाला वर्मा या सीएम रघुवर दास सप्ताह में या महीने में 15
मिनट का भी समय निकालें, तो चीजें स्पष्ट हो सकती हैं. राज्य में निवेश के लिए
बेहतर माहौल बन सकता है. हमने कई चिट्ठियां लिखी, मिलने की कोशिश की लेकिन सब
बेकार हमें कोई जवाब नहीं मिला.
चैंबर की नहीं तो कैग की भी सुनिये
पर खूब पोस्टरबाजी हुई. कई प्रचार वाहन निकले. निवेश के कई दावे किये गये. इस
प्रचार के बीच कई ऐसी चीजें हुई जिसे नजरअंदाज कर दिया गया . कैग की रिपोर्ट में
भी वही बातें कही गयी है जो बातचीत में रंजीत गोड़ोदिया ने कही. हमारे राज्य में साल 2001
से 2016 के
बीच लगभग 3.51 लाख करोड़ रुपये से अधिक समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए.
उसका ‘महज 3.8 फीसदी ही धरातल पर
उतर सका. इसके पीछे जो कारण बताये गये हैं, उनमें कानून-व्यवस्था की कमी, बिजली और पानी
कनेक्शन की कमी प्रमुख है. सरकारी चैंबर के सुझाव पर चुप्पी साध सकती है लेकिन इस
रिपोर्ट पर उन्हें खुलकर सामने आना चाहिए और कोई रास्ता निकालना चाहिए ताकि निवेश
के लिए की जा रही कोशिशें सही ढंग से धरातल पर उतर सकें.
झारखंड की मिट्टी
कैप्टन कूल मेहन्द्र सिंह धौनी झारखंड
मोमेंटम के ब्रांड एंबेसडर बने थे.
उन्होंने इसके लिए एक रूपये नहीं लिये. उन्हें उम्मीद थी कि वो जिस हाथी के
उड़ने का सपना देख रहे हैं वह जरूर उड़ेगा. उन्होंने जिस विज्ञापन में काम किया
उसमें लोग उनसे पूछते हैं कि हर परिस्थिति
में इतना कूल कैसे रहते हो ? किस
मिट्टी के बने हो?.
इस पर उनका जवाब सुनेंगे तो आपको अंदाजा होगा उन्हें क्या उम्मीदें थी, जवाब है, हिंदुस्तानी,
जिसमें महक है मेरे झारखंड की. हर मुश्किल को आसान बनाने का
भरोसा इसी मिट्टी से, तो आता है और इसी की पहचान है ये उड़ता हाथी. ये हाथी उड़ेगा
और झारखंड देश का नंबर वन इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन बनेगा. सवाल ये है कि क्या आप
हमारे साथ होंगे.
आये निवेशकों ने दिया आखिर इंडियन कैप्टन का सबसे कूल, भरोसेमंद और काबिल कप्तान
अपने राज्य में निवेशकों को आमंत्रित करे और लोग ना आयें ऐसा तो हो नहीं सकता.
दुनिया भर से लोगों ने आकर झारखंड मोमेंटम को सफल बनाया लेकिन इसकी सफलता क्या
इंवेंट के रूप में देखी जानी चाहिए या इसकी सफलता का आकलन यहां हुए निवेश से होना
चाहिए.
प्रचार और दावों से ज्यादा ध्यान देती कमियां दूर करने पर, सरकार एम.एस धौनी के
माध्यम से उड़ते हाथी का सपना तो दिखा सकती है लेकिन कैग की उस रिपोर्ट को कैसे
नकार सकती है जिसमें कानून व्यवस्था से लेकर बिजली की समस्या तक का जिक्र है.
सरकार विदेश यात्रा से पहले व्यापारी वर्ग
की आवाज सुनती ना कि वहां रोड शो और बड़े इवेंट के जरिये लोगों को निवेश के लिए
आमंत्रित करती.
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