पिठौरिया में किसान ने आत्महत्या कर ली. कई न्यूज चैनल और मीडिया वाले पहुंचे. मैं भी इस भीड़ का हिस्सा था. परिवार के लोग परेशान थे. किसी ने पति, तो किसी ने पिता , किसी ने भाई तो किसी ने अपना बेटा खो दिया था. दूसरे इस भीड़ के सवाल. काश कोई इन्हें समझा देता. अभी तो कई तरह के सवाल होंगे, आश्वासन मिलेंगे. नेता -अधिकारी का आना जाना जारी रहेगा. कई वायदे होंगे, जिनके पूरे होने की गांरटी कोई नहीं देगा. किसी भी त्रासदी के बाद मीडिया अपने सवालों के जरिये असल परीक्षा के लिए तैयारी कराता है. यह एक तरह का टेस्ट है नेताओं और अधिकारियों के आने के बाद उनके सवाल असल परीक्षा वाले होते हैं.
किसान आत्महत्या मामला : कलेश्वर के घर पहुंचे अधिकारी, मजिस्ट्रेट से जांच की अनुशंसा
अभी तो पुलिस, नेता और सरकारी अधिकारी ये मानने को तैयार नहीं कि यह आत्महत्या है. सरकार ने कहा हम जांच करायेंगे. सोच रहा हूं कैसे जांच होगी, कमलेश्वर आयेगा जवाब देने, जिस महुआ के पेड़ में किसान ने आत्महत्या कर ली उसकी गवाही चलेगी ?. पेड़ के नीचे पड़े उसके चप्पल की गवाही चलेगी. उसकी धोती जिससे उससे उसने खुद को लटका लिया उसकी गवाही चलेगी.
जिस पत्नी ने अपने हाथों से पति की लटकते शव को उतारा उसकी गवाही चलेगी. क्या उन बच्चों की गवाही चेलगी जिसने अपने पिता को लटकता देखा या उन गांव वालों की गवाही चलेगी जो इस घटना के गवाह है.
सरकार इन गवाहों से काम ना चलें तो मैं भी गवाह हूं मेरी गवाही चलेगी मैं कह रहा हूं कर्ज ने जान ले ली उसकी आपकी केसीसी योजना और उसके भ्रष्ट्र कर्मचारियों ने उस फंदे तक टांग कर पहुंचाया है उसे. पिछले दिनों मैंने स्टार्ट अप पर एक स्टोरी की थी. उसमें बताया था कि कैसे आपका छोटा सा आइडिया बड़े व्यापार में बदल सकता है. ऐसे मामले देखता हूं तो टूट जाता हूं एक किसान जो नयी वैज्ञानिक तरीके से खेती कर रहा था अच्छी कमाई कर रहा था आखिर इतना कैसे टूट सकता है .
किसान आत्महत्या मामला : पत्नी ने कहा, कर्ज के दबाव में कर ली आत्महत्या
इसका जवाब भी है स्टार्ट अप और किसानी में फर्क है. इसमें सिर्फ मेहनत होती है कोई व्यापारिक स्कील नहीं होता, चालबाजी नहीं होती. सामान बेचने के लिए विज्ञापन नहीं होता, मार्केट रिसर्च नहीं होता. नुकसान पर सरकार की तरफ से उनती राहत भी नहीं मिलती जितना स्टार्ट अप को है. स्टार्ट अप इंडिया स्टैंड अप इंडिया में हमारे किसान क्यों नहीं. देश स्टैंड अप होगा जब किसान उठेगा आगे बढ़ेगा.
किसान की आत्महत्या पर शोक जताने सरकार का एक मंत्री नहीं पहुंचा कम से कम आज तो मैंने किसी को नहीं देखा. बाद में खबर मिली की कृषि निदेशक राजीव कुमार कुछ अधिकारियों के साथ पहुंचे. हां विपक्ष के एक नेता हमेंत पहुंचे मैं वहीं था लेकिन मन नहीं हुआ कि उनकी बात सुनी जाए, रिकार्ड करूं, उनसे सवाल करूं. जवाब जानता था क्या होगा ?. विपक्ष के एक तो पहुंचे सरकार की तरफ से राजनीति चमकाने का एक मौका नहीं छोड़ने वाले नेता किसान की आत्महत्या पर चुप है. कुछ नेता, तो सवाल खड़े कर रहे हैं घर बैठे सवाल खड़े कर देना आसान है मैं कभी – कभी सोचता हूं किस यकीन से कहते हैं किसान आत्महत्या नहीं कर सकता.
ऐसा क्या कर रहे हैं किसानों के लिए कि इनमें इतना आत्मविश्वास बढ़ा है तो कैसे. क्या साल डेढ़ साल में एक बार किसी किसान के यहां या किसी दलित के यहां किया गया भोजन इनमें इतना विश्वास भरता है कि जो किसान हमें पुड़ी, चावल और कई तरह की सब्जियां खिला रहा है उसे नून ( नमक) रोटी तो मिलता ही होगा.
समय मिले तो कलेश्वर के घर जाकर देखिये, खिड़की नहीं है दरवाजे नहीं है. इस साल के फसल से खिड़की और दरवाजे लगाने थे जितने भी नेता घर जायेंगे खिड़की के दरवाजों पर कम कैमरे की फ्लैश पर ज्यादा नजर होगी. कर भी क्या सकते हैं राजनीति इसी फ्लैश से, तो चमकती है.
अरे साहेब ये, तो शुरुआत है एनसीआरबी के रिपोर्ट में अपना झारखंड किसानों की आत्महत्या के मामले में भले ही पीछे रहा हो स्मार्ट सिटी और स्वच्छ भारत अभियान के टक्कर में भले आगे ना निकल पाया हो लेकिन जमीनी हकीकत और किसानों की असल समस्या से ध्यान हटी तो आप जरूर इस बार किसानों की आत्महत्या के मामले में आगे होंगे. इसके लिए अभी से बधाई स्वीकार कीजिएगा.
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