कल मोहराबादी मैदान में सरकार अपने कामों का प्रदर्शन करेगी. झांकी के जरिये दिखाने की कोशिश होगी की डिजिटल इंडिया में झारखंड कितना आगे है ?, स्वच्छता में कितना आगे है ?, कुछ घंटों के लिए हमें लगता है सबकुछ कितना अच्छा है अपने देश में अपने राज्य में. सब काम सही हो रहा है. देश विकास कर रहा है हम यही सोचते हैं झांकी देखते हैं और जलेबी खाते- खाते घर आ जाते हैं. मैं कल रात 9 बजे मोहराबादी में था. खूब जोर शोर से काम चल रहा है.
सभी मजदूर व्यस्त थे. फिर भी कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की. झांकी के लिए जो बड़ी गाड़ियां लायी गयी हैं उनमे से कुछ पंजाब की हैं, तो कुछ दूसरे राज्यों की. पंजाब से आये एक ड्राइवर अपनी गाड़ी में खाना बना रहे थे. रोटी और चिकन बनकर तैयार था. उन्होंने खाने का न्यौता भी दिया लेकिन इस प्यार के साथ- साथ उन्होंने नाराजगी भी जाहिर कर दी. कहने लगे कैसा राज्य है आपका ? मैं दिल्ली जा रहा था रास्ते में ही मुझे रोक लिया सरकारी काम का हवाला दिया और यहां उठा लाये ! . 17 तारीख से मैं यही हूं. पैसा मिल रहा है लेकिन मेरे कई काम पहले से तय थे, उनका नुकसान हो रहा है. मैं कई राज्यों से गुजरा हूं लेकिन आजतक ऐसा नहीं देखा. अगर आपको गाड़ी चाहिए थी जमशेदपुर से मंगवा लेते. मुझे घर जाना था. घर में भी कई काम पड़ा है मैंने ये गाड़ी खरीदी है इसका पेपर ट्रांसफर कराना है.
रात के अंधेरे में सुबह के जश्न की तैयारी
मोहराबादी में गणतंत्र दिवस की तैयारी में लगे मजदूर रात को एक छोटे से कंबल में दुबकर सो रहे हैं. 24 घंटे काम चालू है लेकिन आराम तो जरूरी है. कुछ पलों की खुशी के लिए इनकी जीतोड़ मेहनत देख लेने से आप उस दिन का और मजा ले पायेंगे. किसी चीज को बन जाने के बाद देखने का मजा और ज्यादा हो जाता है जब आप उसे बनते हुए देखते हैं. कई जगह काम के साथ- साथ खाने की भी तैयारी चल रही है. कहीं आलू की सब्जी बनी है तो कहीं बधगोभी तो कहीं चिकन बनकर तैयार है. सोने की क्या व्यवस्था है ?. इस पर कुछ मजदूर जवाब देते हैं जहां जगह मिले फैल जाइये घर जैसा आराम नहीं मिलेगा आपको.
कई राज्यों के मजदूर सजा रहे हैं आपके राज्य की झांकी
यहां काम करने वाले मजदूर कई जगहों से आये हैं कोई उड़ीसा का है ,कोई यूपी का, कोई बंगाल का तो कोई बिहार का. सब अलग- अलग काम में माहिर हैं. मूर्ति का काम करने वाले ज्यादातर बंगाल से आये हैं. इनको मूर्ति का काम करते हुए देखकर लगता है जैसे चुपचाप खड़े होकर देखने में ही भलाई है अगर कुछ कह दिया तो इनका ध्यान ना भटक जाए. हम जितने गौर से झांकिया नहीं देखते वो उतनी ही बारिकियों से इसका काम करते हैं.
बनाने में वक्त लगता है बिगाड़ने में नहीं
26 जनवरी की तैयारी के लिए काम 17 जनवरी से ही शुरू है और 25 की रात तक खत्म हो जायेगा. एक मजदूर बताते हैं कि 25 की रात 12 बजे के बाद यहां एक हथौड़ा नहीं चलेगा काम उससे पहले पूरी तरह खत्म करना है. मैंने पूछा कि ये सब बनाने में इतना वक्त लगता है हटाने में कितना वक्त लगेगा. उनका जवाब मुझे लाजवाब कर गया. उन्होंने कहा, किसी चीज को बनाने में वक्त लगता है उसे तोड़ने में वक्त नहीं लगता. ये काम तो फटाक से हो जायेगा. अपनी बनायी चीज को तोड़ते वक्त कैसा लगता है ?. इस पर कई मजदूर चुप रहे और कुछ ने हल्की मुस्कान से जवाब दे दिया. जबकि एक ने कहा, पैसा सबकुछ है हमें बनाने के भी पैसे मिलते हैं और तोडऩे के भी.
बकैती
इनकी मेहनत तो 26 जनवरी को रंग लायेगी सुबह उठकर आप इन्हें देखने पहुंच जायेंगे. सुबह उठकर जब आप राष्ट्रगान के लिए खड़े हो तो सोचियेगा क्या हम कुछ कर पाते हैं देश के लिए? हम इतना जरूर करते हैं. गाड़ियों में लगाने के लिए तिरंगा खरीदते हैं, फेसबुक और व्हाट्सएप की डीपी में तिरंगा लगा लेते हैं . देशभक्ति गानों पर भावुक हो जाते हैं या ज्यादा से ज्यादा रिंगटोन ऐ मेरे वतन के लोगों रख लेते हैं. हम कर भी क्या सकते हैं? बस आप इतना याद रखिये कि इन झाकियों के इतर भी देश है लोग हैं और इनके बहकावे में असल हालात पर झांकना ना भूल जाइयेगा.
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