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मैं मरीज हूं सिर्फ दवा का कड़वा स्वाद बता सकता हूं,बाकि डॉक्टर साहेब जानें

मैं डॉक्टर नहीं हूं ! मरीज हूं.  इसलिए सिर्फ दवा का स्वाद बता सकता हूं. ये नहीं बता सकता कि इसका असर कितना होगा या मैं कबतक ठीक हो जोऊंगा. दवा पड़ रही है, तो बीमार जरूर मानने लगा हूं खुद को. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान का जिक्र करते हुए बहुत पहले कहा था,  देश को ठीक करने के लिए कुछ कड़वी दवाएं देनी पड़ेगी. मेरे लिए देश का अर्थ हम हैं यानि आम लोग और मैं. मुझे नहीं पता कि 500 और 1000 रुपये के नोट बदलने के लिए बाकि आम लोगों का क्या हाल है, लेकिन.. मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि अबतक मैं 4 घंटे से ज्यादा (कुल मिलाकर) एटीएम के सामने खड़ा रहा हूं.

दो मंजिला पर एसबीआई का दफ्तर…

मेरे पास, तो नोट बदलने के लिए 500 या 1000 रुपये के एक नोट भी नहीं थे हां घर पर तीन हजार रूपये निकले. जिसमें से अबतक 500 के पेट्रोल भरा चुका हूं बाकि भी इसी तरह खर्च कर लूंगा. मैने अपनी दवा चख ली और 4 घंटे के अनुभव से ही इसका स्वाद बता रहा हूं लेकिन आप कितने बीमार हैं और आपकी दवा का स्वाद कैसा है ये बैंक के बाहर खड़ी लाइनें बता रही है. इसके बाद जो कोर कसर बाकि रह जा रही है उसे चैनल, अखबार वाले चिल्ला चिल्ला कर बता दे रहे हैं. हां मेरे ग्रामीण मरीजों का क्या हाल है इसकी जानकारी कम है सिर्फ इतना पता है कि ईलाज तो चल रहा है लेकिन डॉक्टर साहेब कब पहुंचते हैं कब दवा देते हैं या कब हाल जानने आते हैं पता नहीं चलता ( वहां के बैंक, एटीएम या डाक घर के हालातों की रिपोर्टिंग कम हो हो रही है)

गांव के मरीजों के अलावा एक और तबके के मरीज है जिनका हाल चाल पता नहीं चलता ये महंगे अस्पताल और कड़वी दवा को भी मीठी गोली में बदलने वाले लोग है. मैंने, तो ये दवाई का स्वाद किसी बड़े अधिकारी, अभिनेता या नेता को लेते हुए नहीं देखा. हां कुछ लोग टीवी पर दिखने के लिए लाइन में जरूर खड़े नजर आये लेकिन वो पांच घंटे लाइन में खड़े होने का दर्द शायद ही  महसूस कर सकें लेकिन बीच में बीच में आकर बता देते हैं कि हम लोग ठीक हो रहे हैं दवाई कड़वी है लेकिन फायदा पहुंच रहा है. हो सकता है उनके लिए लाइन में कोई और खड़ा हुआ है लेकिन दवाई का स्वाद तो सबको बराबर मिलना चाहिए.

दो हजार रुपये का नोट किसी और का है .मेरे पास अबतक नहीं पहुंचा लेकिन फोटो जरूर सामूहिक रूप से ले ली है…

क्या ऐसा हो सकता है कि मै किसी और के परिचय पत्र से नोट बदल लूं ? या ऐसा हो सकता है कि बैंक मैनेजर से मेरी पहचान काम आ जाए ? . अगर मेरे लिए ऐसा नहीं हो सकता तो उन लोगों के लिए क्यों ?. मैं अब क्यों वाले सवाल से डरने लगा हूं. आप क्यों मत पूछिये मैं बता देते हूं  क्योंकि जैसे ही मैं ये सवाल करता हूं मुझे तुरंत जवाब मिल जाता है कि देश में व्यवस्था बनी है गरीब, अमीर के बीच एक लंबी खाई है. पद से प्रतिष्ठा का अंदाजा लगाया जाता है.

खैर मुझे नहीं पता कि अब कितने दिनों तक दवाई का डोज चलेगा. कितने दिनों तक ये परेशानी झेलनी होगी लेकिन बड़े डॉक्टर साहेब ( वित्त मंत्री अरुण जेटली ) कह रहे थे दो सप्ताह के बाद सब ठीक जो जायेगा. उन्होंने समय तो दिया है लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं दी कि फिर कोई डोज नहीं पड़ेगा या बीमारी जड़ से ठीक हो जायेगी. हम ठहरे मरीज डॉक्टर की बात मानने के सिवा हमारे पास रास्ता भी क्या है.

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