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रैली या धार्मिक कार्यक्रम, बाबा और नेता दोनों की जुगलबंदी

यूं तो रांची के 
मोहराबादी मैदान में कई तरह के आयोजन होते रहते है. लेकिन 5 और छह अप्रैल
को यहां सद्भावना सम्मेलन का आयोजन किया गया. समारोह के सामापन के दिन इस
कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नीतिन गडकरी भी पहुंचे. मुझे इस कार्यक्रम की
जानकारी तो थी, लेकिन याद नहीं रख पाया था. शाम में जब भी मौका मिलता है अक्सर
ताजी हवा की लालच
 में मोहराबादी चला जाता
हूं. शाम को जब मैं मोहराबादी पहुंचा, तो भारी भीड़ देखी. बड़े बड़े स्पीकर से
मुख्यमंत्री की आवाज दूर दूर तक जा रही थी. मंत्री अपने सौ दिनों का एजेंडा जनता
के सामने रख रहे थे. खैर दूर से ही यह कार्यक्रम धार्मिक कम राजनीतिक ज्यादा लग
रहा था. इच्छा हुई की नजदीक जाकर समझने की कोशिश करूं, जबतक पहुंचा मुख्यमंत्री का
संबोधन खत्म हो चुका था. 


कार्यक्रम में शामिल लोग तालियां बजा रहे थे ऐसा लगा मेरे
आने से खुश हैं और स्वागत में तालियां बजा रहे है. खैर जाते जाते मुख्यमंत्री के
कुछ वादे तो मेरे कानों में भी पड़े थे, जिनमें रिक्शा चालकों को ई रिक्शा देने की
घोषणा, लड़कियों की शिक्षा पर ज्यादा जोर , बच्चों को टैबलेट जैसे कुछ योजनाएं थी.
इन बातों को सुनकर लगा कि ये बढ़िया है, हमारे प्रधानमंत्री
  ने सभी नेताओं को यह संदेश दिया है कि आप जो भी
काम कर रहे हैं उन्हें जनता के सामने रखिये, हमारे मुख्यमंत्री ने भले ही वो काम
सामने नहीं रखे लेकिन आगे क्या करना है वो सामने रख दिया. खैर कार्यक्रम में लगभग
तीन हजार लोगों की भीड़ होगी.




सतपाल महाराज को पहले मैं दो या तीन बार टीवी में सुन चुका
हूं, पर सच कहूं तो बहुत कम जानता हूं उनके विषय 
में. इसलिए वहां जमा हुए उनके भक्तों से उन्हें समझने की कोशिश की. पाकुड़
से एक भक्त आये थे और दो दिनों से यहीं पर डेरा जामाए हुए थे. उनका नाम तो मेर
दिमाग से निकल गया पर मुंडा जी थे इतना याद है. उन्होंने बताया कि वह बाबा से लगभग
12 सालों से जुड़े हैं. उनके ही एक परिचित ने उन्हें बाबा के बारे में बताया.
मैंने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया कि मैं पत्रकार हूं, मैंने उनसे कहा कि मैं भी
जुड़ना चाहता हूं. ये सुनकर उन्होंने बाबा के विषय में कई कहानियां बतायी. कैसे इस
धर्म पर विश्वास ना करने वालों की असमय मौत हो जाती है, बाबा सपने में आते हैं, जो
चाहों वो मिलेगा, गाड़ी खरीदना चाहों तो बाबा का ध्यान करो, अच्छी जिंदगी इनके भक्ति
के बगैर नहीं जी जा सकती. भगवान का बेटा भी भगवान होता है, पत्नी भी भगवान होती है
और बहु भी तीनों स्टेज पर हैं दूर से ही मुंडा जी ने उनका परिचय दिया. उनसे बातचीत
के बाद इस विषय में जानने की जिज्ञासा और बढ़ गयी. उन्होंने बताया कि सेवा दल में
जो पुलिस भरती है उनकी नौकरी सरकारी होने वाली है. बाबा सरकारी नौकरी भी दिलाते
है. इस बीच एक दूसरे भक्त ने खड़े होकर हमें चुप रहने और प्रवचन सुनने का इशारा
किया. मैंने भी मुंडा जी से आज्ञा लेकर आगे बढ़ना उचित समझा. बाहर से आये लोगों के
लिए कैंप लगे थे, यहां सोने, खाने की व्यवस्था की गयी थी. जब हम अंदर जाने लगे तो
हमसे पास मांगा गया हमने बताया कि भई हमारे पास तो कोई पास नहीं है. अंत में मेरा
पत्रकार होना ही काम आया और हमें अंदर जाने की इजाजत इस मन से दी गयी जैसे उनके
पास कोई और रास्ता ना हो, खैर अंदर कैंटीन लिखी हुई एक जगह पर खाने पीने की चीजें
बेची जा रही थी. 



टूथपेस्ट, साबुन जैसे सामान भी यहां  थे. दूसरी जगह भक्तों के लिए खिचड़ी बन रही थी
जो मुफ्त थी. लेकिन जितने लोग कार्यक्रम में आये थे उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन कराना
पड़ा था. हमने जहां रजिस्ट्रेशन हो रहा था वहां जाकर जानना चाहा कि आखिर कितने
पैसे लग रहे हैं तो उन्होंने बताया कि हर एक व्यक्ति के पांच रुपये, लेकिन सामने
पड़ी रसीद पर 151 रुपये लिखी  देखी, तो
मैंने पूछा कि ये किस चीज के पैसे लिए गये हैं तो कर्मचारी ने बताया कि ये दान है
यहां रहने वाले लोग अपनी मरजी से दे रहे हैं मैंने दान की राशी जाननी चाही, तो
नाराज हो गये कहने लगे जिसकी जितनी क्षमता हो उसने उतना दिया. किसी ने दस रुपये तो
किसी ने दस हजार तो किसी ने 20 हजार. मैंने पूछा कि दो दिनों में कितने लोग शामिल
हुए तो बताया गया कि पहले दिन तो 12 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे दूसरे दिन का
आकड़ा अबतक हमारे पास नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि पहले दिन से बहुत ज्यादा लोग
है. मैं हिसाब लगाने लगा कि पांच रुपये के हिसाब से लगभग 20 हजार लोगों ने भी पांच
रुपये रजिस्ट्रेशन फी दी तो कितना हुआ. इसके इतर जिन्होंने कम से कम 10 रुपये से
लेकर 20 हजार से ज्यादा का चंदा दिया ,तो कितना पैसा हुआ लेकिन हिसाब लगाने में
असफल था क्योंकि लोगों की संख्या और चंदे की राशि की सही जानकारी मेरे पास नहीं
थी. मैदान में आर्युवैदिक दवाओं को, धार्मिक पुस्तकों की दुकान भी थी. 



इन सबको समझ ही रहा था कि मंत्री जी के कार्यक्रम से जाने का
वक्त हो गया और भीड़ में हलचल होने लगी मैं मंत्री जी की काली गाड़ी के सामने ही
खड़ा था जैसे ही मंत्री जी मंच से निकले गाड़िया स्टार्ट होने लगी. तभी सफारी पहने
एक आदमी आए संभवतः किसी मंत्री के पीए होंगे, कहने लगे अरे रूको अभी मंत्री जी
नाश्ता करेंगे. वक्त लगेगा. मंत्री जी की गाड़ी के अंदर झांकने की कोशिश की एक
अंग्रेजी अखबार , सीट पर दो बड़े- बड़े तकिये एक टैबलेट और म्यूजिक की आवाज थोड़ी
खिड़की खुली होने के कारण आ रही थी. मेरे मन में एक साथ कई सवाल उठने लगे कि जनता
क्या सिर्फ भीड़ है, जिसे तरह-तरह से मुर्ख बनाने की कोशिश की जा रही है. जनता
सरकार बनाती है, ये सपने देखती है कि उन मुश्किलें कम होगी. जनता बाबाओं को भा सह
देती है. इस अंधविश्वास में की ऊपर वाला. तो ऊपर है कोई तो नीचे है जो उनकी जायज,
नाजायज मांगों को पूरा करेगा. लेकिन दोनों ही देने के बजाय लेने में लगे है. एक
वोट लेकर 100 दिनों के काम का हिसाब देने के बजाय सपने दिखाकर चला गया. एक पांच
रुपये और चंदे लेकर ज्ञान की बातें सीखाकर चला गया. और एक मुंडा जी, जो दोंनों को
सुनते रहे और दूसरे दिन से वापस अपने उसी जीवन में चले गये जहां उन्हें हर दिन कमा
कर खाना है.  

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