रोहित वेमुला, आज सुबह ही यह नाम सुना ऑफिस आया तो उसकी चिट्ठी पढ़ी. कई आत्महत्याएं की खबरें पहले भी कवर कर चुका हूं भले ही स्पॉट में ना होकर इंटरनेट से ही कवर किया हो पर अक्सर उन सभी का आखिरी खत पढ़ने को मिल जाता है. उनके आखिरी खत से पता चल जाता है कि वो किस तकलीफ से जुझ रहे थे.
हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय परिसर में स्थित छात्रावास कक्ष में पीएचडी के दलित छात्र रोहित वेमुला ने आज आत्महत्या कर ली. उसकी चिट्ठी पढ़कर 2009 में रिलीज हुई फिल्म थ्री इडियट की याद आ गयी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यही आ गया होगा कि गले में पड़ी रस्सी के दवाब में रोहित की मौत हो गयी. उसकी मानसिक दबाव का कहीं जिक्र नहीं होगा. मुझे नहीं पता की केंद्रीय विश्वविद्यालय ने किस खास वजह से उसे टैंट में बाहर सोने पर मजबूर कर दिया. सार्वजनिक जगहों पर जाने से रोक लगा दी. लेकिन एक छात्र जो विज्ञान में रूची रखता था कुछ बनना चाहता था अपने भविष्य में कुछ कर दिखाना चाहता था उसे आपने आखिरी खत में ये क्यों कहना पड़ा कि जिन लोगों से उसने प्यार किया उन्होंने अपना रिश्ता प्रकृति से कब का तोड़ लिया.
लोग किसी भी व्यक्ति को एक संख्या की तरह देखते हैं एक वोट की तरह देखते हैं इंसान या एक खास दिमाग की तरह नहीं देखते. वैसे सच कहूं तो हर बार ऐसे सवाल उठते हैं जब कोई अपना ऐसे ही बिना वजह छोड़कर चला जाता है हम कुछ देर के लिए चीखते हैं चिल्लाते हैं फिर शांत हो जाते हैं.
हमारा स्वभाव ही यहीं है. फिर रोहित से मेरा रिश्ता भी क्या था कि मैं इतना चिल्ला रहा हूं. रिश्ता था मैं उसे भले नहीं जानता था पर अब उसके ना होने के बाद उसे जरूर जानने लगा हूं. विश्वविद्यालय की राजनीति कैसी है एक दलित के लिए उस राजनीति में जगह क्या है, उसकी अपनी सोच अपनी विचारधारा को रखने के लिए उसे कैसा माहौल मिलता है इस पर बुद्धिजीवि चर्चा करें मैं ये उनके लिए छोड़ता हूं लेकिन रोहित को इस दुनिया से छोड़कर जाने पर मजबूर करने वाला कौन है उसे ढुढ़ कर सामने जरूर लाना चाहिए. रोहित ने अपने आखिरी खत में लिखा है कि उसकी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं लेकिन जिम्मेदारी किसी न किसी तो लेनी होगी.
सुसाइड में भारत नंबर वन है जितने बच्चे बीमारी से नहीं मरते आत्महत्या करके मर जाते हैं. प्रधानमंत्री जी हमेशा कहते हैं कि यह युवाओं का देश है औऱ भारत में आर्थिक रूप से विकास करने की ज्यादा संभावनाएं है बात सोलह आने सही है लेकिन एक बार ये देखना तो होगा कि वही युवा और आत्महत्या करने पर मजबूर क्यों है. बात सिर्फ रोहित की नहीं है और ना ही सिर्फ रोहित पर खत्म होती है.
दिल्ली में जब दामिनी से बलात्कार हुआ तो हम जागे पर सोचिये उससे बदला क्या कुछ नहीं एक कमेटी बनी कानून पर चर्चा हुई. मुख्य आरोपी नेआत्महत्या कर ली बाकि के आरोपी मौत की सजा पाकर जेल में हैं तो एक नाबालिग आजाद है. उसके बाद बलात्कार की संख्या में कमी आयी क्या. हम कर भी क्या सकते हैं आज एक रोहित को खो जुके हैं कल किसी संजय, राजू , विजय या महेश को खोयेंगे.
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