रांची के अटल स्मृति भवन में 400 कारोबारी भूख हड़ताल पर हैं. इस एक लाइन से ज्यादा की खबर है भी नहीं. इसे और खरोचने की, खबर के अंदर जाने की कोशिश करेंगे तो उनके हाथों के बैनर पोस्टर तक पहुंचगें, फुटबॉल नहीं इंसान है हम “, क्या वेंडर होना जुर्म है, बच्चे हमारे भूखे हैं, सरकार बताये कि हम क्या खायें. इसके बाद भी इस खबर को और खरोचना चाहेंगे तो दर्द और तकलीफ के सिवा कुछ नहीं मिलेगा. कहानियां मिलेंगी वेंडर्स की, उनके बुढ़े मां बाप की, बच्चों के आधे पेट खाकर सोने की. आप करेंगे क्या इतना खरोच कर.
इसलिए कह रहा हूं खबर एक लाइन की है इसे खरोचिये, नोचिये मत 400 मजदूरों की संख्या याद रखियेगा. इसकी चर्चा खूब हो यह जरूरी भी नहीं है सरकार आजकल सड़क पर विरोध प्रदर्शन की नहीं ट्विटर पर टैग की सुनती है. वहीं फैसला होता है और वहीं रिजल्ट दिखता है. अगर सरकार इनकी सुन भी लेती है तो इनके चीखने के बाद आवाज क्यों सुनी जाती है. क्या सरकार इनका दर्द बगैर चीखे चिल्लाये नहीं सुन सकती.
देश छोड़ दीजिए हम अपने घर की समस्या समझ लेते हैं. प्रवासी मजदूरों हमारे राज्य में हैं लाखों में हैं. मन नहीं है संख्या लिखने का क्या कर लेंगे आप जानकर. चिंता किसे है ? आंकड़े वांकड़े आप समझते रहियेगा बस इतना समझ लीजिए इनसे कुछ होता जाता नहीं है. अब तो हम उस स्थिति में है जो इस तरह की परेशानी में सरकार को नहीं स्टार को याद करते हैं.
मजाक नहीं कर रहा हूं केंद्र औऱ राज्य की सरकारों से लोगों ने उम्मीदें छोड़ दी. अभिनेता सोनू सूद से काम मांग रहे हैं. उस भले आदमी ने दर्द में तकलीफ में आपकी तरफ हाथ क्या बढ़ा दिया अब हर बार आप उनकी तरफ हाथ फैला रहे हैं. बेचारे खुद बॉलीवुड में नेपोटिज्म के शिकार हो रहे होंगे. आपने अपने इलाके में विधायक, मुखिया चुना है उनसे अधिकार मांगिये, काम मांगिये, उनके घर जाकर बैठ जाइये, वहीं धरना दीजिए. वहीं थाली पीटिये. वेंडर मार्केट में छाती भी पिटेंगे तो सरकार नहीं सुनेगी. आपसे तो यह होगा नहीं.
अब सवाल है कि उम्मीद करें, तो किससे सरकार से ? सरकार तो रोजगार की चिंता छोड़ मैच करवाना चाहती है. अभी रांची के राजकुमार महेंद्र सिंह धौनी के संन्यास से मन दुखी है. हम तो सोनू से जितनी उम्मीद कर सकते हैं उतनी धौनी से भी नहीं कर सकते. कर सकते हैं क्या ? सच बताइये..
मैं क्रिकेट का फैन नहीं हूं, इसलिए खिलाड़ी के फैन होने का भी सवाल नहीं उठता. बाकि इतना जरूर मानता हूं कि उनकी वजह से अपने राज्य की पहचान मजबूत हुई है. आज भी कभी लोग रांची कहां….. कहकर मुंह बनाते हैं, तो धौनी के होमटाउन से शहर का परिचय देता हूं. इतना किया है माही सर ने इसके अलावा..
राज्य में क्रिकेट की स्थिति और बेहतर हो नये खिलाड़ी निकले इसके लिए क्या किया ? राज्य की बेहतरी के लिए क्या किया ? कोरोना काल में कितनी मदद की ? कैप्टन कूल उस दौर में भी कूल ही रहे, जब पूरी दुनिया परेशान थी.
रिंग रोड में उनके घर के पास से ही हजारों मजदूर पैदल चलकर अपने गांव लौट रहे थे, क्या कभी घर से निकल कर उनके लिए पानी की भी व्यस्था की ? आप धौनी के फैन होंगे पर नाराज मत होइये.
सारे सवाल हैं और यकीन मानिये मैं इनका जवाब जानना चाहता हूं. संभव है किया भी हो, दयावान आदमी हैं हो सकता है बताया नहीं हो.
अब धौनी, माही या राजकुमार से ये वेंडर मार्केट वाले उम्मीद करने से रहे. अब तो वो सिर्फ पत्रकारों के भरोसे हैं. पत्रकारों से उम्मीद है कि उनकी आवाज सरकार के कानों तक पहुंचा देंगे, हो सकता है कोई नौजवान इस पर खबर बनाकर ट्वीट भी कर दे तो संज्ञान ले लिया जाये.
पत्रकारिता में हमने 72 दिनों तक भूखहड़ताल करते देखा है उस वक्त सरकारी दूसरी थी ये सरकार दूसरी है लेकिन सरकार चलाने की रणनीति सबकी लगभग एक जैसी है. ये सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है गैर संगठित क्षेत्र में कितनी परेशानियां इसकी कहानियां भरी पड़ी है.
अब ये गरीब, पीड़ित, शोषित लोग खाने के बजाय इंटरनेट पैक डलवा कर टि्वटर पर आयें. सभी मंत्री, अधिकारी को टैग करें या बैठकर थाली पीटते रहें देर सबेर आवाज पहुंचनी तो जाहिए. सोनू और माही दोनों को ट्वीट कर दीजिएगा हो सकता है सोनू मदद के लिए हां बोल दें तो धौनी कहें हमरा इलाका है रहने दो हम देख लेंगे.
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