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इलाज के अभाव में किसी अपने को खोने का दर्द समझते हैं आप ?

दर्द तभी होता है, जब खुद को चोट लगती है. भावनात्मक तौर पर दूसरों का दर्द महसूस करने की क्षमता हम सभी में  खत्म हो गयी है. अगर आप मेरे इतना भी जिंदा है, तो जरा सोचिये- आपके घर का कोई अपना गंभीर रूप से बीमार है, आप अस्पताल लेकर गये वहां जगह नहीं है.

तमाम कोशिशों के बाद भी बिस्तर नहीं मिलता . पता चलता है कि जिन्हें बिस्तर मिली है, उनके पास पैरवी है. जिस वक्त आप यह तमाम कोशिश कर रहे हैं, आपके चुने हुए नेता अस्पताल में मौजूद हैं और यह देखने आये हैं कि किसी को कोई परेशानी तो नहीं ? आप बिस्तर, डॉक्टर की तलाश करते रहते हैं और अपना अपना इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है, तो आप क्या करेंगे. चीखेंगे, चिल्लायेंगे, शिकायत करेंगे,सिस्टम को लाख गालियां देगें.  नेताओं को कोसेंगे.  इससे कुछ नहीं बदलेगा, क्योंकि ये आपके साथ हुआ है, दूसरे लोगों के साथ नहीं. आप में अपनों के लिए भले ममता जाग गयी हो, बाकि लोग मर चुके हैं क्योंकि आप इस वक्त जब किसी के साथ ऐसा हुआ है, तो चुप हैं. 

आपके साथ ऐसा हुआ तो क्या कर लेंगे आप ? 

जब आप श्मशान घाट पहुंचते हैं, तो वहां आपको जगह नहीं मिलती. घंटों इतंजार करना पड़ता है. आपकी तरह कई लोग वहां आपको मिलेंगे, आपको लगेगा कि यह दर्द अकेले का नहीं है. घंटों इंतजार के बाद आप दाह संस्कार करके घर लौट जाते हैं और ये सोचते हैं कि.. चलो जो हो गया सो गया. आप भूलने की कोशिश करते हैं कि इस सिस्टम ने, इस राजनीति ने आपके साथ क्या किया है. भूल जाइये लेकिन ये याद रखियेगा कि परिवार में और भी सदस्य हैं. अगर ये भूले तो अगली बार जब आपके परिवार के किसी सदस्य के साथ दोबारा ये सब होगा तो फिर भूल जाने की ताकत रखियेगा.

पैसे देकर जब सुविधा नहीं मिली तो क्या करें 
  
अब सवाल है- नहीं भूलें, तो क्या करें ? किसी को  खोने के बाद इतनी ताकत नहीं रहती कि इस सिस्टम से लड़ा जाये लेकिन जरा सोचिये वो मुलभूत सुविधाएं जिसे पाना आपका अधिकार है, आप टैक्स देते हैंस तो सरकार बदलें में ये सुविधाएं देती है. आप टैक्स नहीं देते आपके यहां रेड हो जाती है, आपको जेल हो जाती है लेकिन पैसे देने के बाद भी आपको वो सुविधाएं ना मिले तो आप सरकार का क्या कर लेते हैं. राज्य के हालात आपके सामने हैं और सरकार चुनाव में व्यस्त है, कैसे सुन लेते हैं आप उनके वादे, बड़े – बड़े खोखले दावे, कैसे खरीद लेते हैं वो अखबार जहां बड़े – बड़े विज्ञापन छपते हैं, कैसे पढ़ लेते हैं वेबसाइट पर वो खबरें जिसका सच आप जानते हैं. 

खबर नहीं पढ़ी है तो यहां पढ़ लीजिए – क्लिक कीजिए 

पहली लाइन सटीक है शायद, जिसे चोट लगती है वही दर्द समझता है क्योंकि आप कभी समझ ही नहीं पायेंगे. देश में एक तरफ चुनाव चल रहा है दूसरी तरफ महामारी फैली हुई है. चुनाव की रैलियों में शोर इतना है कि आपकी चीख वहां तक पहुंचती ही नहीं है.  देशभर की बात छोड़ दीजिए झारखंड राज्य की राजधानी के सदर अस्पताल में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हालात का जायजा लेने पहुंचते हैं. 

फ्लैश लाइट की चमक में शायद, स्वास्थ्यमंत्री को नहीं दिखा बेटी का दर्द  

कोरोना वार्ड में घूसने से पहले फोटो खिचवाते हैं. आप बड़े मजे से तस्वीरें देखते हैं और मोबाइल रख देते हैं, आपकी ऊंगलियां कैसे शांत रह जाती है, इतना कुछ देखकर, क्या मन नहीं करता एक कमेंट ही करके बता दिया जाये कि गलत हुआ, कम से कम कुछ तो शांति मिलेगी. आपके अंदर कुछ तो जिंदा रहेगा.

जिस अस्पताल में स्वास्थ्य मंत्री तस्वीरें खींचवा रहे थे.  उसी अस्पताल के बाहर इलाज के अभाव में एक व्यक्ति दम तोड़ देता है, फ्लैश लाइट की चमक में शायद मंत्री जी उसे नहीं देख पाते. एक बेटी के आंसू नहीं देख पाते.उस बेटी ने  अपने सामने पिता को मरते देखा, चीखती चिल्लाती रही लेकिन मदद नहीं मिली. 

क्या उसका दर्द समझ सके है आप, हम पत्रकार हैं, इस दर्द को भी दिखाने की ताकत रखते हैं लेकिन आपकी वजह से इस दर्द में भी अब संपादकों को व्यापार नजर आता है.  रोती चिखती तस्वीरें खूब चलती है क्योंकि आप इसे देखना पसंद करते हैं. आपको किसी का दर्द देखने में शायद मजा आने लगा है. 

मत कीजिए पत्रकारिता से उम्मीद 

देश की राजनीति और राजनेता छोड़िये हमें देखना चाहिए कि हम किस तऱफ जा रहे हैं, हमारी सोच कैसी हो गयी है. पत्रकारिता पर ऊंगली उठाने से पहले खुद से सवाल करना सीखिये आप कैसी पत्रकारिता को बढ़ावा दे रहे हैं. आज की पत्रकारिता वैसी ही है, जैसे आप हैं. नौकरी ना मिले, वेतन ना मिले, आपके साथ कोई अन्याय हो तो आप देश के चौथे स्तंभ की तरफ देखते हैं, आप सभी ने उसे कितना मजबूत रहने दिया है ? 

इसमें नया क्या है

आपको मसाला चाहिए यकीन मालिये मिलेगा लेकिन एक वक्त आयेगा जब आप चीखते रहेंगे पत्रकार भी नहीं सुनेंगे क्योंकि आपकी चीख में कुछ नया नहीं होगा. हर रोज कोई ना कोई किसी ना किसी को खो रहा है इसमें नया क्या है ? अस्पताल में इलाज के अभाव में लोग मर रहे हैं, इसमें नया क्या है ? श्मशान घाट में दाह संस्कार के लिए जगह नहीं है, इसमें नया क्या है ? मोबाइल पर हर मिनट 10 सेकेंड का वीडियो देखते – देखते पत्रकारिता को भी आपने मनोरंजन का मंच बना दिया है.   

मंत्री जी ने क्या कहा यह भी सुनिये

स्वास्थ्य मंत्री से जब सवाल किया गया गया तो उन्होंने पत्रकार को ही गलत साबित कर दिया कहा, आप गलत कह रहे हैं यह घटना मेरे आने से पहले हुई है, संभव है कि हुई भी हो.. मंत्री जी आगे कहते हैं अगर परिजन लिखकर देगें तो विचार करेंगे कि लापरवाही हुई है. मंत्री जी उसी वक्त परिजनों से बात करते, डॉक्टरों से सवाल करते. कम से कम यह हिदायत देते कि आगे किसी के साथ ऐसा ना हो.. लेकिन 

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