जब सरकार आपके अहम मुद्दों पर ध्यान नहीं देगी, तो आप अपनी समस्या का बोझ लेकर अखबार, वेबसाइट और न्यूज चैनल के दफ्तर घूमेंगे. आप सड़क पर छाती पिटते रहेंगे लेकिन आपकी समस्या सुनने के लिए कोई पत्रकार नहीं होगा. आप मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने घऱ में आग लगा लेंगे लेकिन कोई आपकी तरफ नहीं देखेगा. यकीन मानिये यह होगा और हो रहा है . जानते हैं क्यों ?
क्योंकि अब पत्रकार होते ही नहीं है, अब होते हैं कंटेंट मैनेजर. यह मैनेजर खबरों के साथ खेलना जानते हैं. आपतक कैसे चासनी में लपेट कर खबरें पहुंचाना है, जानते हैं. इनकी दुनिया लैपटॉप की छोटी सी स्क्रीन है. इसी स्क्रीन पर ट्रेंडिंग समझते रहते हैं. जिस विषय पर इंटरनेट में सबसे ज्यादा बात हो रही है, जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो उसी पर खबर बनाते हैं. ये मैनेजर गर्व से कहते हैं कि हम पत्रकार नहीं है, मैनेजर हैं.
यह पत्रकारिता में सिर्फ इस पेशे के तरीके को बदलने आये हैं. लाखों की सैलरी, घर , गाड़ी सब मिलता है क्योंकि बदले में यह उन गधों को खबर पढ़ने के लिए मजबूर कर देते हैं ,जो clickbait ( उत्साहित करने वाली हेडलाइन ) पढ़कर उत्साहित हो जाते हैं.
आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा क्या है ? राम मंदिर, सुशांत सिंह राजपूत, बाढ़, कोरोना संक्रमण, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था या कुछ और जो आपको लगता है अहम है. मैं दो चीजें जानता हूं एक, तो कुछ लोग यहीं से लौट जायेंगे और कुछ लोग मन में जवाब लेकर आगे पढ़ेंगे. उनमें से कुछ लोग सुशांत की मौत का राज जानना चाहेंगे लेकिन देश के सबसे बड़े मुद्दे के रूप में इसे शामिल नहीं करेंगे. आप जानते हैं आपकी यही उत्सुकता दिन भर टीवी, वेबसाइट पर चलती रहती है. क्या इतना काफी नहीं है कि सुशांत मामले में अब जांच सीबीआई कर रही है. जो भी जांच के नतीजे होंगें आप तक पहुंचेगे. सुशांत से जुड़ी हर बात पर स्टोरी हो रही है, जानते हैं क्यों ? क्योंकि आप पढ़ रहे हैं. जबतक आप पढ़ते रहेंगे, स्टोरी होती रहेगी. चाहे देश में कितनी भी गंभीर समस्या हो..
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योकि आपलोग भी ऐसे ही हो गये हैं. आप खुद से सवाल कीजिए कि आप अपनी मोबाइल पर किस तरह की खबरें पढ़ते हैं. क्या आपने आज कोई ऐसी खबर पढ़ी है जिसका असर आप पर हुआ हो. चाय की टपरी पर मीडिया बदल रही है, मीडिया बिक गयी है, पत्रकार बाजारू हो गये हैं, मीडिया सरकार के खिलाफ नहीं बोलती, हमारा मुद्दा नहीं उठाती कहने वाले आप ही है ना. मीडिया बाजार देखती है. जो अखबार, न्यूज चैनल या वेबसाइट आपकी आवाज नहीं बनी,उसका क्या उखाड़ लिया आपने. क्या आपने उस वेबसाइट पर जाना छोड़ दिया, न्यूज चैनल देखना बंद कर दिया या अखबार पढ़ना छोड़ दिया.
सच तो यह है कि आप कुछ नहीं कर सकते यही वेबसाइट जब खबर करेगी, पढ़ें- कैसे पोर्न इंडस्ट्री में आयी सनी लियोनी, कैसे शूट हुआ था पहला वीडियो. सब भूल के एक सेकेंड लगाये बिना क्लिक करेंगे.सोचिये जरा जब आप खुद बाजारू हो गये हैं मीडिया कैसे बाजारू ना हो.
मैनेजर की खबरें पढ़ने वालों की कोई कमी नहीं है लेकिन सच ये भी है कि अभी भी कुछ लोग हैं जो असल खबरों की तलाश करते हैं यही कारण है कि कुछ पत्रकार भी बचे हैं. दबाव दोनों तरफ है अच्छी खबर पढ़ने वालों को ढंग की कोई वेबसाइट नहीं मिलती और अच्छी खबर लिखने वालों को पाठक नहीं मिलते. दोनों संकट में हैं. उम्मीद है दोनों जिंदा रहेंगे, दोनों की संख्या बढ़ेगी.
मैनेजर ऐसे पत्रकारों पर तंज कसते हुए कहते हैं, जरा अपने ब्लॉग की लिंक भेजो, देखें तुम्हारी लेखनी में कितनी धार है, साहेब हम आपसे सिर्फ इतना कह दें कि ट्रेंड पकड़ने में हमें वक्त नहीं लगेगा क्योंकि सड़कों की खाक छानकर पत्रकारिता समझने वाले 14 इंच की स्क्रीन को समझने में वक्त नहीं लगाते. हमारी धार नापने के चक्कर में अपना अंगुठा क्यों कटवाना चाहते हैं.
वक्त लगेगा लेकिन आज सिर्फ ट्रेंड के पीछे भागने वाले मैनेजर उस रसायनिक खाद की तरह है, जो फसल तो बढ़ाती है लेकिन जमीन की उर्वरक क्षमता मार देती है. हम आज आर्गेनिक की तरफ लौट रहे हैं वैसे ही पत्रकारिता लौटेगी. क्योंकि कोई भी संस्थान, मीडिया हाउस ट्रेंड फॉलो करके आगे नहीं बढ़ा दूसरों से अलग करके, बेहतर करके आगे बढ़ा है. अच्छी खबरों को प्रोत्साहित कीजिए , अपने सोशल मीडिया पर शेयर कीजिए क्योंकि मैनेजर की नजर पड़ेगी तभी खबर बनेगी. मेरे संस्थान की तरह कुछ संस्थानों में आज भी काम की आजादी है. मैंने कोरोना संक्रमण के बाद कई स्टोरी की है जो ट्रेंड के लिहाज से या यूं कहूं कि मैनेजर के हिसाब से सही नहीं होगी लेकिन अपने यहां अभी इसका असर ना के बराबर हैं मेरे वरिष्ठ यह समझते हैं कि पत्रकारिता क्या है, क्यों है ?
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