देश की राजनीति में प्रखर वक्ताओं की सूची बनायेंगे तो एक नाम नरेंद्र मोदी का रखना ही होगा. मुझे नहीं लगता कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टेलीप्राम्टर बंद हो जोने के बाद असहज हो जायेंगे. इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि पीएम मोदी टेलीप्राम्टर का इस्तेमाल करते हैं. मैं पत्रकार हूं, नयी दौर की पत्रकारिता करता हूं मसलन लिखता भी हूं और दिखता भी हूं.
It is unlikely that PM had a teleprompter gaffe. If you look at the WEF version of the recording of his speech, someone in the background says, “Sir aap unse ek baar pooche ki sab jud gaye kya”. This portion is not clear in the video live-streamed on PM’s YouTube channel.
1/n pic.twitter.com/wkBnLom083
— Pratik Sinha (@free_thinker) January 17, 2022
कई बार हमें वीडियो बनाते वक्त अहम जानकारियां एक पेपर पर लिखकर साथ रखना पड़ता है. इतना समझता हूं कि जरूरी आंकड़े, अहम जानकारियां हर बार याद नहीं रहते. हम उस नयी पौध से हैं जो छोटी गलतियों पर सोशल साइट में चटकारे लेना अच्छी तरह जानती है. भले ही इनमे से कुछ लोगों को मंच पर या भीड़ में खड़ा कर दें तो जबां कम पैर ज्यादा हिलेंगे.
राहुल गांधी के कई भाषण सोशल मीडिया पर वायरल है, पप्पु नाम कई चुनावी सभाओं में भी विरोधियों के जरिये इस्तेमाल किये जा चुके हैं. राजनीति में अवसर की तलाश होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व आर्थिक मंच (WEF) के दावोस अजेंडा शिखर सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान यह मौका अपने विपक्षी पार्टी के लोगों को दे दिया है.
एक अच्छे वक्ता की क्या पहचान है ? आपकी नजर में इसकी परिभाषा क्या है ? अटल बिहारी वाजपेयी अच्छे वक्ता थे लेकिन कई बार भाषण के वक्त लंबे समय तक चुप रहना( लंबा पॉज़ लेना )कई बार चर्चाओं में रहा. वाजपेयी हर 15 अगस्त को लाल किले से दिया जाने वाला भाषण पढ़कर देते थे. वाजपेयी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा से जब इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि ”वह लाल किले की प्राचीर से कोई चीज़ लापरवाही में नहीं कहना चाहते थे. उस मंच के लिए उनके मन में पवित्रता का भाव था. हम लोग अक्सर उनसे कहा करते थे कि आप उस तरह से बोलें जैसे आप हर जगह बोलते हैं, लेकिन वह हमारी बात नहीं मानते थे.
साफ है कि आपका संबोधन जगह- जगह पर निर्भर करता है कि आप बगैर आंकड़े के बगैर फैक्ट के रैलियों में भाषण दे सकते हैं, अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं. कुल मिलाकर बात ये कि राजनीति में इस तरह के अवसर की तलाश होती है. आप भी किसी खास पार्टी से जुड़े हैं, किसी खास नेता को पसंद करते हैं तो पक्ष और विपक्ष के इस खेल में शामिल रहिये चटकारे लेते रहिये.
Leave a Reply