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पत्रकार दानिश सिद्दिकी के निधन पर पीएम मोदी ने एक ट्वीट भी नहीं किया क्यों ?

लिखता हूं, तो लोग खेमे में बांट देते हैं, कई जात के कई धर्म के कभी पार्टी के तो कभी विचार के. यकीन मानिये मैं कभी खेमे में बंटकर नहीं सोचता एक साधारण इंसान हूं और इसी तरह सोचता हूं, आप मुझे खेमे में इसलिए बांट देते हैं क्योंकि आप खुद एक खेमे में हैं और दूसरों को भी खेमे में देखते हैं. 

जो लिखना चाहता हूं उससे पहले मैंने लिखने की बाद की प्रतक्रिया का जवाब दे दिया क्योंकि मैं आज दानिश सिद्दीकी को लेकर अपनी बात लिख रहा हूं. मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मैं दानिश को नहीं जानता था कई बार उनकी तस्वीरें आखों के सामने से गुजरी कई बार रूकीं भी लेकिन मैगी नूडल्स के जमाने में जहां हर चीज दो मिनट में तैयार चाहिए वक्त ही नहीं मिला की कभी तस्वीर लेने वाले को तलाशा जाये. 

दानिश के निधन के बाद उन्हें जाना, उनके सफर की कई कहानियों से होकर गुजरा. बहुत लंबा सफर तय नहीं किया था दानिश ने लेकिन मुकाम जरूर बड़ा हासिल कर लिया था. पुलित्जर पुरस्कार से नवाजे गये थे. खबरों की तलाश में भटकते हुए उनकी हत्या की गयी. 

एक पत्रकार जो असल में पत्रकार है खबरों की तलाश में मारा जाये तो बेहतर ही है. वह किसी आलीशान कमरे में बदनामी और गुमनामी की मौत तो नहीं मरा

मेरे कुछ सवाल हैं. क्या देश के प्रधानमंत्री इस पत्रकार के निधन पर एक ट्वीट नहीं कर सकते थे, हाल में ही एक बड़े पत्रकार की मौत हुई थी, अच्छे पत्रकार थे बड़े चैनल से थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री, राजनीतिक पार्टी क्या पक्ष क्या विपक्ष के नेता सभी ने ट्वीट किया था. अफगानिस्तान में हिस्सा का शिकार हुए पत्रकार के लिए इनके पास कुछ नहीं था. मुझे याद है शिखर धवन की ऊंगली में चोट आयी थी प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर चिंता जाहिर की थी. कई ऐसे ट्वीट है जिससे यह पता चलता है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री कितने संवेदनशील है, कितनी चिंता है फिर देश का एक पत्रकार जो इतने बड़े मिशन पर था, इतना बड़ा पुरस्कार हासिल कर चुका था उसके लिए एक शब्द नहीं, कोई संवेदना नहीं आखिर क्यों ? 

इस बार सिर्फ सवाल नहीं पूछ रहा हूं जानता हूं कोई जवाब नहीं आयेगा तो जवाब भी दे रहा हूं, क्योंकि वह किसी खेमे का नहीं था तस्वीरों के माध्यम से अपनी बात रखता था. उसकी तस्वीरे में हजार सवाल होते थे. 

दानिश से यही कहना चाहूंगा कि दोस्त तुमने जो हौसला दिया है वह अभी कुछ और साल अंदर के पत्रकार को जिंदा रखने में मदद करेगा. कुछ अलग करने, कुछ नया सोचने और भेड़चाल से अलग चलने की ताकत देगा. तुम्हारे इतनी तो कुब्बत नहीं है लेकिन सवाल करने की ताकत देगा. तुमने हम जैसे पत्रकारों के अंदर हौसला भरा है. शायद ऊपर वाले ने तुम्हें इसी काम के लिए भेजा था. 

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