How to write |
हर बार आप कुछ लिखने बैठे और आप जो लिखना चाह रहे हैं वो लिख ही दें जरूरी नहीं है। लिखते- लिखते कभी विषय बदल जाते हैं या जो सोचकर लिखने बैठे हैं लिखते – लिखते सोच बदल जाती है। कई बार लगता है, जो सोचकर लिखने बैठा वो एकदम सटीक शब्दों में पन्ने पर उतार पाया, तो कई बार लगता है जो सोचा था उसे लिख ही नहीं सका। कभी – कभी तो कई बार अपने लिखे को पढ़कर लगता है अरे वाह ये तो सोचा भी नहीं थो जो लिख दिया। लिखना है क्या कैसे लिखा जाए।
लिखना और लिखते रहना
लिखना आदत होनी चाहिए, क्या लिखना है कैसे लिखना और कितना लिखना सब अभ्यास का खेल है। कई बार जब आप लिखने बैठेंगे, तो शब्द दौड़कर आपकी ऊंगलियों के रास्ते से पन्ने पर उतर जायेंगे, तो कई बार शब्द जहन में, तो होंगे लेकिन पन्ने पर उतरने में समय लगायेंगे।
जितना लिखेंगे उतना ही शब्दों का परिवार आपका बड़ा होता जायेगा। कई लोगों को मानना है कि आप जितना पढ़ेंगे उतना ही बेहतर लिख पायेंगे। कई लोगों में मैं भी हूं लेकिन इसमें थोड़े बदलाव के साथ आप जितना पढ़ेंगे, जितना सुनेंगे, जितना देखेंगे उतना ही बेहतर लिख पायेंगे। वक्त बदला है, तो लिखने का माध्यम और तरीका भी बदला है इसलिए मेरा मानना है कि आपके आंख, कान और कभी- कभी नाक भी ठीक से खुले रखने चाहिए।
कैसे लेखनी होगी मजबूत
लिखते- लिखते कभी आपने सोचा है कि ये बेहतर लिखने वाले ऐसा क्या लिख देते हैं कि उनके लिखने पर इतना कुछ लिखा और पढ़ा जाता है। लिखने वाले अक्सर कई बेहतरीन लेखकों की किताबों का पता बताते हैं। बताते हैं कि फलां किताब पढ़िए। उनसे पूछिए कि क्या फलां किताब पढ़कर लिखना आ जायेगा?
भारी भरकम किताबें आपकी लेखनी में कितनी धार लायेंगी तो ये तो आप अपने अनुभव से तय कीजिए लेकिन मेरे हिसाब से लिखना, सिर्फ लिखने से आ सकता है। हां शब्दों के भंडारण के लिए कई माध्यम है उससे शब्द बटोरते रहिए मेरे नजरिए से आपके अनुभव आपको बेहतर शब्द दे सकते हैं।
लिखना और बेहतर लिखना।
बेहतर लिखने का पैमाना क्या है ? ऐसा तो नहीं है कि आप लिखते नहीं है। आप विद्यार्थी हों या व्यापारी या नौकरी पेशा लिखते तो होंगे। किराने की दुकान में काम करने वाला व्यक्ति भी सामान की लिस्ट तो लिखता ही है ना। कई बार हिंदी में दुकानदार को सामान का दाम जोड़ते देखा है, होते हैं ना उससे प्रभावित कई लोग आपको मिलेंगे जो कहेंगें फलां किताब पढ़ो एक बार में समझ नहीं आयेगी दोबारा पढ़ो। ऐसा होता भी है बचपन की कई कविता और कहानियां उम्र के एक पढ़ाव के बाद समझ में आती है। मतलब अनुभव और शब्दों का ज्ञान आपको रहस्य समझने में मदद करता है और मजा तभी है जब आप लिखने वाले की भावना लिखते वक्त क्या थी यह समझ सकें। अगर आप अपने पाठकों को यह समझाने में सफल होते हैं तो आप एक शानदार लेखक हैं।
लिखने को तो लिखने पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन लिखते – लिखते शब्दों की सीमा का ध्यान जरूर रखना चाहिए। अगर शब्द ज्यादा होंगे तो लोग पढ़ेंगे नहीं क्या लिखना सिर्फ इसलिए चाहिए कि कोई पढ़े ही, अगर नहीं पढ़े तो लिखने का अर्थ ही क्या ?
लिखते वक्त किस बात का रखें ध्यान
लिखते वक्त ध्यान किसका रखा जाए। पाठक का जो इसे पढ़ने वाला है या आपके मन में छिपे एक लेखक का जो अपने नजरिए से अनुभव से लिख रहा है जो पाठक की बिल्कुल नहीं सोच रहा कि वो पढ़कर समझेगा भी या नहीं। इस सवाल का सीधा और सरल जवाब है, आपके लिए पाठक एक नहीं है। किसी एक व्यक्ति के स्तर को समझा जा सकता है पूरे पाठक वर्ग के समूह का आंकलन थोड़ा मुश्किल है इसलिए खुलकर अपने मन की लिखिए और कोई पढ़ेगा या नहीं इसकी जरा भी चिंता मत कीजिए। लिखने की आदत बनी रहेगी तो पढ़ने वाले भी आज नहीं तो कल कहीं ना कहीं से आपके पन्ने तक पहुंचेंगे जरूर।
लिखना या दिखना क्या ज्यादा जरूरी है
कभी – कभी सोचता हूं क्या लिखना ही जरूरी है। आज के रील के दौर में 15 सेकेंड के एक वीडियो में मन की बात कहकर इससे निकल नहीं सकता कि मैंने तो कह दी लेकिन लिखने वालों के लिए जैसे पाठक महत्व हैं वैसे ही कहने वालों के लिए सुनना जरूरी है। कभी कहने और सुनने पर लिखूंगा तो इस पर विस्तार से बात होगी फिलहाल लिखने पर फोकस कीजिए।
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