News & Views

Life Journey And journalism

जमशेदपुर में दो शहर बसते हैं एक टाटा का दूसरा रघुवर का ?

पिछले दिनों हैदराबाद से आये एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि झारखंड में सबसे ज्यादा क्राइम किस शहर में है. मैंने कभी इस तरह शहरों का आकलन नहीं किया. शहरों को देखने का मेरा अपना नजरिया है लेकिन किसे पड़ी है मेरे नजरिये की मैंने अखबारी नजरिये से जवाब दिया धनबाद.

टाटा स्टील कंपनी का मुख्य द्वार

मेरे जवाब से थोड़े संतुष्ट हुए लेकिन पूछा जमशेदपुर क्यों नहीं ? मैंने पूछा जमशेदपुर कैसे? मैं क्राइम रेट, गैंगवार जैसे कई उदाहरण दे सकता था इससे उनका नजरिया समझ नहीं पाता इसलिए चुप रहा. उन्होंने मुझसे पूछा कभी जमशेदपुर गये हो, उन्हें क्या कहता हां गया हूं लेकिन शहर ठीक से देखा नही. रात को जाना हुआ और शहर घूमे बगैर वापस आ गया. मैं चुप रहा, उन्होंने कहा, कभी जाना हो, तो देखना दो शहर है वहां. एक जो टाटा के हिस्से का शहर है और दूसरा जो सरकारी है. तुम्हें यह पूछना नहीं पड़ेगा कौन सा सरकारी है और कौन सा टाटा के अंदर आता है.

इस बार जब गया, तो उनकी बात दिमाग में उधम मचा रही थी. मैं तकरीबन तीन बजे बस स्टेंड पर उतरा वहां से साक्षी के लिए ऑटो लिया. ड्राइवर से दोस्ती बढ़ाते हुए शहर को समझने की कोशिश की और उन्हें हैदराबाद वाले व्यक्ति का संदेशा भी दे दिया. हंसते हुए कहने लगा, ठिके तो कह रहे हैं. दोनों अलग है बिल्कुल अलग है. ड्राइवर ने ज्यादा कुछ नहीं बताया लेकिन मैं रास्ते में सड़क के किनारे देखता आ रहा था कहीं तो कोई फर्क दिखे, उन्होंने कहा था मुझे पूछना नहीं पड़ेगा. ऑटो जिस रास्ते से निकल रही थी, सड़क के किनारे नालियों पर छोटी- छोटी झोपड़ी बनी थी, नाले थे या नदी नहीं पता नहीं लेकिन मजे से नहाते लोग दिख रहे थे. सड़क के किनारे भरे कचरे मुझे बता रहे थे हम किसके हैं. जब साक्षी पहुंचा, तो सरकारी विज्ञापन वाली बड़ी एलईडी जगह- जगह पोस्टर. वादे पूरा करने का दावा. मैं सोच रहा था ये सरकारी है या टाटा के अंदर आता है. बहुत कन्फूयजन था..


 

शहर और कंपनी से निकलता धुआं

पिछली बार भी शहर से परिचय नहीं हुआ था. इस बार रात के तकरीबन 11 बजे वक्त निकाला. एक पुरानी मोटरसाइकिल भी हाथ लगी. दोस्त को फोन किया और निकला शहर घूमने. आधे से ज्यादा दुकानें बंद. कुछ पानवाड़ी की दुकानें खुली थी. भूख लगी थी थोड़ा ढुढ़ने पर एक आईस्क्रीम की दुकान खुली मिली, जूस की एक दुकान मिली. खाली सड़क और आवारा कुत्तों की बादशाहत थी कई इलाकों में. जिनके साथ घूम रहा था वह टाटा स्टील में ही काम करते हैं दूर से ही ऑफिस के गेट के दर्शन कराये और बताया कि यहां से 2 किमी अंदर है ऑफिस. बस से आना जाना पड़ता है. वहां से निकले तो कई चौक चौराहे दिखाये. कई होटल दिखाये. होटल आनंद, भी दिखाते हुए बताया, भाई धोसा अच्छा मिलता है यहां. कभी समय निकाल के आयेगा तो खिलायेंगे. एक चौक में खड़े होकर इशारा करते हुए बताया यही जूबली पार्क का रास्ता है. 9 बजे तक पार्क बंद हो जाता है. पार्क 9 बजे बंद हो जाता है. इस चौक पर आग लगा पान भी मिलता है 125 रुपये में एक. खाने की इच्छा थी लेकिन साहब दुकान बड़ा चुके थे.

 प्रोक्सएयर गैस कंपनी

घुमक्कड़ी में प्रोक्सएयर गैस कंपनी के पास भी गुजरा रास्ते में बड़े- बड़े ट्रक. स्ट्रीट लाइट की पीली – पीली रौशनी और कंपनी के गैस चैंबर से निकलता धुंआ. सोच रहा था भले ही सरकारी और टाटा वाले जमशेदपुर में फर्क है लेकिन विकास मिला भी तो किस कीमत पर. अभी भी जमशेदपुर को समझना , घूमना बाकि है. लिखते वक्त ध्यान आया कि शहर तो अपने मुख्यमंत्री का घर है वहीं से राजनीति जमीन बनायी है उन्होंने. अखाबर में हर पर्व- त्योहार में गैरजिम्मेदार कर्मचारी की तरह बगैर बताये घर चले जाते हैं. रांची की तरह पोस्टरबाजी भी खूब है. लेकिन इस एक शहर में दो शहरों की अलग- अलग पहचान जो बाहर से आये लोगों को भी आसानी से दिखते हैं. इन्हें नहीं दिखते. वैसे अपने सीएम का घर किस तरफ है सरकारी जमशेदपुर में या टाटा वाले जमशेदपुर में.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *