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मेरी मैक्लुस्कीगंज की यात्रा भाग- क

मैक्लुस्कीगंज  की यात्रा काफी कम समय की थी. ये कहना ठीक होगा
कि बस वहां की जमीन छु कर वापस आ गया. मैं हड़बड़ी में कहीं की यात्रा नहीं करता
लेकिन कभी – कभी हालात ऐसे बन जाते हैं कि आपके चाहने से कुछ नहीं होता.

मैक्लुस्कीगंज  की योजना बहुत दिनों से बना रहा था. कभी कोई
साथी नहीं मिलता को कभी वक्त नहीं मिलता. मेरे साथ अक्सर यही होता कहीं जाने की
योजना बहुत दिनों से बनाता रहता. 10 अप्रैल को किसी भी तरह अपनी महीनों से बन रही
इस योजना को पूरा करने का मन बना लिया. कई लोगों से पूछा हर बार की तरह किसी को
कोई न कोई काम लेकिन एक सहयोगी मिले, साथ चलने को राजी हो गये हालांकि उनका साथ भी
नियम और शर्तों के साथ मिला . मेरी इच्छा थी की भोरे -भोरे  मैक्लुस्कीगंज  के लिए निकला जाए लेकिन सुबह के 9 बजे हम यहां
से निकले. सुशील जी की नाइट शिफ्ट थी . मिलते ही मैंने पूछा कि रात में थोड़ी नींद
ली है कि नहीं
?  उन्होंने जवाब में
सिर हिलाते हुए कहा
, हां कुछ घंटो की नींद ली है. ( मेरी चिंता
उनके आराम को लेकर नहीं थी मेरी चिंता थी कि मैं सही सलामत  मैक्लुस्कीगंज  पहुंच जाऊं क्योंकि गाड़ी वही ड्राइव कर रहे थे
).

गाड़ी की दोनों खिड़की खुली थी और गाना खूब तेज साऊंड में बज
रहा था. सुशील जी अपनी ऑल्टो की स्पीड भी गाने की स्पीड के साथ मैच करना चाहते थे .
दोनों खामोश थे मैंने उनके पूछा कि कुछ नास्ता किया है आपने की सीधे निकल लिये
हैं.. जवाब मिला कि अरे हम तो ब्रश भी नहीं किये हैं. मैंने कहा रोकिये कुछ ले
लिया जाये.  हम रूके और चिप्स के कुछ पैकेट
और कोलड्रीक ले ली. मुझे लगा कि उन्हें आराम जरूरत है, तो मैंने यहां से कार
ड्राइव करना शुरू किया. रांची से जब आप  मैक्लुस्कीगंज  के लिए बिजुपाड़ा से  मुड़ते हैं,  तो रास्ते थोड़े संकरे हो जाते हैं. इन रास्तों
पर अभी भी सड़क का काम चल रहा है. खलारी से पहले हमें दूसरी तरफ मुड़ना था. हम
रास्ते में रूककर एक बार कर्न्फम करना चाहते थे कि हम सही रास्ते में हैं या नहीं. 

इन रास्तों को मैं कई बार गूगल पर देख चुका था, लेकिन मशीन कितनी भी सटीक हो हमारे
विश्वास को व्यक्ति का वो इशारा ही मजबूत करता है कि आप सही रास्ते पर हैं. हम
रास्ते पर रूककर किसी को ढुढ़ ही रहे थे कि एक लगभग 17 साल का युवा और 46 साल के
अधेड़ हमारी तरफ बढ़े और कहा कि आपको  मैक्लुस्कीगंज  जाना है. हमने हां में सिर हिलाया, तो उन्होंने
कहा कि आप सही रास्ते पर हैं. हमें भी वहीं जाना है. मैंने सुशील जी की तरफ देखा
उनके चेहरे से साफ लग रहा था कि वो उन्हें लिफ्ट नहीं देना चाहते . उनकी इस मंशा
को जानते हुए भी मैंने ड्राइविंग सीट से ही अपने पीछे वाली गाड़ी का दरवाजा खोला
और बैठने का इशारा किया. अब हम  मैक्लुस्कीगंज  के रास्ते पर थे….

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