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मैक्लुस्कीगंज की यात्रा- अंतिम भाग

मैक्लुस्कीगंज की सड़कों पर निर्माण का काम चल रहा है. रास्ते
खराब हैं कुछ सड़कों पर मिट्टी तो कहीं गिट्टी बिछा दी गयी है. गाडी में धीमें- धीमें गाना बज रहा है. उबड़खाबड़ रास्तों में गाड़ी की आवाज गाने की आवाज को दबा रही है. हम जिस सफर पर निकले थे अब हमारे साथ दो और लोग थे.  मैंने बातचीत शुरू की और उस युवा  लड़के से नाम पूछा. उसने अपना नाम राबर्ट तिर्की बताया. बातचीत आगे बढ़ी तो
मैंने एक के बाद एक सवाल किये, क्या कर रहे हो, आगे क्या करना है वैगरह
वैगरह…
इस पूरी बातचीत में मैं यह समझ पाया कि राबर्ट उन युवाओं से बिल्कुल अलग नही है जो  महंगी गाड़ी, अच्छे घर और खूब सारे पैसे कमाने का सपना
देखता है. राबर्ट का सपना भी यहीं था. उसने इस बात पर खूब जोर दिया कि उसे यहां
नहीं रहना. मैंने पूछा मैक्लुस्कीगंज में
? उसने कहा नहीं मुझे भारत में ही
नहीं रहना मैं विदेश जाना चाहता हूं.
बाहरी लोगों
को जिस जगह बसाया गया उसी जगह का लड़का आज विदेश में अपने सपनों को साकार करना
चाहता था.  
राबर्ट ने अभी 12वीं की परीक्षा दी है और रिजल्ट का इंतजार कर
रहा है. अचानक राबर्ट ने कहा भैया गाड़ी रोकिये … यहां
आपके देखने लायक एक जगह है. मैंने गाड़ी की खिड़की से अपनी दाहिनी तरफ नजर डाली तो
एक मंदिर और मस्जिद का गुंब्बद नजर आ रहा था.
मुख्य सड़क से हटकर थोड़ी दूर पर ही यह स्थान है गूगल में अगर
आप मैक्लुस्कीगंज लिखकर सर्च करेंगे तो
आपको वीकिपीड़िया में यहीं तस्वीर नजर आयेगी. हम गाड़ी से उतरे और आगे बढ़ने लगे
तीनों जगहों पर हमने सिर झुकाया. मंदिर और मस्जिद तो यहां लगभग ठीक से बन चुके हैं
लेकिन गुरुद्वारा का काम अधुरा है और चर्च का काम शुरू भी नहीं हो सका. दर्शन के
बाद मेरी जिज्ञासा बढ़ी तो मैंने वहां एक पंड़ित जी को देखा जो मंदिर और मस्जिद
दोनों जगहों पर लोगों से पूजा पाठ करा रहे थे. मैंने उन्हें इशारे से अपनी तरफ
बुलाया. वो नजदीक आये और बोले कहिये पूजा करना है क्या
? मैंने कहा
आपसे बात करनी है. उन्होंने जवाब दिया दो मिनट रूकिये.
मैं वहीं मंदिर की सीड़ियों पर बैठ गया. मेरी नजर मंदिर और
मस्जिद की हालत पर गयी दोनों खराब स्थिति में हैं कुछ जगह दरारें आ गयी. चारों तरफ
दिवारें खड़ी है जिसे देखकर लगता है हाल में ही इन पर काम किया गया है. एक जगह एक
यात्री शेड की तरह छत भी बनाया गया है. सामने पीपल का पेड़ है जिसमें एक चबुतरा भी
बना है.
थोड़ी देर में पंडित जी सब काम निपटा कर पहुंचे. मैंने उनसे
अपनी जिज्ञासा शांत करने हुए पूछा कि आखिर गुरुद्वारा और चर्च का काम अधुरा क्यों
रह गया. उन्होंने कहा कि जो बनवा रहे थे ना ऊ नहीं रहे और उनका बेटा -बेटी लोग ई
काम को आगे नहीं बढ़ा सके तो अधुरा रह गया. पंडित जी ने इसके पीछे गांव वालों की
मंशा और यहां की राजनीति को भी जिम्मेदार ठहरा दिया. पंडित जी ने कहा यहां के लोग
चाहते ही नहीं कि इस तरह का काम यहां पर हो इसलिए भी नहीं बन सका. यहां के लोगों
में एकजुटता नहीं है. किसी भी चीज को लेकर तुरंत मतभेद हो जाता है. 


मुझसे बातीचत
के दौरान उन्होंने अपनी कई चिंतायें सामने रखी. उनकी एक बड़ी चिंता यह थी कि जिस
सोच के साथ इन धार्मिक स्थलों को यहां बनाया गया क्यो वो उसे कामय रख पायेंगे.
पंडित जी ने कहा, अलग
अलग धर्मों के लोग जो यहां आते हैं कई
खुश होते हैं तो कई लोग सवाल करते हैं कि यहां मस्जिद इस जगह क्यों है मंदिर इस
जगह क्यों है. 

निर्माण ठीक नहीं हुआ है. हम मस्जिद या गुरुद्वारा जाने से पहले
यहां से होकर गुजरना पड़ता है. पंडिज जी ने कहा मेरी कोशिश है कि यहां उस भावना को
मैं जिंदा रख पाऊं . उन्होंने पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय का जिक्र करते हुए बताया
कि उनके सौजन्य से यहां कई काम हुए लेकिन अभी भी कई काम अधुरा रह गया. पंडित जी ने
उम्मीद जतायी कि कोई न कोई इसकी मदद के लिए आगे जरूर आयेगा.  

इस जगह के निर्माण को लेकर हमने दो अलग अलग कहानियां
सुनी . इसका कारण यह भी हो सकता है कि हमें बताने वाले दो लोग थे संभव है कि और
लोगों से हमने पूछा होता तो इसकी और भी कहानियां सुनने को मिलती .
पंडित जी ने जो बताया- इस स्थान के निर्माण के पीछे दिल्ली के
एक व्यपारी थे उन्हें लगा कि इस जगह पर एक ऐसी मिशाल कामय की जा सकती है जहां सभी
धर्मों के लोग एक साथ आयें. इसके लिए उन्होंने यहां मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा
बनाया. उनके निधन के बाद उनके बेटे ने ध्यान दिया पर गांव वालों के रवैये के कारण
पूरा नहीं हो सका.
राबर्ट और उसके चाचा ने जो कहानी बतायी…. जैसे ही हम मंदिर
से निकले राबर्ट ने कहा, जानते हैं भैया पंडित जी जो बताये वो गलत है दिल्ली का
कोई व्यापारी इस जगह को नहीं बनाया है. कोई एग्लोइंडियन थे वो बनवाये थे.उनको
फांसी हो गया उसके बाद डर से किसी ने इस जगह को बनवाने की हिम्मत नहीं कि . मैंने
पूछा फांसी क्यों हो गया. उन्होंने परेशान होकर अपने पूरे परिवार को खत्म कर दिया
था.

इन दो कहानियों के अलावा भी हमने कई चीजें सुनी मसलन जिसने भी
यहां काम कराने की कोशिश की उसके साथ बुरा हुआ. जिसने यहां चोरी करने की कोशिश की
उसका पूरा परिवार खत्म हो गया. इन सबके बावजूद मंदिर से ओम चोरी हो गयी. पुजारी जी
ने कहा, चोरी का आरोप उन पर भी लग चुका है. कोर्ट में उन्होंने कहा कि क्या कोई
पिता अपने बेटे का गला काट सकता है ऐसा कोई कर सकता है तो हां मैंने भी चोरी की
है. इस जगह से जुड़ी कई ऐसी कहानियां है जो आपको सुनने के लिए मिलेगी.
हम जब आगे बढ़े तो कुछ दूर ही राबर्ट का घर आ गया उसने कहा,
भैया घर आ गया है चलिये ना पानी पी लीजिएगा. मैंने कहा फिर कभी अभी आगे जाना है और
आज वापस भी जाना है.
हम आगे बढ़े रलवे स्टेशन के नजदीक एक दुकान से हमने पानी की
बोतल और खाने का कुछ सामान खरीदा वहीं हमने दुकानदार से पूछा कि यहां देखने के लिए
कौन

कौन सी जगहें है उसने कहा कुछ खास नहीं है हां दो जगह चले जाइये एक ज्योति बिहार
और दूसरा डेगा डेगी. इन दो जगहों पर लोग घुमने जाते हैं . 

वहां से निकलकर हम
ज्योति बिहार पहुंचे. सामने बड़ा सा दरवाजा था पर बंद था खोलने के लिए कोई नहीं था
तो मैंने सुशील जी से दरवाजा खोलने को कहा हम गाड़ी  लेकर अंदर गये. गाड़ी खड़ी करके हम घुमने निकले
वहां भी कोई नहीं दिख रहा था . हम घुमते रहे फिर कुछ कमरे हमें नजर आये तो हमने
देखा कुछ महिलाएं खाना बना रही हैं. मैंने पूछा कि कुछ खाने को मिलेगा पहले तो
हमें वो हैरान होकर देखने लगीं. मैंने सवाल फिर दोहराया कुछ खाने के लिए मिलेगा
क्या
?. उसने कहा आपलोग कौन हैं अंदर कैसे आ गये. हम भी हैरान थे भई
ऐसे सवाल का क्या मतलब है टूरिस्ट प्लेस है कोई भी आ सकता है . मैंने कहा, घुमने
आये हैं . तब उस महिला ने कहा कि यह गर्ल्स होस्टल है यहां कोई होटल नहीं है जो
आपके आर्डर पर खाना मिले.हम भी हैरान थे खैर. नल से पानी पीकर हम आगे बढ़े.
अब हमारी मंजिल थी डेगा डेगी. इस जगह पहुंचने में थोड़ी
परेशानी हुई लेकिन हम जब पहुंचे तो एक आधी सुखी नदी और पुल था. कुछ देर वहां
सुस्ताने के बाद हम वापसी के लिए तैयार होने लगे. हालांकि मेरे मन में यह इच्छा
था कि कुछ लोगों से आसपास बात की जाए. कुछ एग्लोइंडियन से मुलाकात की जाए. कई
दूसरी जगहों पर घुमा जाए लेकिन सुशील जी को रात में ऑफिर आना था उनकी नींद भी पूरी
नहीं हुई थी. वापसी में हमने एक जगह गाड़ी रोकी और दाल
चावल और पटल
की सब्जी का मजा लिया. खाना बेहद शानदार और सस्ता था. हमारे बगल में ही कुछ लोग
हड़िया( गांव के शीतल ) पेय का आनंद ले रहे थे. उन लोगों ने हमें भी न्यौता दिया लेकिन हमने बड़े प्रेम से इनकार कर दिया. 

 किसी भी यात्रा में आज जाएं तो  थोड़ी सर बाकि रह जाती है और सच कहूं, तो यह अच्छा
है. ऐसा होना इसलिए जरूरी है कि दोबारा आपके आने की लालसा बनी रही . मेरे सहयात्री
सुशील जी शिकायत कर रहे थे कि मैंने उनके बारे में पहली कड़ी में कुछ नहीं लिखा 
अगर उनके साथ बातचीत  और उनकी कार में यात्रा के अनुभव को साझा करता तो कई बातें खुल जाती जैसे गाड़ी चलाते वक्त मैंने महसूस किया कि उनकी गाड़ी में कॉक्रोच हैं और कई बातें जो ना खुलें तो बेहतर है…. खैर इन मजाकिया बातों के अलावा मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरी इस यात्रा को सफल बनाया. मैंने पहले भी लिखा है कि मैं कब से इस यात्रा की योजना बना रहा था लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. अगर मैं इस बार अपनी योजना में सफल रहा तो इसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है.

यात्रा की पहली कड़ी

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