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सोनपुर मेला : आस्था और अश्लीलता का संगम

एशिया के सबसे
बड़े पशु मेले में पशु नहीं. मेले में पौराणिक कथाओं के अनुसार हाथियों का विशेष
महत्व
है लेकिन यह
हैरान करने वाली बात है कि पिछले साल ( 2017 में)  सिर्फ एक हाथी मेला पहुंचा. अब आइये बेहद अहम
मनोरंजन पर, सोनपुर मेला मनोरंजन के लिए अलग पहचान रखता है लेकिन अब बदल गया है,
ना पहले जैसे गाने वाले, ना बजाने वाले और ना सुनने वाले. अब देखने वाले और दिखाने
वाले बचे हैं. 

स्टेज पर  रंगीन रौशनी में  80- 90 युवतियां अश्लील गाने बिल्कुल बार गर्ल
की तरह डांस करती है. अब बचा बाजार, तो इसे ऐसे समझिये, सोनपुर मशहूर था क्योंकि
यहां सुई से लेकर हाथी तक मिलता था यह गांव का बाजार था. खेती खलिहानी से जुड़ी हर
एक चीज मिलती थी. अब गांव के बाजार पर भी शहरी बाजारवाद हावी है. मेले में छोटी सी
दुकान लगाने के लिए पैसे लगते हैं( पैसे लिखना ठीक नहीं है लाखों रूपये लगते है)
तो बाजार खत्म
अब  सोनपुर मेले में बचा क्या ?. मैंने और मित्र उदय शंकर झा ने यही तलाशने
की कोशिश की. मुझे तो यह मेला अब आस्था और अश्लीलता को अनोखा संगम लगने लगा है.
यहां दो तरह के लोग आ रहे हैं .एक-  जो
पौराणिक कथाओं, कार्तिक स्नान और ईश्वर में आस्था रखते हैं दूसरे- जो थियेटर और
नाच के लिए सालों इंतजार करते हैं. सोनपुर पहले क्या था पता नहीं लेकिन जो हो रहा
है उस पर चिंता जरूर करनी चाहिए…

मेले को लेकर
लोगों का नजरिया
कहां सोनपुर
घूमने आये हैं…..
? अरे आपलोग का
तो वक्त है
,
जाइये भइया. हमरा तो
अब शादी हो गया है. बहुत से लोग जाते हैं वहां लेकिन हम “वैसी “
जगह नहीं जाते. किसी को पता चल जायेगा तो क्या सोचेगा. पटना के व्यस्त चौराहे पर
चाय की दुकान लगाने वाला व्यक्ति हमें सोनपुर पर अपनी सोच बता रहा था. यह सोच
सिर्फ उस वयक्ति की नहीं थी. वह उस चाय की दुकान पर आने
जाने वाले हजारों लोगों की थी जो  सोनपुर मेले पर चर्चा करते हैं. आप इस चाय के
दुकान की छोड़िये, आप तो इंटरनेट पर भरोसा करते हैं, जरा, यूट्यूब पर सोनपुर मेला
सर्च करके देखिये, यूट्यूब किस- किस तरह के वीडियो के जरिये  आपको इस मेले से परिचय कराता है. हम जब इस मेले
में पहुंचे, तो थियटेर की चमकीली लाइटें लग रही थी लेकिन इन लाइटों को भी कई जगहों
से आये युवा घंटो निहारते नजर आये. उनके चेहरे पर चमक और निराशा दोनों थी. मेला
शुरू है और अभी से युवाओं की फौज जमा होने लगी है. कोई सिवान से
, कोई मुजफ्फरपुर से बिहार के जगह- जगह से
युवा इस मेले का रुख करते हैं. 

कारण है इस मेले में लगने वाला थियेटर. यहां बिहार
सरकार भी कार्यक्रम का आयोजन करती है और यहां भी  कजरी
, ठुमरी, दादरा, भोजपुरी, अवधी या शास्त्रीय संगीत से लोगों का ध्यान
खींचने की कोशिश नहीं है. यहां भी मेरा पिया घर आया ओ रामजी ही चलता है
लेकिन सरकारी अंदाज में. इसमें और  थियेटर
में फर्क है यहां फिल्मी गाने है, तो थियेटर में अश्लील भोजपुरी, यहां नृत्य करने
वाली कलाकार है तो थियेटर वाली मॉर्डन, फर्क है. अब आप समझ लीजिए बिहार का विश्व
प्रसिद्ध सोनपुर मेला किस तरफ जा रहा है.  
थोड़ा इतिहास
समझिये सोनपुर  मेले का

सोनपुर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन का महत्व है लेकिन इस स्नान के साथ शुरू हुए
मेले का महत्व कम हो रहा है.  इस मेले की
शुरुआत मौर्य काल के समय में हुआ . माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य सेना के लिए
हाथी खरीदने के लिए यहां आते थे. स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर का योगदान है इन
इलाकों के बुजुर्गों की मानें तो 1857 की लड़ाई के लिए  वीर कुंवर सिंह जनता ने यहां से घोड़ों की
खरीदारी की थी. इस मेले में हाथी
, घोड़े, ऊंट, कुत्ते, बिल्लियां और विभिन्न प्रकार के पक्षियों सहित कई दूसरी
प्रजातियों के पशु-पक्षियों का बाजार सजता था. 

देश से ही नहीं अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे. इस
मेले से पौराणिक कथाएं जुड़ी है भगवान विष्णु के भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ
(ग्राह) के बीच कोनहारा घाट पर संग्राम हुआ. जब हाथी कमजोर पड़ने लगा तो अपने
ईश्वर का याद किया भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों
के बीच युद्ध का अंत किया था.  इसी स्थान
पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैंकड़ों भक्त
श्रद्धा से पहुंचते है. सच पूछिये तो इस मेले में बहुत सारे लोग कार्तिक स्नान
करने और भगवान के दर्शन के लिए भी आते हैं. यही आस्था है जिसने अबतक कई लोगों को
मेले से जोड़े रखा है. मैंने कई लोगों से बात की ज्यादातर लोग इस मेले में अपनी आस्था
की वजह से खीचें चले आते हैं. यही एक बात है जिस पर सोनपुर और हम गर्व कर सकते
हैं.





मनोरंजन या अश्लीलता

सोनपुर मेले में कई थियेटर हैं . शाम होते ही मेले का रंग बदलने लगता है, तेज
अश्लील भोजपुरी गाने का शोर मेले की पहचान पूरी तरह बदल देता है. अब नाटक या
नौटंकी नहीं होती,
इसकी जगह देह
प्रदर्शन कर पैसे कमाने का धंधा चलने लगा. हर साल यहां पांच से छह थियेटर कंपनियां
आती हैं. प्रत्येक कंपनियों में
50 से 60 युवतियों का
दल दर्शकों का मनोरंजन करता है. टिकट के लिए लंबी कतार लगती है. स्टेज के सबसे
नजदीक होकर नांच देखना है तो 1000 रुपये से लेकर 2000 तक और जितनी दूर से देखेंगे
उसके उतने पैसे. 

मेले में सबसे ज्यादा खर्च थियेटर वाले ही करते हैं. एक थियेटर
लगाने में 15 से 20 लाख का खर्च. लड़कियों के रोज की कमाई 400 से लेकर 1200 रुपये
तक. आप यह मत सोचिये की सभी मजबूरी में आती हैं. कई लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं इस
एक महीने में वह इस मेले से अच्छा पैसा कमा लेती हैं. स्टेज पर जो पैसे दर्शकों से
मिले वह अलग सोनपुर भले ही बाकि मामलों में पिछड़ रहा है इस घटिया मनोरंजन के नाम
पर खूब मुनाफा कमा रहा है. 
पशु मेले से गायब
पशु

बिहार पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव बी़ प्रधान मानते
हैं कि सोनपुर मेले में पशुओं की संख्या कम होना चिंता का विषय है. हालांकि वह जो
कारण बताते हैं उस पर गौर करिये साहेब कहते हैं, पशुओं के प्रति लोगों की दिलचस्पी
कम होती जा रही है. साहेब इस मेले में लोग मनोरंजन के लिए नहीं जानवर देखने ही आते
हैं. मेले में हाथियों और दूसरे जानवरों की घटती संख्या दिलचस्पी की वजह से तो कम
नहीं हो रही. 



यहां जानवर देखने तो विदेशों से लोग चले आते हैं फिर अपने शहर और देश
के लोग क्यों नहीं आये. कारण समझिये पिछले साल केवल
एक हाथी एक दिन के लिए आया था. कारण था बिना चिप वाले
(अनिबंधित) हाथी आने पर जब्त कर लिए जाएंगे.  
2007 में यह संख्या गिरकर 70 पर आ गई.  दूसरे राज्यों से आने वाले हाथियों पर रोक लग गई.
 2012 में हाथियों की संख्या 40 पर आ गई.  2013 में 39 हाथी आए.  2014 में कानूनी शिकंजा इस कदर
कसा कि महज
14 हाथी सोनपुर मेले में पहुंचे.


2015 और 16 में भी 14-14 हाथी आए. 2017 में तो महज एक हाथी एक
दिन के लिए लाया गया. कारण समझ रहे हैं. सोनपुर मेले में कई पशु-पक्षियों की
खरीद-बिक्री पर रोक है. यह इसलिए कि कानून खरीद-बिक्री की इजाजत नहीं देता. वन्य
प्राणी जीव संरक्षण अधिनियम के कारण हाथी की खरीद-बिक्री नहीं हो सकती. दूसरा कारण
कई जानवरों की बिक्री पर लगी रोक और डर है. आज कोई जानवर बेचे तो किसे बेचे, कोई
खरीदे तो कैसे. जानवर ले जाने का खतरा कौन मोल ले ना जाने कब कहां से डंडे बरसने
लगे लोग गांव में पशु बेचने से डरने लगे हैं यहां तो मेला लगा है… 

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