यात्रा शुरू |
रोड ट्रीप की योजना एक दिन की नहीं होती, आप कई सालों से इसके लिए योजना बना रहे होते हैं. हमारे साथ थोड़ा अलग था, हमने कभी लद्दाख से कम दूरी की रोड ट्रीप पर विचार नहीं किया. नेपाल कुछ महीने पहले ही हमारी लिस्ट में जुड़ा था. हम तो लद्दाख से नीचे सोचते ही नहीं थे. चाय की दुकान पर बैठे- बैठे उदय शंकर झा के साथ अचानक यह योजना बनायी. छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया और अब दिन और तारीख तय हो गयी. 3.11.2017 यही तारीख थी जिस दिन हमारी यात्रा शुरू हो रही थी. कोई तैयारी नहीं, ना कपड़े धुले थे, ना तबीयत अच्छी थी. चार दिनों से खांसी और सरदी ने पहले ही पूरी योजना को ठंडे बस्ते में डालने का इशारा कर दिया था. हम उसके इशारे को नजरअंदाज करके गंदे कपड़े और खराब तबीयत के साथ यात्रा के लिए तैयार थे.
70 की स्पीड में जब आगे वाले ट्रक ने अचानक मारी ब्रेक
रांची से सुबह सात बजे जब बाइक स्टार्ट हुई,तो महसूस हुआ कि इस दिन का इंतजार सालों से था. आज रोड ट्रीप का सपना पूरा हो रहा था. इस सफर के लिए भी कितना लंबा सफर तय करना पड़ा था. किसी सपने के पूरा होने का अहसास कई सालों के बाद महसूस हो रहा था. शुरूआत धीमी थी, रांची पीछे छूटा, रामगढ़, हजारीबाग, बरही होते हुए गया पहुंचे. गया से बुलेट की स्पीड थोड़ी बढ़ी क्योंकि अब दिन चढ़ने लगा था. अभी थोड़ी दूर ही निकला था. मेरे आगे एक ट्रक 70 की स्पीड में था लेकिन ये स्पीड मेरी रफ्तार कम कर रही थी. मैंने उसे ओवरटेक करने के लिए स्पीड बढ़ायी. जैसे ही स्पीड बढ़ी ट्रक ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया. मैं ट्रक के ठीक पीछे था .
पहली दुर्घटना
ब्रेक लगाया लेकिन बाइक की स्पीड कम हुई ,रूकी नहीं, बाइक सीधे ट्रक से जाकर भिड़ गयी. बाइक की हेडलाइट, शॉकर , स्पीडो मीटर सब टूट गये. हम ट्रक वाले को आवाज देते रहे लेकिन उसने फिर रफ्तार पकड़ ली. इससे पहले की हम अपने नकुसान का आकलन करते ट्रक दूर निकलने लगा था . मैंने बाइक स्टार्ट की, गुस्से में ट्रक को दोबारा ओवरटेक किया. आगे जाकर बीच रास्ते पर गाड़ी रोकककर खड़ा हो गया. ट्रक को मजबूरन रूकना पड़ा. मैं गुस्से में ड्राइवर के पास गया, तो देखा एक 70- 75 साल के बुजुर्ग बड़े प्यार से पूछ रहे हैं का होलवा बहुआ ( क्या हो गया बाबू) उनकी उम्र और हल्की आवाज ने मेरा गुस्सा कम कर दिया था.
लड़ते तो किससे
मैंने बाइक की तरफ इशारा करते हुए कहा, देखिये क्या किया है आपने. उन्होंने कहा का करती हल हमरो सामने अचानक टैंपू आ गेल तो रोके के परल ( क्या करता मेरे सामने भी अचानक ऑटो आ गया रोकना पड़ा) . आपने हमारी आावाज तक नहीं सुनी हम चिल्लाते रहे. मैंने गौर किया कि भीड़ जमा हो गयी है, कई लोग उन्हें डांटने लगे हैं. कुछ लोग बोल रहे हैं पैसा भरिये पूरा. मैंने भी कहा, इतना नुकसान हो गया इसकी भरपाई कौन करेगा चलिये पैसा निकालिये या कहीं बनाइये पूरा. अब मैं आपको ये नहीं बताऊंगा कि उन्होंने आगे क्या कहा, बस आप अंदाजा लगा लीजिए की उनके आगे की लाइन क्या होगी?. आपको बस इतना इशारा कर सकता हूं कि इस तरह की घटना में 90 फीसद ट्रक, ऑटो ड्राइवर वही लाइन दोहराते हैं. मैंने उनसे आगे बढ़ने का इशारा किया और हिदायत दी कि आगे ध्यान से चलाइये मैं जाने दे रहा हूं सभी जाने नहीं देंगे.
सब टूटा था बाइक भी और हम भी
रोड ट्रीप के कुछ घंटों के बाद ही ऐसी घटना हुई थी. गाड़ी की हेडलाइट और स्पीडो मीटर टूटा था, हमारी हिम्मत नहीं. हां इस दुर्घटना ने राइडिंग का मजा थोड़ा कम जरूर कर दिया था. पटना पहुंचे, तो पहले बाइक बनवायी. बाइक की हेडलाइट बनी तो लगा जैसे हमारा जोश भी ठोक पीटकर ऊपर वाले ने ठीक कर दिया. दोबारा वही उत्साह हालांकि अब स्पीड कम हो गयी थी. पटना , वैशाली फिर सीतामढ़ी. झारखंड से होते हुए जब आप बिहार में प्रवेश करेंगे. आपको वहां की हवा बता देगी बेटा, बिहार में हो. बीच डिवाइडर पर सूखते गोइठे, बैलगाड़ी से लादकर धान लाते किसान के माथे पर बंधा मुरेठा . साइकिल पर भोजपुरी गाने बजाकर चलता स्कूली बच्चा, जिसका मोबाइल चीख- चीख के अपना परिचय दे रहा होता है. हूं, तो मैं चाइना का लेकिन ये लहरिया काटकर साइकिल चला रहा लड़का 18 घंटे बजाकर बता देता है, बेटा बिहारी के हाथ में हो खराब कैसे हो जाओगे बे.
बरही से डोभी तक का खराब रास्ता बताता है कि बिहार आने की राह आसान नहीं है. .डोभी की रबड़ी बिहारी स्वाद से परिचय करा देती है, जो कई सालों से भूल था. पटना से होते हुए हाजीपुर – वैशाली का पूरा रास्ता बिहार के गौरवपूर्ण इतिहास और परंपरा का गर्व महसूस कराता है. इन रास्तों पर आखें सड़क के किनारे लगे पर्यटन विभाग के कई प्रचार बोर्ड पर जाता है, जो मजबूर करता है कि आप वैशाली घूम लीजिए. मंजिल तय थी सीतामढ़ी. वैशाली घूम चुका हूं इसलिए हैंडिल उस तरफ नहीं मुड़े.
बोर्डर क्रॉस करने का रोमांच
सीतामढ़ी से निकलकर अब नेपाल में प्रवेश करना था. पहले दिन लगभग 700 किमी मोटरसाइकिल चलाने के बाद भी सुबह उठा, तो थकान कम बोर्डर प्रवेश करने का रोमांच ज्यादा था. सीतामढ़ी के बाद गौर बोर्डर होते हुए नेपाल में प्रवेश हुआ तो पहला भ्रम टूटा . किसी देश के बोर्डर को लेकर आपके दिमाग में क्या छवि होगी ? जाहिर है, लंबी काटें की तारें, कड़ी सुरक्षा, चेकपोस्ट, खतरनाक चेकिंग जहां कपड़े तक उतरवा लिये जाते हैं, एक – एक सामान की जांच. इस छवि के साथ कब बोर्डर पार कर गया पता नहीं चला. आगे बढ़कर चाय की दुकान पर रूका, पूछा बोर्डर कितनी दूर है.
गले में लाल रंग का गमछा लपेटे चायवाला ने कहा, अरे पिछेही ना छोर आये बोर्डर. गारी का पेपर बनवाये कि नहीं… ये सुनकर चाय गले से नीचे कहां उतरती . बाइक पीछे मोड़कर गाड़ी की स्पीड बढायी, तो देखा सड़क पर कुछ टीन के बड़े डब्बे के साथ हमारी खांकी से अलग वर्दी पहने कुछ पुलिस वाले खड़े थे. मैं सिर्फ अपनी बनायी छवि के कारण ही बोर्डर पार कर गया था.
गाड़ी के पेपर दिखाकर हमने अंदर प्रवेश की अनुमति ली. इसके लिए हमें 300 रुपये देने पड़े. मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि नेपाल में हूं. महसूस हुआ जैसे बिहार के किसी दूरदराज इलाके से गुजर रहा हूं . चाय की कसर बाकी थी, सोचा नेपाल के चाय का स्वाद अलग होगा, ज्यादा चीनी होगी या ज्यादा चाय की पत्ती या ग्रीन टी, कुछ तो अलग मिलेगा लेकिन यहां तो स्वाद भी वहीं और चर्चा भी अपने चाय की दुकान वाली . दुकान पर चाय को राजनीतिक तौर पर और मजबूत बनाने वाले हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चर्चा थी.
मोदिया खाली साफे सफाई में लगल रहतिई कि कुछ कामो करतई . मैं ऐसे वक्त में नेपाल में था.जब नेपाल में चुनाव होने वाले हैं लेकिन चाय की दुकान पर चर्चा भारतीय राजनीति की थी. नेपाल में राजनीति पर चर्चा हो वो भी बिहार की भाषा में, तो हम खुद को कैसे रोकते हम भी उस मंडली में शामिल हो गये थे…
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