खेल के पीछे के खिलाड़ी |
देश में पहली बार वीमेंस एशियन हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी 2023 के आयोजन का गवाह झारखंड बना। कार्यक्रम बेहद सफल रहा। महिला हॉकी टीम ने यह दिखा दिया कि अगर उन पर विश्वास किया जाए तो टीम क्या कर सकती है।
सवाल है कि टीम पर विश्वास किसने जताया ? टीम पर विश्वास जताया ओड़िशा ने साल 2033 तक ओडिशा सरकार भारत की पुरुष और महिला टीम की प्रायोजक है। ओड़िशा में हॉकी के खिलाड़ियों के लिए जो माहौल और सुविधाएं मिली क्या वह झारखंड में है। इसका जवाब आप कमेंट बॉक्स में दीजिएगा मुझे इंतजार रहेगा।
झारखंड और हॉकी
झारखंड में 1988 के बाद से, लगभग 55 लड़कियों ने भी विभिन्न आयु समूहों में राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में खेलकर राष्ट्रीय सर्किट में जगह बनाई है। कम से कम 20 लड़कियां देश के लिए खेलते हुए विदेश की यात्रा कर चुकी हैं।मुझे लगता है लापरवाही के कारण हॉकी में झारखंड का दबदबा कम हुआ है, वहीं पड़ोसी राज्य ओडिशा जहां खिलाड़ियों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाता है और अच्छा समर्थन किया जाता है, वह मजबूत होकर उभर रहा है।
हॉकी का पूरा इतिहास
हॉकी पर झारखंड में इन खिलाड़ियों की स्थिति पर और चर्चा करेंगे पहले हॉकी का इतिहास समझ लीजिए 1,000 ईसा पूर्व इथियोपिया में इस खेल के प्रमाण मिले। माना यह भी जाता है कि अफ्रीकन देशों में “गेना” के रूप में एक गेम खेला जाता था, जो फील्ड हॉकी से मिलता है। यह क्रिसमस के अवसर पर खेला जाता था। जबकि, खेल का एक प्राचीन रूप लगभग 2,000 ईसा पूर्व ईरान में भी इसी प्रकार का खेल खेला जाता रहा है। मंगोलिया में ‘बीकोउ’ नामक एक खेल जाता था जो हॉकी के ही समान था। इसके बाद ग्रीस में भी इस खेल के निशान मिले। 5वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व में ही आयरलैंड में ‘हर्लिंग’ नामक खेल खेला जाता था, यह पूरी तरह हॉकी तो नहीं पर उसी के जैसा था था 1200 ईसा पूर्व स्कॉटलैंड में “गेलिक या शिंटी खेल ” से प्रचलित हुआ।
यूरोप, यूनान, अफ्रीका, और एशियाई देशों में इसे अलग-अलग नामों से खेला यह खेला जाता रहा। 13वीं शताब्दी के आसपास फ्रांस में ला सोल नाम से। कोलंबस द्वारा नई दुनिया (अमेरिका) की खोज करने के बाद 15वीं और 16वीं एजटेक सभ्यता में इस खेल का जिक्र मिलता है। दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक, हॉकी की शुरुआत संभवत: 1527 में स्कॉटलैंड से मानी जाती है। तब इसे अंग्रेजी में होकी (Hokie) के नाम से जाना जाता था।
आधुनिक युग में हॉकी
आधुनिक युग में हॉकी की शुरुआत 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों द्वारा हुई थी। तब ये स्कूल में एक लोकप्रिय खेल हुआ करता था और फिर ब्रिटिश साम्राज्य में 1850 में इसे भारतीय आर्मी में भी शामिल किया गया। जिन-जिन देशों में अंग्रेजी शासन रहा, वहां-वहां हॉकी के खेल का विस्तार हुआ।
हॉकी के नाम के पीछे की कहानी
अब आती है नामकरण की बारी “हॉकी” नाम फ्रांसीसी शब्द के हॉक्वेट से लिया गया है, जिसका अर्थ है “चरवाहे का डंडा”। फिर भी यह एक धारणा ही है। इससे लेकर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलाता है। हालांकि, जैसे हॉकी की उत्पत्ति अस्पष्ट बनी हुई है। वैसे ही नामकरण की भी अंधेरे में हैं।
शुरू-शुरू में महिलाओं के हॉकी खेलने पर प्रतिबंध था, लेकिन इस प्रतिबंध के बाद भी महिलाओं में हॉकी खेल के प्रति रुचि थी। 1927 में महिलाओं की हॉकी टीम के लिए एक संस्था का गठन किया गया, जिसका नाम ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ विमेंस हॉकी एसोसिएशन’ (IFWHA) रखा गया। इस संस्था से धीरे-धीरे महिला टीम का निर्माण होने लगा। इससे महिलाओं में हॉकी के प्रति रूचि बढ़ती गई। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप का आयोजन किया गया। 1980 में महिला हॉकी को ओलंपिक में शामिल किया गया।
भारत कैसे आया हॉकी
भारत में हॉकी ब्रिटिश सेना के रेजिमेंट में सबसे पहले शामिल किया गया था। भारत में सबसे पहले ये खेल छावनियों और सैनिकों द्वारा खेला गया। भारत में झांसी, जबलपुर, जांलधर, लखनऊ, लाहौर आदि क्षेत्रों में मुख्य रूप से हॉकी खेला जाता था। लोकप्रियता बढ़ने के चलते भारत में पहला हॉकी क्लब और 1855 में कोलकाता में गठन किया गया था।
इसके बाद मुंबई और पंजाब में भी हॉकी क्लब का गठन किया गया। 1928 से 1956 का दौर भारत के लिए स्वर्णिम काल रहा है। 1925 में भारतीय हॉकी संघ (Indian Hockey Federation, IHF) की स्थापना हुई थी। IHF ने पहला अंतरराष्ट्रीय टूर 1926 में किया था, जब टीम न्यूजीलैंड दौरे पर गई थी। भारतीय हॉकी टीम ने 21 मैच खेले और उनमें से 18 में जीत हासिल की। इसी टूर्नामेंट में ध्यानचंद जैसी दिग्गज शख्सियत को दुनिया ने पहली बार देखा था, जो आगे चलकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने।
भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में पहली बार 1928 में कदम रखा। भारत को 1928 के ओलंपिक खेलों में ग्रुप ए में रखा गया था जिसमें बेल्जियम, डेनमार्क, स्वीटजरलैंड और ऑस्ट्रिया की टीम थी। भारत ने यहां स्वर्ण पदक जीता। यहीं से भारतीय हॉकी टीम के सुनहरे अतीत की शुरुआत हुई थी और फिर भारत ने अब तक रिकॉर्ड 8 ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं।
झारखंड में हॉकी और इसके दिग्गज खिलाड़ी
झारखंड में जयपाल सिंह मुंडा, माइकल किंडो, सिल्वानुस डुंगडुंग, मनोहर टोपनो, सुमराय टेटे, असुंता लकड़ा जैसे दिग्गज खिलाड़ी शामिल हैं. आज इन्हीं को आदर्श मानकर कई जूनियर हाॅकी खिलाड़ी जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं. इनका सपना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाया।
जयपाल सिंह मुंडा
झारखंड के पहले हॉकी ओलिंपियन रहे हैं. उनकी कप्तानी में भारत ने 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में पहला स्वर्ण पदक हासिल किया. इस ओलिंपिक में जयपाल सिंह मुंडा के नेतृत्व में भारतीय टीम ने 17 मैचों में 16 में जीत दर्ज की.
माइकल किंडो
1972 म्यूनिख ओलिंपिक में झारखंड के माइकल किंडो ने हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया था. इस वर्ष टीम ने कांस्य पदक जीता था.
सिल्वानुस डुंगडुंग
1980 मास्को ओलिंपिक में भारत ने आाखिरी गोल्ड मेडल जीता था. इस टीम में झारखंड के ध्यानचंद अवार्ड प्राप्त करनेवाले सिल्वानुस डुंगडुंग शामिल थे. उन्होंने फाइनल में आखिरी गोलकर स्पेन पर चार-तीन से जीत दिलायी थी.
मनोहर टोपनो
झारखंड के चौथे हॉकी ओलिंपियन हैं मनोहर टोपनो. इन्होंने 1984 में लॉस एंजिलिस ओलिंपिक में टीम का प्रतिनिधित्व किया था.
सुमराय टेटे
सुमराय टेटे भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्य रह चुकी हैं. उन्हें 2002 में ध्यानचंद अवार्ड से सम्मान मिल चुका है.
असुंता लकड़ा
वर्ष 2000 से 2014 तक असुंता लकड़ा भारतीय हॉकी टीम की सदस्य रही हैं. टीम की कप्तानी रहीं. भारत के लिए खेलते हुए कई मेडल और ट्रॉफी टीम को दिलायी हैं. वह चयनकर्ता, कोच, खेल प्रशासक सभी क्षेत्र में हॉकी के लिए काम कर चुकी हैं.
हॉकी के खेल और राजनीति
अब आप हॉकी का इतिहास झारखंड में इसकी मौजूदा स्थिति समझ गये अब जरूरी सवाल खेल का खेल भी कमाल है। झारखंड की राजनीति में खेल नया नहीं है। पहले वाले मुखिया भी यही पूछते थे बताओ आज तक ऐसा हुआ है झारखंड में ये वाले भी बार- बार कह रहे हैं। पहली बार… पहली बार.. इतिहास में पहली बार भैया जिस राज्य को हॉकी का नर्सरी कहा जाता है वहां आप खेल के लिए कुछ कर रहे हैं तो आपको चुपचाप करना चाहिए। क्या कर लिया ऐसा सड़क पर मंत्रियों के पोस्टर खेल के नाम पर भरे पड़े हैं। सुना ये भी है कि सिर्फ राजधानी नहीं राज्य के कई हिस्सों में मंत्रियों के पोस्टर चढ़ा दिए गये हैं। खेल मंत्री और मुख्यमंत्री का पोस्टर समझ में भी आता है कि चलो भैया एक मुखिया जी और दूसरे विभाग के मुखिया जी बाकि नेताओं को काहे को प्रमोट कर रहे हो भाई।
राजनीतिक
इस खेल से उनका क्या लेना देना है। खेल में राजनीतिक का खेल अच्छा नहीं है साहेब। अच्छा साहेब बुरा ना मानों तो एक बार पूछ लूं अपने राज्य में हॉकी के दिग्गज खिलाड़ियों की क्या कमी है.. सच बताओ क्या है कमी। क्या उन खिलाड़ियों की पहचान को मजबूत करने के लिए उनकी तस्वीर पोस्टर में नहीं लगाई जा सकती थी। अच्छा चलो आपको नहीं लगानी थी उनकी तस्वीर तो जब ऐसे वक्त में जहां राज्य में ना सिर्फ देशभर से बल्कि विदेशों से लोग पहुंचे हैं अपने राज्य की पहचान को मजबूत करती जगहों की, लोगों की तस्वीर लग सकती थी या नहीं। खैर अब कहा भी क्या जाए.. आपके नाराज होने का भी डर रहता है हम जैसे लोगों को भी तुम होते कौन हो ज्ञान देने वाले तो साहेब पइसा हमारा भी तो लगा ही होगा ना सरकारी पैसा सरकार का थोड़ी ना होता है, हमारा आम जनता का होता है तो हमरा पइसा आप कहां खर्च कर रहे हैं ये देखने का अगर गलत जगह खर्च कर रहे हैं तो रोकने टोकने का अधिकार तो है ना हमको
झारखंड और ओड़िशा
अच्छा एक बात बताइये हमारी भारतीय टीम की जर्सी पर ओड़िशा के नाम का लेवल देखा है आपने। आप ईमानदारी से बताइये कि भारतीय महिला हॉकी टीम में या हॉकी में ओड़िशा की भूमिका को समझते तो होंगे आप। जाने दीजिए हम समझाने जायेंगे तो ज्यादा टेक्निकल हो जायेगा बस आप इतना समझिए कि भूखे को पूरा खाना खिलाने वाले ने चुपचाप अपना काम किया और आप एक चम्मच अचार देकर ढिढोरा पीट रहे हैं।
खैर आपसे उम्मीद भी क्या की जाए अदिवासी महोत्सव के लिए भी आप खुद की पीठ थपथपाते हैं आयोजन अच्छी भी था लेकिन मैं सड़कों पर आदिवासी महानायकों की तस्वीर ढुढ़ता रहा लेकिन नहीं मिले। पोस्टर आपके, आपके नेताओं से भरे पड़े थे। खैर मैं समझता हूं कि राजनीति में पूरा खेल ही प्रचार और पोस्टरबाजी का है। अगर पोस्टरबाजी से ही चुनाव जीते और हारे जाते होंगे तो आप सही रास्ते पर हैं क्योंकि हमने पहले भी यही पोस्टरबाजी देखी है जो आप कर रहे हैं। बस उम्मीद है खेल जिस भावना से देखा जा रहा है खेला जा रहा है उसका मान, सम्मान और प्रतिष्ठा बची रहे उसमें राजनीति कोई खेल ना करे। बाकि जनता कितनी समझदार है आप जानते ही हैं । इतनी शिकायत के बाद भी दिल से झारखंड को हॉकी के इतिहास में अहम स्थान देने के लिए इस सरकार का धन्यवाद तो किया ही जा सकता है। बस हॉकी के उन महानायकों की तस्वीर रांची और राज्य के दूसरे शहरों पर नजर आती जिन्होंने इस खेल को अपना जीवन दिया तो शायद उन्हें सम्मान देने में यह सरकार सबसे आगे होती।
LeoVegas UK
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