देश के मुद्दे क्या हैं? AI कितना सुरक्षित है यह मुद्दा है ? या फिर चीन और पाकिस्तान से हमारे रिश्ते कैसे हों यह मुद्दा है ? इस तरह के तमाम चर्चाओं गायब है, हमारा गांव। जो देश गांवों का देश कहा जाता हो, उसकी चर्चा से ही गांव गायब हैं। देश में एक तिहाई जनसंख्या गांव में रहती है। देश की अर्थव्यवस्था में गांवों का बड़ा योगदान है लेकिन इस योगदान की चर्चा कहां और कब होती है। मेरा गांव झारखंड के सिमडेगा जिले में है। मेरे गांव में मुश्किल से 120 घर होंगे। गांव के ज्यादातर युवा रोजगार की तलाश में बाहर रहते हैं। गांव में युवा नजर ही नहीं आते। इस बार जब गांव पहुंचा तो मेरे बचपन के मित्र नागेश राणा से बात की। इस बातचीत में समझने की कोशिश की आखिर समस्या कहां है। गांव में कई सरकारी योजनाएं हैं फिर गांव के लोग क्यों बाहर जा रहे हैं।
10 में से 6 गांव ऐसे जहां से गायब हो रहे हैं युवा
यह कहानी सिर्फ मेरे गांव की नहीं है, कहानी देश के हर एक गांव की है। आंकड़े बताते हैं कि झारखंड से हर साल 7 से 9 लाख लोग पलायन करते हैं. इनमें से 68% युवा पुरुष होते हैं, जिनकी उम्र 18–35 वर्ष होती है. CMIE के अनुसार मई 2024 तक राज्य की बेरोजगारी दर 14.7% थी, जबकि देश का औसत 8% के करीब. पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 3.5 लाख से अधिक है। प्रवासी मजदूरों की संख्या कम नहीं हो रही है बढ़ रही है। तमाम सरकारी योजनाओं के बाद भी यह संख्या क्यों बढ़ रही है यह बड़ा सवाल है। एक आंकड़ा तो हैरान करता है जो बताता है कि 10 गांवों में से 6 ऐसे हैं जहां घर के पुरुष बाहर काम करते हैं।
सरकारी योजनाएं तलाश रही हैइंटरनेट कनेक्टिविटी
नागेश लगभग 35 साल के हैं, पिछले सात से आठ सालों में कई बार बाहर गये। पैसे कमाये, गांव लौटे और पैसे खर्च हुए तो फिर बाहर चले गये। नागेश बताते हैं कि मुझे गांव में ही रहने वाले लोगों ने काम के लिए बाहर साथ चलने के लिए कहा। गांव में रोजगार नहीं है, पैसे नहीं है। पढ़ाई लिखाई भी ऐसी नहीं है कि हम कुछ बन पाते तो बाहर चले गये। नागेश से लगभग 40 मिनट से अधिक लंबी बातचीत हुई। इस बातचीत में जो समझ पाया वो यह है कि रोजगार और नियमित पैसा मिले तो कोई अपना गांव छोड़ना नहीं चाहता। इस वक्त श्रम विभाग 2023 की एक रिपोर्ट का जिक्र जरूरी है जो बताता है कि मुख्यमंत्री श्रमिक योजना , केवल 4.2% पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों ने योजना का लाभ उठाया। ज्यादातर लोगों को इस योजना के विषय में पता नहीं, जिन्हें पता भी चला वो इंटरनेट ना होने, सरकारी अधिकारियों के सहयोग ना करने जैसे वजह बताते हैं।
कितना कमा के लौटते हैं गांव वाले
गांव के लोग जो केरल, गोवा, अंडमान सहित दूसरे जगहों का काम की तलाश में रुख करते हैं वो भी इन जगहों में बहुत खुश नहीं है। काम के नाम पर शोषण आम है। मैंने नागेश से बातचीत में यह महसूस किया कि कई जगह उन्हें कम वेतन मिला। काम के घंटे तय नहीं थे। नागेश को इन सब चीजों से फर्क नहीं पड़ता उसे बस घर लौटते वक्त उसके हाथ में इतना पैसा चाहिए जिससे गांव में आकर वो कुछ काम कर सके। गांव में नागेश के चार भाई बहन है, नागेश बताता है कि उसके पिता इकलौते थे। उन्हें कभी बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी अब खेत हम चार भाईयों में बट गया तो संकट आ गया। उसके तीन भाई बाहर काम करते हैं जबकि एक घर में रहकर ही सब देखभाल करता है। नागेश जल्द से जल्द गांव से फिर कमाने के लिए निकलता चाहता है। नागेश एक साल में लगभग एक लाख रूपये तक कमा पाते हैं। पैसे लेकर घर लौटते हैं तो गांव में कुछ काम करा पाते हैं, जैसे घर बनवा लिया, भाई की शादी करा ली। खेती में इस बार खर्च किया।
कितना है खतरा
नागेश अपने काम का अनुभव भी साझा करते हैं। तीन दिन कैसे समुद्र में रहना पड़ता है। समुद्र के इतने अंदर जाकर मछली पकड़ने का काम करते हैं कि उन्हें वापस लौटने में 6 से 7 घंटे लगते हैं। वहां रहने में क्या समस्या होती है। बाथरूम कहां होता है। क्या खाना बनता है। काम होता कैसे है। यह सारी कहानी आप नागेश से सीधे सुन सकते हैं बस आपको वीडियो में क्लिक करना है।
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