कहानियां हमेशा से रोमांचित करती रही है और कहानियों की तलाश में भटकता जीवन ही शायद असल जीवन है। यह कहानी मेरी कोलकाता यात्रा की है। भारत में अगर दुर्गा पूजा देखना हो तो कोलकाता सबसे बेहतरीन माना जाता है। कोलकाता में दुर्गा पूजा का इतिहास है। यहां यह एक सिर्फ त्योहार नहीं है, यह एक जीवंत सांस्कृतिक अनुभव है। इसे अनुभव तभी किया जा सकता है जब आप दुर्गा पूजा में कोलकाता में हों। संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन – UNESCO ने 2021 में दुर्गा पूजा को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में शामिल किया था। सवाल है कि इस दुर्गा पूजा मेरा अनुभव कैसा रहा।
भारत की सांस्कृतिक समृद्धि यहां से समझिए
कोलकाता के लिए पैकिंग करते वक्त कपड़ों के साथ पैक हो रही थी वो सारी उम्मीदें जो मुझे इस यात्रा से थी। अगर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को त्योहार के नजरिये से देखना हो तो उत्तर भारत में 1. वृंदावन और बरसाना – लठमार होली (उत्तर प्रदेश), 2. वाराणसी – देव दीपावली (उत्तर प्रदेश), 3. हरिद्वार – कुंभ मेला (उत्तराखंड), पूर्वी भारत में 4. कोलकाता – दुर्गा पूजा (पश्चिम बंगाल), 5. पुरी – रथ यात्रा (ओडिशा) पश्चिम भारत 6. अहमदाबाद – उत्तरायण (गुजरात) 7. मुंबई – गणेश चतुर्थी (महाराष्ट्र) दक्षिण भारत 8. मदुरै और चेन्नई – पोंगल (तमिलनाडु) 9. केरल – ओणम पूर्वोत्तर भारत में 10. नागालैंड – हॉर्नबिल फेस्टिवल
यात्रा से पहले शहर से रिश्ता बनाना है जरूरी
10 बेहतरीन त्योहार के मौके पर घूमने वाले जगहों में यह पहली जगह जहां मैं पहुंचा था। मेरी समस्या है कि कहीं जाने से पहले मैं खूब रिसर्च नहीं करता, दूसरों की तरह पूरी सूची तैयार नहीं करता जो सच में एक समस्या है। आप जहां जा रहे हैं अगर उस शहर को पहले जानेंगे नहीं, थोड़ा परिचय पहले नहीं करेंगे तो यात्रा में परेशानी होगी, खैर।
मां काली के दर्शन की कहानी
मैं जब कोलकाता गया तो सबसे पहले पहुंचा दक्षिणेश्वर काली। यात्रा की शुरूआत अगर मां के आशीर्वाद के साथ हो तो इससे बेहतर और क्या हो। मैं रेलवे स्टेशन से बस लेकर कालीघाट पहुंचा। रात भर की यात्रा थी तो सोचा सीधे पहुंचकर घाट में स्नान करूंगा फिर मां के दर्शन के बाद आगे की यात्रा होगी।
मैं आपसे पहले कह रहा था ना कि यात्रा से पहले शहर से परिचय जरूरी है, यह बात मुझे अपने पहले पड़ाव में ही समझ आ गई। घाट में पानी इतना गंदा जैसे कोई नाला बह रहा हो, घाट के किनारे कीचड़ इतना कि उतरो तो टखने तक पैर धंस जाए। मुझे ये तो समझ में आ गया कि यहां नहाना मुश्किल है।
अब सवाल था कि मां के दर्शन की तैयारी अब कहां से की जाए। आसपास कुछ होटल और धर्मशाला तलाशे। एक धर्मशाला में एक व्यक्ति मिले उन्होंने कहा कि अगर मां के दर्शन करने हो तो मैं आपके नहाने का इंतजाम करा सकता हूं, मैंने कहा इससे बड़ी और क्या मदद चाहिए होगी मुझे करा दीजिए। उन्होंने तुरंत एक और मदद की पेशकश कर दी। आज अष्टमी है और मां के दर्शन के लिए इतनी लंबी कतार है कि आप चाहें भी तो आज शाम से पहले मां के दर्शन नहीं कर सकेंगे। 12 बजे मंदिर का पट बंद हो जायेगा इसके बाद आपको लंबा इंतजार करना होगा। मैंने सवाल किया, दर्शन कैसे होगा ? उसने आगे बढ़ने का इशारा करते हुए कहा, पहले फटाफट स्नान करिए, ये कहकर वो मुझे आगे चलने लगा। में पीछे- पीछे चलते हुए ( लगभग, दौड़ते हुए) उससे पूछा कहां स्नान करेंगे, उसने कहा 20 रुपए लगेगे, मैंने फट से पूछा और दर्शन। वो ठहर गया थोड़ा नजदीक आया और कहा, पांच सौ रुपए लगेंगे दर्शन हो जायेगा। मैंने कहा, नहीं- नहीं नियम से दर्शन करेंगे। उसने कहा फिर आज तो नहीं कर पायेंगे। क्या करना है जल्दी बताइये। मैंने हां में सर हिलाया और वो फट से आगे बढ़ने लगा। मैं उसके पीछे- पीछे। थोड़ी दूर पर ही सुलभ शौचालय का बोर्ड दिखा। वो मुझे बाहर ठहरने का इशारा करके अंदर चला गया। वहां मौजूद व्यक्ति से उसने कुछ बातचीत की। मैं बाहर खड़ा उसी की तरफ देख रहा था उसने इशारे से बुलाया। मैं भागकर पहुंचा तो उसने कहा, खाली है जाइये नहा लीजिए और सामान मुझे दे दीजिए। मैं इसे लेकर यही खड़ा रहूंगा।
इस मोड़ पर मेरी तरह आपके पास दो विकल्प है। आप उस अनजान व्यक्ति पर आंख बंद करके भरोसा कर लीजिए या फिर खुली आंखों से देखिये कि ये वही व्यक्ति है जो दर्शन के लिए पांच सौ रूपए मांग रहा है। अगर सामान लेकर निकल गया तो उसकी तलाश करना भी मुश्किल है। मैं स्नान करने वाली जगह देखकर आने की बात कहकर वहां जाकर देखा तो एक कुंडी दिखी मैंने अपना बैग वहीं टांग लिया। वापस आकर उससे कहा कि उसमें कपड़े हैं, नहाकर बदलने भी हैं इसलिए आपको नहीं दे सकता. मैं नहाकर आता हूं।
नहाकर मैंने फटाफट कपड़े बदले। बाहर निकला तो वह खड़ा हो गया और कहा कि जल्दी कीजिए। अब मुझे वो फूल और प्रसाद की एक दुकान पर ले गया। उसने कहा कि आप सारे पैसे अपने पास रख लीजिए यहां से चोरी होने का डर है। मैंने उसकी बात मानी और पैसे और फोन अपने साथ रख लिए, प्रसाद और पूजा का सामान लेकर मैं उसके पीछे चला। वो मुझे कोई पीछे वाली गेट पर ले गया। थोड़ी देर मैं खड़ा रहा वो गेट वाले से बात करने का प्रयास करता रहा लेकिन बात नहीं बनी। थोड़ी देर बाद वो मुझे किसी दूसरे गेट पर ले गया। वहां पुलिस वाले ने रोक दिया। उसने मुझसे पांच सौ रुपये मांगे। मुझे लगा यही तो तय हुआ है, मैंने दे दिए। पैसे उसने अपनी हथेली पर ऐसे मोड़ दिए जैसे कागज का कोई टुकड़ा हो फिर उसने पांच सौ रुपए पुलिस के साथ मौजूद एक व्यक्ति को हाथ में पकड़ा दिए और फिर थोड़ी देर बाद हमें इशारे से प्रवेश करने का संकेत मिला।
जिस रास्ते से श्रद्धालु बाहर निकल रहे थे उसी रास्ते से हम मां के दर्शन के लिए जा रहे थे। मैंने गौर किया कि मैं इस रास्ते पर अकेला नहीं हूं मेरी तरह कई लोग हैं। किसी तरह दर्शन हुए। फिर वहां से वो व्यक्ति मुझे बली स्थल पर ले गया। वहां एक पंडित जी मिले। हाथ में एक लाल कपड़े में लिपटा हुआ सिक्का जो प्लास्टिक के अंदर बंद था वो दिया और कहा, गरीब बच्चों के भोजन के लिए 5100 रुपए दीजिए। मैंने कहा कि पैसे नहीं है, मैंने उस व्यक्ति की तरफ देखा जिसके भरोसा मैं चल रहा था। उसने कहा, सर दे दीजिए गरीब बच्चों के लिए है। आपका पैसा बेकार नहीं जायेगा, मैंने कहा कि गरीब बच्चों को सीधे जाकर देने में क्या दिक्कत है, मुझे देना होगा मैं दे दूंगा। यहां नहीं दूंगा। मेरे हाथ से उसने वो सिक्का छिन लिया। आप संकल्प ले लिए हैं औऱ दान से इनकार कर रहे हैं, यह हमारी जेब में जाता है क्या। हम बली स्थल पर खड़े हैं। आपलोग सहयोग नहीं करेंगे तो कौन करेगा उनका। मैंने कहा, इतने पैसे कैश है नहीं, तभी पंडित ने कहा कि अगर आप बली स्थल पर खड़े होकर झुठ बोल रहे हैं तो आपका…. इससे पहले कि वो अपने शब्द पूरा करता मैंने कहा कि 5100 तो नहीं कम करिये कुछ फिर वो 3100 में आया और अंत में 2100 में सहमति बन गई। पैसे देकर उसने कुछ मंत्र पढ़े, मुझे नाम गोत्र पूछा। मैंने वहां प्रणाम किया और आगे बढ़ा कुछ दूर चला ही था कि एक ट्रांसजेंडर सामने आये उसने कहा हमारे लिए भी कुछ करिये तो सौ की एक पत्ती वहां गई।
इन सब के बावजूद खुशी इस बात की थी कि मां के दर्शन हो गये। बाहर निकले तो उसने कहा मेरे पैसे। मैंने उससे कहा कि आपने तो पांच सौ की बात की थी वो तो मैंने दे दी। उसने कहा कि वो तो उसके थे। हमारे लिए तो अलग है। तो चुपचाप जेब में हाथ डाले पांच सौ निकाले और उसे दे दिए। मंदिर पहुंच कर उसने नारियल और सारे प्रसाद प्लास्टिक में बढ़िया से पैक कर दिया और जब जाने लगा तो बोला, त्योहार का समय है बच्चों के लिए कपड़े तक नहीं खरीद सका हूं। कुछ कर सकते हैं तो देखिए ना सर, मैंने कहा कि भाई पहले ही बहुत पैसे खर्च हो गये। कम से कम एक धोती के लिए तो कुछ दीजिए मैंने फिर सौ की पत्ती निकाली तो कहा कि थोड़ा बढ़ा देते तो बच्चो के लिए भी हो जाता। इस वक्त ऐसा लगा जैसे मैं अब इस संसार की मोह माया ही त्याग दूं, सारे पैसे फोन और अपने कपड़े देकर मैं सीधा हिमालय निकल जाऊं कि भाई इस चालाक दुनिया में मुझसे अब और नहीं चला जायेगा।
खौर, तीन सौ रूपये और दिए। कोलकाता में यह सब मेरे साथ दोपहर के बाहर बजे से पहले हो गया। मैं कोलकाता पहुंचा था मां के दर्शन के लिए मैंने बाहर से मां को एक बार फिर प्रणाम किया औऱ आगे की यात्रा पर चला …..
यह सीरीज मेरी दुर्गा पूजा के कोलकाता यात्रा पर है। यह पहली कड़ी है… दूसरी कड़ी जल्द
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