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एक चरवाहे की अधूरी कहानी….

पहली बार मेरी अंधेरी कल्पना की दुनिया में एक लौ जलाने की कोशिश कर रहा हूं, वैसे तो कुछ कहानियां और शायरी के कुछ पन्ने पुरानी डायरी में बंद हैं. उन्हें लिखते वक्त ना इतनी समझ थी. ना ही कम शब्दों में दिल चीर कर सामने रख देने का माद्दा, आज भी नहीं है लेकिन कई लोगों को पढ़कर डर जाता हूं .क्या मैं लिख सकता हूं?पहली कोशिश है, तो देखियेगा भी उसी नजर से जैसे पहली क्लास के किसी बच्चे की कॉपी पढ़ रहे हों.

जरूरत क्या पड़ी-  एक दिन मित्र राहुल गुरू के साथ टहलते- टहलते अचानक योजना बनी नेतरहाट चलते हैं. प्लान बना और चला गया. खूबसूरत वादियां, शानदार मौसम , शांत रास्ते, अंधेरी चुपचाप सी रात में हवा का शोर. इन सबके अलावा  सबसे ज्यादा ध्यान खींचा एक  अधूरी कहानी ने . जब से लौटा हूं इसे पूरा करने की सोच रहा हूं..

कहानी है मोहन की. घर का इकलौता बेटा.  मां बाप ने प्यार से नाम   रखा, तो आसपास के लोगों ने नाम रख दिया बुतरू ( नागपुरी में बच्चे को बुतरू कहते है). नेतरहाट गये होंगे, तो आपने इसकी कहानी जरूर सुनी होगी .बस वहां इसके नाम की जगह एक चरवाहा लिखा है. मैगनोलिया याद होगी आपको लेकिन बुतरु की पहचान गुम हो गयी कहीं…. मैगनोलिया को जब बुतरू का साथ नहीं मिला तो  खाई में कूद गयी.

मैगनोलिया  कहानी जहां खत्म हुई आज दिन भी वहीं खत्म होता है डूबते सूरज का नजारा यहीं से  देखते है हमलोग.  मैगनोलिया का प्यार अमर हो गया लेकिन बुतरु की आवाज और उसका दर्द इन पहाड़ियो में गुम है. आसपास के लोगों ने रात में घोड़े की टाप की आवाज सुनी लेकिन वो बांसूरी हमेशा अनसुनी कर दी जो मैगनोलियो को बुतरु तक खींच  कर ले जाती थी. आज अपनी अंधेरी कल्पना की दुनिया से किसी कोने में छुपे बुतरू को आप सबके सामने लेकर आऊंगा कोशिश करूंगा कि आप जितना मैगनोलिया को पहचानते हैं उतना बुतरु को भी पहचाने उसके पुकारू नाम से  ना सही लेकिन मोहन के नाम से जानें. पढ़िये अधूरी कहानी की पहली कड़ी  मंगलवार 23 जनवरी को…..

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