इतनी ताकत थी जिसने केंद्र में दशकों पुरानी सरकार को उखाड़ कर फेंक दिया. जनता ने
इस तरह के कई नारों पर भरोसा जताया बहुत हुआ भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार. यह
सिर्फ नारे नहीं थे ये वो सपने थे जो जनता को दिखाये गये. अन्ना हजारे की अगस्त
क्रांति जिसने पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में एक नयी ताकत खड़ी कर दी थी
भाजपा ने उसका खूब अच्छे से इस्तेमाल किया.
नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल में पूरे होने पर आरोप लगे कि
भाजपा सरकार बड़े व्यपारियों का साथ देती
है. मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम को सफल करने के लिए सरकार ने निवेशकों को रिझाने
में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी लेकिन मोदी सराकर इससे खुश थी कि अबतक उन पर
भ्रष्टाचार के आरोप नहीं थे. भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में विपक्ष ने भले ही
सरकार को घेरने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस इसे जनता के सामने मजबूती से नहीं रख
पा रही थी. रेडियो से प्रधानमंत्री मन की बात से जनता के बीच अभी भी अपना जादू
कायम रखने में सफल थे. हालांकि मानव संसाधन मंत्रालय जैसे अहम विभाग स्मृति को
देने पर खूब सवाल खड़े किये गये. स्मृति ईरानी की डिग्री को लेकर उठा विवाद अब
कोर्ट तक पहुंचा है. कोर्ट ने माना कि यह मामला सुनवायी के योग्य है. यह हल्का ही
सही पर केंद्र सरकार को पहला झटका था. केंद्र पर लग रहे आरोपों की शुरूआत स्मृति ईरानी
की डिग्री को लेकर शुरू हुई इसके बाद केंद्र और राज्य की दूसरी महिला नेताओं पर
आरोप लगने शुरू हुए जिसमें सुषमा, वसुंधरा, पकंजा मुंडे समेत कई नेता इस फेयरिस्त
में शामिल हुई. अपने कई लंबे संबोधनों में प्रधानमंत्री ने सरकार पर लग रहे आरोपों
पर चुप्पी साधे रखी. जिसे लेकर कांग्रेस ने खूब निशाना साधा और मोनेद्र जैसे नामों
से भी संबोधित किया. हर छोटी बात पर तुरंत टि्वटर पर प्रतिक्रिया देने वाले हाइटेक
मोदी ने इन आरोपों पर एक ट्वीट तक किया तो सवाल खड़े होने लाजमी थे.
कई गंभीर आरोप लगे. यह अचानक नरेंद्र मोदी
की सरकार के लिए उस काले धब्बे की
तरह हो गये जिसे सरकार ने हटाने के लिए
जितना पानी डाला काला धब्बा और बड़ा होता चला गया. नरेंद्र मोदी सरकार की साख इसलिए भी सवालों के
घेरे में आयी क्योंकि इस बार गिरिराज सिंह जैसे केंद्र के छुटभैये नेता पर आरोप
नहीं लगा था. ललित मोदी की मदद का आरोप लगा सरकार के अहम पद पर बैठी विदेश मंत्री
सुषमा स्वराज पर. सुषमा ने भले ही ट्वीट करके मामले पर सफाई दी कि उन्होंने मानवता
के आधार पर ललित मोदी की मदद की थी लेकिन यह मामला और तब संगीन हो गया जब सुषमा की
बेटी और पति भी आरोपों के घेरे में आये. पार्टी के प्रवक्ताओं ने इस मामले पर
सुषमा के समर्थन की पूरी कोशिश की लेकिन कई सवाल अभी है जो अनसुलझे रह गये. टि्वटर
के अलावा सुषमा ने भी पूरे मामले पर दोबारा चुप्पी नहीं तोड़ी. केंद्र सरकार पर
पहली बार बट्टा लगाने वाले ललित मोदी ही हैं.
की मुख्य्मंत्री वसुंधरा राजे की भी मुख्यमंत्री की कुरसी हिला कर रख दी. कांग्रेस
समेत तमाम विपक्षी दल सुषमा और वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग करने लगे. वसुंधरा
पर भी ललित मोदी को विदेश में घर दिलाने और वहां स्थायी रूप से रहने में मदद करने
का आरोप लगा. इसके अलावा वसुंधरा और ललित मोदी के कारोबारी रिश्ते भी खुलकर सामने
आये. सुषमा की तरह राजे भी पूरे विवाद पर चुप रही. कांग्रेस एक के बाद एक कई आरोप
राजे पर लगाती रही लेकिन राजे की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी. ललित मोदी का
सहारा लेकर कांग्रेस ने राजे की संपत्ति पर सवाल खड़े किये. धौलपुर का महल किसका
सरकार का या वसुंधरा राजे का यह जवाब अब भी अनसुलझा रहा. राजस्थान भाजपा राजे के
बचाव में सामने आयी लेकिन संपत्ति को लेकर स्थिति साफ नहीं हुई. कुल मिलाकर ललित
लीला ने भाजपा को काफी नुकसान पहुंचाया.
इंजीनियरिंग समेत कई अहम पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षाएं लेता है. पहली बार
2013 में इसमें घोटाले की खबर सामने आयी तब से लेकर अबतक लगभग 2500 लोगों को आरोपी
बनाया गया है 2000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी है. लेकिन इस सबके बीच जो सबसे
हैरान करने वाली बात है वह है इस घोटाले से जुड़े लोगों की मौत अबतक कुल 47 लोगों
की मौत हो चुकी है. एक के बाद एक हो रही मौत पर राज्य सरकार का बयान भी हैरान करने
वाला था कि इन सभी मौत को व्यापमं घोटाले से जोड़कर देखना नहीं चाहिए. मध्यप्रदेश
के गृहमंत्री बाबुलाल गौर ने कहा, राजा यो फकीर सबको एक ना एक दिन जाना है इसमें
सरकार क्या कर सकती है. लेकिन व्यापमं से जुड़े लोगों की मौत पर तो सवाल खड़े होने
लगे कि आखिर व्यापमं से जुड़े लोगों को यम अपने साथ ले जाने के लिए इतना उतावला
क्यों है. अब इस घोटाले की जांच सीबीआई के हाथ में जनता उम्मीद कर रही है कि इस
सस्पेंश से अब परदा हटेगा. यह घोटाला भले ही राज्य सरकार से जुड़ा हो लेकिन इसमें
भी केंद्र सरकार की खूब किरकिरी हुई.
आरोप लगा कि उन्होंने बगैर टेंडर निकाले स्कूलों में चिक्की और अन्य सामान का
टेंडर किसी को दे दिया.
साथ ही उन्होंने अपना पक्ष रखा लेकिन तब तक विपक्ष इस के माध्यम से महाराष्ट्र
सरकार और केंद्र की भाजपा की सरकार की छवि को जितना नुकसान विपक्ष पहुंचाना जाहता
था पहुंचा चुका था.
फिर एक्टिव मोड में आ रही है भाजपा भी चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं रखना चाहता.
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी फिर एक बार लोकसभा चुनाव की तर्ज पर सीधे –
सीधे मैदान में है. पिछली बार की स्थिति और अब की स्थिति में फर्क है. इस बार
चुनावी युद्ध में राहुल के तर्कस में भी भूमि अधिग्रहण बिल, व्यपामं घोटाला, ललित
मोदी विवाद के कुछ ऐसे तीर है जिसका इस्तेमाल वह विदेश में की गयी कोचिंग(
विपासना) के बाद सीख गये हैं इसका सबूत उन्होंने पिछले सत्र में संसद में दिया.
उन्होंने यहां जमकर मोदी सरकार पर निशाना साधा और चुनावी युद्ध कला का कौशल बिहार
चुनाव से पहले दिखाने की पूरी कोशिश की. बिहार चुनाव का परिणाम कई मायनों में अहम
है मोदी सरकार पर लगे आरोपों के दम पर विपक्षी वोट मांगेंगे और शायद इसी हार जीत
को मोदी सरकार के केंद्र के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड माना जायेगा.
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