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मां कह रही है बच्ची भात- भात कहते मर गयी, सरकार ने कहा, हम जांच करेंगे

चाइर- पांच दिन ले खाबे नी कईर रिही हामरे पूरा परिवार नी खाये रिही,  माय छऊवा नी खाय रही. स्कूल में खाना मिलत रहे लेकिन छुट्टी देई रहैं…. झारखंड की राजधानी रांची से जलडेगा की दूरी 166 किमी की है. खाद्य आपूर्ति मंत्री कह रहे हैं कि मैंने अप्रैल में ही आदेश जारी किया था कि कोई जरूरी नहीं है कि सिर्फ उन्हें ही राशन दिया जाए ,जो आधार कार्ड से लिंक  है सभी के घर में राशन मिलना चाहिए. आदेश तो दिया लेकिन रास्ते में खड़ा था डिजीटल भारत का सपना. शायद यही कारण था कि इस आदेश को गांव तक पहुंचने में वक्त लग गया जबकि राजधानी  रांची से मात्र तीन घंटे की दूरी है जलडेगा की. 

जलडेगा में 11साल की संतोषी कुमारी भात- भात ( चावल- चावल) करते मर गयी. सरकार ने जांच के आदेश दिये हैं जबकि उपरोक्त कथन उसकी मां के हैं. वह साफ कह रही है कि हमारे पूरे परिवार ने पांच दिनों से कुछ नहीं खाया था. स्कूल में संतोषी को खाना मिलता था लेकिन स्कूल बंद था . बीबीसी की रिपोर्ट में  सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि मानने को तैयार नहीं कि उसकी मौत भूख से हुई है. कहतीं है बच्ची मलेरिया से मरी है. मौत तो हुई है ये मानती हैं कि नहीं कोई उनसे पूछे ?. कोई पूछे कि संतोषी की मां क्यों झुठ बोल रही है क्या किसी राजनीतिक पार्टी ने उसे सिमडेगा से टिकट देने का लालच दिया है या ढेर सारे पैसे देने का लालच.

भूखमरी को लेकर कहां खड़े हैं हम 

किसान आत्महत्या करे, तो कारण फसल नहीं , कोई भूख से मरे, तो कारण भूख नहीं, कोई सड़क पर नौकरी, मूलभूत सुविधाओं के लिए आंदोलन करे, तो इसके पीछे विपक्षी पार्टियां. राजनीति से इतर भी लोग है. आम लोग जिन्हें राजनीति समझ नहीं आती. उन्हें उम्मीद है तो बस इतनी कि हमने जिसे वोट देकर सबसे ऊंची कुरसी दी, सारे फैसले लेने का हक दिया वो लोग हमारे लिए कुछ करेंगे.

आठ महीने से उसे राशन नहीं मिल रहा था. कारण सिर्फ एक आधार कार्ड का राशन कार्ड से लिंक ना होना. साहेब आप डिजिटल भारत का सपना देखिये लेकिन उनका क्या जो ठीक तरीके से डिजिटल बोल नहीं पाते. आधार कार्ड लिंक कैसे होगा नहीं जानते. जरा आप ही सोचिये क्या कारण होगा कि आठ महीने से जिसे राशन ना मिल रहा हो वो किस कारण से आधार कार्ड को राशन कार्ड से लिंक नहीं करा रही होगी. कोयली देवी ने डिप्टी कमिश्नर से राशन न मिलने की शिकायत 21 अगस्त और 25 सितंबर को थी. ऐसी हजारों शिकायतें होती है, इसे सुनने वाला कौन है और निपटाने वाला कौन इसकी भी जांच कीजिएगा.

थोड़ी सच्चाई पढ़िये 
झारखंड  में हर वर्ष करीब आठ लाख बच्चे जन्म लेते हैं. 29 हजार एक साल तक जीवित नहीं रह पाते. बच्चे बेहद  कमजोर होते हैं. राज्य में जन्म लेने वाले करीब आधे (चार लाख) बच्चे  कुपोषण के शिकार होते हैं. यही वजह है कि पांच साल तक में जिन बच्चों की  मौत होती है, उनमें से 45 फीसदी मौत का कारण कुपोषण होता है.

जिला    कुपोषित बच्चे
बोकारो    50.8
चतरा    51.3
देवघर    46.0
धनबाद    42.6
दुमका   53.5
गढ़वा    50.7
गिरिडीह   40.6
गोड्डा    46.0
गुमला    47.7
हजारीबाग    47.1
जामताड़ा    48.8
खूंटी    53.8
कोडरमा    42.2
लातेहार    44.2
लोहरदगा    48.1
पाकुड़    46.9
पलामू    43.9
प. सिंहभूम    66.9
पूर्वी सिंहभूम   49.8
रामगढ़    46.3
रांची    43.8
साहेबगंज    49.7
सिमडेगा    47.9
झारखंड    47.8

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