“यह पांचवी अनुसूची क्षेत्र है. यहां
बाहरियों का प्रवेश वर्जित है”. खूटी के कई गांवों में हरे रंग के बड़े से
पत्थर में यही लिखा मिलेगा. लाजमी है कि यह लाइन पढ़कर आप थोड़े परेशान तोे होंगे.
बाहरियों का प्रवेश वर्जित है”. खूटी के कई गांवों में हरे रंग के बड़े से
पत्थर में यही लिखा मिलेगा. लाजमी है कि यह लाइन पढ़कर आप थोड़े परेशान तोे होंगे.
पत्थलगड़ी
की कई कहानी और बयानबाजी के बीच इसके पीछे
का पूरा खेल समझने की कोशिश करनी चाहिए. इस कहानी तक मुझे एक धकेल कर पहुंचाया गया
है. एक सज्जन से मुलाकात हुई उन्होंने कहा, पत्थलगड़ी पर आप कुछ लिखना चाहते हैं.
मैंने कहा, हां क्यों नहीं लिखूंगा लेकिन क्या लिखूं. पत्थल गड़ी पर तो लगभग सारी
चीजें लिखी जा चुकी है. उस सूत्र ने कहा, आप पूरी कहानी लिख सकते हैं. उस सूत्र से बातचीत में जो बातें सामने आयी वही
आपके सामने रख रहा हूं.
दो बार सुरक्षाबलों को बंधक बनाया गया. पत्थलगड़ी और अफीम की खेती के पीछे की पूरी
कहानी का पहला सिरा हमें यहीं मिला. इसी गांव के रहने वाले मंगल सिंह मुंडा अफीम
की खेती और असंवैधानिक पत्थलगड़ी के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. लगातार मिल रही
धमकियों के कारण इन्हें गांव छोड़ना पड़ा. हमने इस मुद्दे पर उनसे विस्तार से बातचीत की . मंगल ने पत्थलगड़ी और
अफीम की खेती के पीछे की कहानी जो मेरे सामने रखी .मैं उसे जस का तस आपके सामने रख
रहा हूं.
की कई कहानी और बयानबाजी के बीच इसके पीछे
का पूरा खेल समझने की कोशिश करनी चाहिए. इस कहानी तक मुझे एक धकेल कर पहुंचाया गया
है. एक सज्जन से मुलाकात हुई उन्होंने कहा, पत्थलगड़ी पर आप कुछ लिखना चाहते हैं.
मैंने कहा, हां क्यों नहीं लिखूंगा लेकिन क्या लिखूं. पत्थल गड़ी पर तो लगभग सारी
चीजें लिखी जा चुकी है. उस सूत्र ने कहा, आप पूरी कहानी लिख सकते हैं. उस सूत्र से बातचीत में जो बातें सामने आयी वही
आपके सामने रख रहा हूं.
खूंटी जिले के अड़की प्रखंड का गांव
कुरूंगा . यहीं वह गांव है
दो बार सुरक्षाबलों को बंधक बनाया गया. पत्थलगड़ी और अफीम की खेती के पीछे की पूरी
कहानी का पहला सिरा हमें यहीं मिला. इसी गांव के रहने वाले मंगल सिंह मुंडा अफीम
की खेती और असंवैधानिक पत्थलगड़ी के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. लगातार मिल रही
धमकियों के कारण इन्हें गांव छोड़ना पड़ा. हमने इस मुद्दे पर उनसे विस्तार से बातचीत की . मंगल ने पत्थलगड़ी और
अफीम की खेती के पीछे की कहानी जो मेरे सामने रखी .मैं उसे जस का तस आपके सामने रख
रहा हूं.
उग्रवाद से बड़ा खतरा है अफीम की खेती
खूंटी उग्रवाद प्रभावित इलाकों में एक
है. उग्रवादी लेवी के बीच में आने वाले या
पुलिक के मुखबीर की हत्या करते थे. अफीम
की खेती की जद में तो साधारण किसान और गांव का हर एक वयक्ति आ रहा है.. उनके पास
अफीम की खेती में इनका साथ देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. उग्रवाद खत्म करने
के लिए हमने (मंगल सिंह मुंडा) शांति सभा
का गठन किया. कई गांवों में जंगल के अंदर घुसकर सभा की. अपने संगीत को हथियार
बनाया और लड़ता रहा लेकिन अफीम की खेती का विरोध जान का खतरा बन गया.
है. उग्रवादी लेवी के बीच में आने वाले या
पुलिक के मुखबीर की हत्या करते थे. अफीम
की खेती की जद में तो साधारण किसान और गांव का हर एक वयक्ति आ रहा है.. उनके पास
अफीम की खेती में इनका साथ देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. उग्रवाद खत्म करने
के लिए हमने (मंगल सिंह मुंडा) शांति सभा
का गठन किया. कई गांवों में जंगल के अंदर घुसकर सभा की. अपने संगीत को हथियार
बनाया और लड़ता रहा लेकिन अफीम की खेती का विरोध जान का खतरा बन गया.
साल 2013 तक अफीम की खेती इस इलाके में
कम थी . 2014 में कुछ लोग जुड़े लेकिन 2016-17 में अचानक इसकी वृद्धि हो गयी. खूंटी
के वैसे इलाके जो पश्चिमी सिंहभूम की तरफ है. यहां पानी आसानी से उलब्ध है. अफीम
की खेती इन्ही इलाकों में ज्यादा होती है.
जंगल में हो रही अफीम की खेती में उग्रवादियों का हाथ है लेकिन खूंटी जिला
मुख्यालय से 2 किमी दूर कुदाडीह, कटंगा, सोसोडीह जैसे इलाके
में अफीम की खेती हो रही है. गांव के लोग अफीम की खेती से हो रहे मुनाफे को देख
रहे हैं लेकिन इसके नुकसान और अपराध की जानकारी नहीं है.
कम थी . 2014 में कुछ लोग जुड़े लेकिन 2016-17 में अचानक इसकी वृद्धि हो गयी. खूंटी
के वैसे इलाके जो पश्चिमी सिंहभूम की तरफ है. यहां पानी आसानी से उलब्ध है. अफीम
की खेती इन्ही इलाकों में ज्यादा होती है.
जंगल में हो रही अफीम की खेती में उग्रवादियों का हाथ है लेकिन खूंटी जिला
मुख्यालय से 2 किमी दूर कुदाडीह, कटंगा, सोसोडीह जैसे इलाके
में अफीम की खेती हो रही है. गांव के लोग अफीम की खेती से हो रहे मुनाफे को देख
रहे हैं लेकिन इसके नुकसान और अपराध की जानकारी नहीं है.
अफीम की खेती और पत्थलगड़ी का रिश्ता
खूंटी जिले के मारंगहदा से अफीम की खेती
की शुरूआत हुई. इन दोनों के बीच का रिश्ता कैसा है ?. इसे समझना है, तो बस इतना जानिये कि पत्थलगड़ी की
शुरूआत भी इसी जगह से हुई है. कांकी, बंडरा, सिलादोन से अफीम की
खेती से शुरू हुई और अब इनता बड़ा रूप ले रही है. पत्थलगड़ी भी उसी रास्ते से होकर
गुजर रहा है. अब गांव में अपना नोट, वोट
का बहिष्कार, राशन
कार्ड, आधार
कार्ड का विरोध. पोलियो की दवा का विरोध सब शुरू हो रहा है. भोले– भाले आदिवासी यह
समझ नहीं रहे. उन्हें झुठे सपने दिखा दिये गये हैं वो भोले हैं जल्द विश्वास कर लेते हैं.
की शुरूआत हुई. इन दोनों के बीच का रिश्ता कैसा है ?. इसे समझना है, तो बस इतना जानिये कि पत्थलगड़ी की
शुरूआत भी इसी जगह से हुई है. कांकी, बंडरा, सिलादोन से अफीम की
खेती से शुरू हुई और अब इनता बड़ा रूप ले रही है. पत्थलगड़ी भी उसी रास्ते से होकर
गुजर रहा है. अब गांव में अपना नोट, वोट
का बहिष्कार, राशन
कार्ड, आधार
कार्ड का विरोध. पोलियो की दवा का विरोध सब शुरू हो रहा है. भोले– भाले आदिवासी यह
समझ नहीं रहे. उन्हें झुठे सपने दिखा दिये गये हैं वो भोले हैं जल्द विश्वास कर लेते हैं.
कैसे शुरू हुई अफीम की खेती
यहां के लोगों को अफीम की खेती किसने
सिखायी ?. गांव
के लोग बताते हैं कि बाहरी लोगों ने. ये बाहरी कौन है, कहां से आये हैं. किसी को
नहीं पता. इस खेती में अच्छा मुनाफा है कहकर खेती का तरीका समझा गये. तीन महीने
में फसल तैयार होती है बाहर से लोग आते हैं और अफीम खरीद कर ले जाते हैं. आज अफीम
की खेती की अच्छी खासी कीमत है. फसल अगर गांव में ही बेच दिया, तो एक किलो अफीम की
कीमत 15 से 20 हजार रूपये है. अगर खूंटी पहुंचा दिया तो 30 से 40 हजार इस तरह इसकी
कीमत हजारों से लाखों में हो जाती है.
सिखायी ?. गांव
के लोग बताते हैं कि बाहरी लोगों ने. ये बाहरी कौन है, कहां से आये हैं. किसी को
नहीं पता. इस खेती में अच्छा मुनाफा है कहकर खेती का तरीका समझा गये. तीन महीने
में फसल तैयार होती है बाहर से लोग आते हैं और अफीम खरीद कर ले जाते हैं. आज अफीम
की खेती की अच्छी खासी कीमत है. फसल अगर गांव में ही बेच दिया, तो एक किलो अफीम की
कीमत 15 से 20 हजार रूपये है. अगर खूंटी पहुंचा दिया तो 30 से 40 हजार इस तरह इसकी
कीमत हजारों से लाखों में हो जाती है.
कितनी खेती होती है इन इलाकों में
अनुमानित आकड़े
अनुमानित आकड़े
साल 2017- 3000 एकड़ में खेती हुई 1550 एकड़ में नष्ट किया गया
2018 – 2500 एकड़ में खेती हुई 1200 एकड़
में नष्ट किया गया
में नष्ट किया गया
अफीम की खेती से नष्ट हो रही है आने
वाली पीढ़ी
वाली पीढ़ी
केस स्टडी वन – कुरूंगा गांव की रहने
वाले समिका मुंडा की पत्नी अफीम की खेत में काम करती थी. वह सात महीने पेट से थी. अचानक
उसकी पेट में दर्द हुआ. उसे रिम्स में भरती कराया गया. अफीम की खेती ने उसके बच्चे
को मार डाला . गर्भाश्य को भी इतना नुकसान हुआ कि उसे निकलवाना पड़ा. अब वह आजीवन
मां नहीं बन सकती.
वाले समिका मुंडा की पत्नी अफीम की खेत में काम करती थी. वह सात महीने पेट से थी. अचानक
उसकी पेट में दर्द हुआ. उसे रिम्स में भरती कराया गया. अफीम की खेती ने उसके बच्चे
को मार डाला . गर्भाश्य को भी इतना नुकसान हुआ कि उसे निकलवाना पड़ा. अब वह आजीवन
मां नहीं बन सकती.
केस स्टडी 2- इस साल मेगापुर की एक महिला जो पानी लाने के लिए
दूर जाती थी उसे अफीम की खेत से होकर गुजरना पड़ता था. उसका भी बच्चा पेट में ही
मर गया.
दूर जाती थी उसे अफीम की खेत से होकर गुजरना पड़ता था. उसका भी बच्चा पेट में ही
मर गया.
केस स्टडी – 3 मराबेड़ा में महिला अफीम
के खेत में काम करती थी. उसके पेट में छह महीने के जुड़वा बच्चे थे. अफीम की खेती
ने बच्चे पर प्रभाव डाला बच्चा पेट में मर गया. अस्पताल पहुंचने से पहले मां की
मौत हो गयी.
के खेत में काम करती थी. उसके पेट में छह महीने के जुड़वा बच्चे थे. अफीम की खेती
ने बच्चे पर प्रभाव डाला बच्चा पेट में मर गया. अस्पताल पहुंचने से पहले मां की
मौत हो गयी.
इन इलाकों से ऐसे कई मामले सामने आये
हैं. गर्भवती महिलाओं के लिए अफीम की खेती जहर है.
हैं. गर्भवती महिलाओं के लिए अफीम की खेती जहर है.
नयी उग्रावद के संरक्षण में बन रहे हैं
नये हथियार
नये हथियार
ग्रामीणों के पास पहले पारंपरिक हथियार, तीर धनूष, भाला, बलुआ हुआ करता था.
अफीम की खेती ने इनके हाथों में नये हथियार दे दिये हैं. ग्रामीणों के हाथ में एक
नयी किस्म का तीर धनूष देखा जा रहा है. इसकी कीमत 800 रुपये बतायी जा रही है. यह 300
फीट तक तेजी से वार करता है. दो लोगों को
एक साथ मार सकता है.
अफीम की खेती ने इनके हाथों में नये हथियार दे दिये हैं. ग्रामीणों के हाथ में एक
नयी किस्म का तीर धनूष देखा जा रहा है. इसकी कीमत 800 रुपये बतायी जा रही है. यह 300
फीट तक तेजी से वार करता है. दो लोगों को
एक साथ मार सकता है.
नये हथियार और सुरक्षा
ग्राम सभा के नाम पर हो रही बैठक में कई
फैसले लिये जाते हैं. इसकी सुरक्षा के लिए गांव के युवक चारों तरफ 10- 15 किमी दूर
फैलकर सुरक्षा देते हैं. बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है इन बाहरी लोगों में
मुख्य रूप से पुलिस, सेना
के जवान और सरकारी कर्मचारी शामिल हैं.
फैसले लिये जाते हैं. इसकी सुरक्षा के लिए गांव के युवक चारों तरफ 10- 15 किमी दूर
फैलकर सुरक्षा देते हैं. बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है इन बाहरी लोगों में
मुख्य रूप से पुलिस, सेना
के जवान और सरकारी कर्मचारी शामिल हैं.
कितने तरह की होती है पत्थलगड़ी
1. सीमाना पत्थलगड़ी- इसमें एक गांव से दूसरे गांव का सीमांकन होता है इससे
पता चलता है कि पहले गांव की सीमा कहां तक है
पता चलता है कि पहले गांव की सीमा कहां तक है
2ससनदिरी – इस पत्थलगड़ी में पूर्वजों
का नाम पत्थर में लिखकर लगाया जाता है
का नाम पत्थर में लिखकर लगाया जाता है
3 एक गोत्र में शादी करने वालों का नाम
लिखकर गांव के बाहर लगाया जाता है. उन्हें गांव और समाज से बाहर कर दिया जाता है
लिखकर गांव के बाहर लगाया जाता है. उन्हें गांव और समाज से बाहर कर दिया जाता है
4 गांव की खास जगह पर पत्थलगड़ी
5 जमीन बंटवारे के वक्त जमीन में की गयी
पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी
6 वांशावली पत्थलगड़ी इसमें खास
व्यक्तियों के वंश में कौन थे इसकी जानकारी होती है
व्यक्तियों के वंश में कौन थे इसकी जानकारी होती है
7 गांव के व्यक्ति को जानवरों के द्रारा
मारे जाने पर पत्थलगड़ी
मारे जाने पर पत्थलगड़ी
8 विशेष आदमी की मृत्यू के बाद की गयी
पत्थलगड़ी
पत्थलगड़ी
9 इसी पत्थलगड़ी पर विवाद है. मुंडाओं
ने सिर्फ आठ तरह की पत्थलगड़ी के विषय में सुना है
ने सिर्फ आठ तरह की पत्थलगड़ी के विषय में सुना है
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