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नया साल : कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें, इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

याद जनवरी की….

कभी चलती हुई गाड़ी से पेड़ों को पीछे जाते देखा है, पता ही नहीं चलता कि पेड़ पीछे भाग रहे हैं या हम आगे  इतना पता होता है कि वक्त भाग  रहा है. लोग कहते हैं कभी पीछे पलट के मत देखो तकलीफ होती है. गलत है कि बीता हुआ वक्त हमेशा तकलीफ देता है. कई खुशियां है.. अगर उन्हें हमेशा साथ रखने की लालच कम कर सको तो जरूर मुड़ो. क्योंकि वक्त भाग रहा है और वक्त के हर कदम के साथ चलती हुई गाड़ी में एक नया पेड़ पीछे की तरफ. वक्त की तेजी के साथ  आगे फिर एक नया पेड़ अपनी बारी का इंतजार कर रहा है. अगर खिड़की से सिर बाहर निकाल के भी देखोगे तो कितना देर कितना दूर देखोगे  और अगर यही देखते रहे तो आगे इंतजार में खड़े पेड़ को कौन देखेगा.

तो आज यही करते हैं इस चलते हुए सफर में आगे और पीछे दोनों देखने की कोशिश करते हैं. चलते सफर से सिर बाहर निकालकर  पीछे पलटकर देखें तो  कई लोगों से मुलाकात ,पुराने लोगों से  गहरा होता संबंध, कई यात्राएं, इस साल शुरू हुए रिश्ते. कई कहानियां और कई लोग नजर आते हैं. अब आगे देखें तो क्या वहां भी एक पेड़ है लेकिन नजदीक आकर ही दिखेगा कितना हरा है, कितना बड़ा है, पेड़ में फल लगे हैं या सिर्फ झाड़ियों भरा पेड़ है. उम्मीद कि पुराने पेड़ से बेहतर हो.

याद फरवरी की

समझने में परेशानी हो रही है तो थोड़ा सीधे – सीधे समझ रणछोड़दास चांचड़ की तरह अप डाउन स्टाइल में . इस नये साल में नये की उम्मीद कर रहे हैं पुराने साल में पिछले साल के मुकाबले नया क्या था.  क्या बदल दिया है नये साल ने ना दोस्त बदले, ना दफ्तर बदला ना काम बदला ना रिश्ते. हां वक्त ने कुछ रिश्ते कुछ कदम पीछे छोड़कर आगे बढ़ने की जिद जरूर  की.  कहता  रहा कि  मैं इंतजार नहीं करूंगा तुम चल सको तो चलो.
हम उन लोगों में से है जो जिंदगी में खुशियां तलाशते हैं.

मार्च का महीना 

 एक तस्वीर याद है आपको समुद्री तूफान में घिरे नांव की. कहीं पढ़ा था कि इस तस्वीर को दिखा कर कोई पूछता है, इस तस्वीर में क्या दिखता है ? . देखने वाले ने कहा, नांव तूफान में घिर गयी है. पूछने वाले ने बताया कि तूफान से लड़कर नांव आगे बढ़ रही है.  हम में से ज्यादातर  पूछने वालों को नजरिया रखते हैं. नये साल से उम्मीदें खूब रखते हैं. हर साल ये उम्मीद के नये साल के साथ सारी तकलीफें, परेशानियां खत्म हो जायेंगी. कभी सोचा है कि पिछले साल की उम्मीदों का क्या हुआ ?

दिसंबर का महीना… 

मेरी इस साल कई उम्मीदें पूरी हुई वो भी मिला जो कभी सोचा नहीं  तो सोची समझी चीज भी नहीं मिली. उम्मीदें टूटी, बनी हुई योजना पूरी नहीं हुई. आप सभी के साथ ये हुआ होगा. अब इन सबको आप उम्मीदों के तराजू पर तौलिये और देखिये कि किसका पलड़ा भारी है. यह आंकलन जरूरी है कि क्योंकि इसके बगैर फिर नये उम्मीदों की खेप कैसे तैयार करेंगे आप. पुराना माल के खपत के बगैर नयी खेप लायेंगे नया और पुराना दोनों माल सड़ जायेगा. ” यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें, इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो “

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